- मंगल गीतों के साथ हुई मां गौरा के गौना की रस्मों की शुरुआत

- श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत के आवास पर जुटे भक्त

- वैदिक मंत्रोच्चार के बीच षोडशोपचार पूजन व आरती संपन्न

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मार्च को सायं काल तेल-हल्दी की रस्म निभाई जाएगी

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मार्च को बाबा का ससुराल-आगमन होगा

'बनली भवानी दुलहिनिया के बिदा होके जइहैं ससुरार', 'शिव दुलहा बन अइहैं, गौरा के लिया जइहैं', 'मंगल बेला में आए महादेव बन दुलहा' और 'जा के ससुरे सखी न भुलइहा' आदि पारंपरिक मंगल-गीतों से विश्वनाथ मंदिर के महंत का आवास गूंज उठा। अवसर था मां गौरा के गौना से पूर्व किए जाने वाले लोकाचार का। दिन रविवार और बेला शाम की। इसी के साथ चार दिनों के काशी के 'रंगभरी' महामहोत्सव का, विशिष्ट धार्मिक व लोकाचार के आयोजनों के साथ उल्लासपूर्ण वातावरण में शुभारंभ हो गया। इसी के साथ ही साथ काशी में होली का माहौल भी सृजित हो गया।

सुहागिनों की अंचरा-भराई

टेढ़ीनीम स्थित नवीन महंत आवास पर रविवार की शाम को पं। सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में अंकशास्त्री पं। वाचस्पति तिवारी ने माता गौरा की प्रतिमा का विशेष षोडशोपचार पूजन किया। संजीवरत्न मिश्र ने श्रृंगार-आरती की। भोग अर्पण के बाद गवनहरियों और परिवार की महिलाओं ने मिलकर मंगल-गीत गाए। माता गौरा की रजत प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने चुमावन की रस्म अदा की। 'साठी क चाउर चुमीय चुमीय.', 'गौरा के लागे ना नजरिया कजरवा लगाय द ना' जैसे पारंपरिक गीतों के गायन का क्रम रात नौ बजे तक चलता रहा। इसके बाद सुहागिनों की अंचरा-भराई की गई। महंत परिवार की महिलाओं ने गवनहरियों के आंचल में अक्षत, गुड़, हल्दी, खड़ी सुपाड़ी और दक्षिणा डाल कर उनकी विदाई की।

हल्दी और तेल की रस्म आज

मां गौरा के गौना के चार दिनी लोकाचारी उत्सव के क्रम में सोमवार 22 मार्च को सायं काल तेल-हल्दी की रस्म निभाई जाएगी। गौरा का गौना कराने के लिए रंगभरी एकादशी की तिथि से एक दिन पूर्व 23 मार्च को बाबा का ससुराल-आगमन होगा।

Posted By: Inextlive