सूबे के बड़े शहर अब मेट्रो सफर का फायदा उठाने लगे हैं वहीं अपना बनारस अभी लोकल ट्रांसपोर्टेशन के अपग्रेड होने का इंतजार कर रहा है. पर्यटकों की बढ़ती रफ्तार और काशी की लोकप्रियता को देखते हुए 2009 में बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम देने के लिए जेएनएनयूआरएम योजना के तहत 130 डीजल बसों का संचालन किया गया.

इस पर करीब 150 करोड़ रुपये खर्च हुए। शुरुआत में इसका सफर अच्छा था, लेकिन कुछ समय के बाद तस्वीर बदलती गई। लोकल ट्रांसपोर्ट सिस्टम खटारा होता गया। उदासीनता और मेंटेनेंस की कमी के चलते 15 साल की सुविधा पांच साल में ही दम तोडऩे लगी। पब्लिक तो परेशान हो ही रही है, सरकार को भी हर महीने 20 लाख का घाटा हो रहा है। 130 सिटी बसे हैं, इनमें ज्यादातर कंडम हैं। मेंटेनेंस और पार्ट की कमी से न जाने कितनी बसें खड़ी हुई हैं। इलेक्ट्रिक बसें अभी 25 ही मिली हैं, 25 और का इंतजार किया जा रहा है।

हर महीने 20 लाख नुकसान
सिटी बस सेवा शहर के अलावा जनपद के अंतिम छोर के साथ जौनुपर, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर की सीमा में दौड़ती है। शहर के अंदर 70 व ग्रामीण क्षेत्र में कुल 60 सिटी बसें चलती हैं। शहर में दौडऩे वाली सिटी बसों में सवारियां कम रहती हैं, लेकिन जलालपुर, कैथी, कछवा, कैलहट, चकिया, चहनियां जाने वाली बसों में अच्छी संख्या में सवारियां सफर करती हैं। डीजल महंगा व सवारी कम होने के कारण किसी भी रूट से रोडवेज को इनकम नहीं होता है। अनुमान के मुताबिक एक सिटी बस हर दिन 70 से 80 किमी दौड़ लगाती है। टिकट के रूप में सवारियों से मात्र दो से तीन हजार रुपये ही मिलते हैं। ऐसी स्थिति में 130 बसों से हर महीने करीब 20 लाख रुपये का घाटा होता है।

110 बसों का संचालन
जेएनएनयूआरएम योजना के तहत 130 बसें हैं, जिसमें मेंटीनेंस के अभाव में 20 से 25 बसें डिपो में खड़ी हैं। कई बसों को ठीक करने का काम चल रहा है। वैसे सड़कों पर 110 से अधिक बसें चल रही हैं। बसें काफी पुरानी हो गयी हैं। इसलिए अधिकतर बसों का इंजन बोल गया है। किसी तरह ठीक कर सिटी बसें चलाई जा रही हैं, लेकिन स्मार्ट सिटी बनारस के पब्लिक को गुड फील नहीं करा रही है।

शीशे टूटे व सीट फटी
शहर में दौड़ रही सिटी बसों का हाल खस्ता है। कई बसों के शीशे टूटे हैं तो कइयों की सीट फटी है। कड़ाके की ठंड में इस बस में सफर करना मुश्किल भरा होता है। बसों में गंदगी भी बहुत रहती है। सफाई नहीं होने से बदबू भी आती है।


इलेक्ट्रिक बसें तो शुरू हुई हैं, लेकिन सिटी बस की तरह हर
आधे घंटे पर सेवा नहीं है। ऐसी स्थिति में खटारा बस ही सफर
करना पड़ता है।
-संतोष कुमार

करीब सात साल से मैं सिटी बस से सफर कर रहा हूं। मुझे तो
कभी अच्छी फिलिंग नहीं हुई है। यह मेरी मजबूरी है। कैलहट
के लिए इलेक्ट्रिक बस अभी नहीं चलती है।
-मनीष शर्मा

बसें काफी पुरानी हो गई हैं। मेंटेनेंस नहीं होने से बसों का हाल यह हो गया है। पहले तो बसों की स्थिति अच्छी थी। सफर भी अच्छा होता था।
-राकेश यादव

हम तो हर दिन केराकत से बनारस आते और जाते हैं। निजी साधन
से आने में काफी महंगा पड़ता है। कष्ट तो होता है, लेकिन क्या
करें मजबूरी है।
-रत्नेश पाल

सिटी बस से अभी सफर करते हैं, अभी मेरे रूट पर इलेक्ट्रिक बसें
नहीं चल रही हंै। कुछ और बसें आने वाली हैं। आने वाले दिनों
में खटारा बसों से छुटकारा मिल जाएगी।
-मनीष तिवारी


सिटी बसें काफी पुरानी हो गई हैं। फिलहाल मेंटनेंस कर उन्हïें चलाया जा रहा है। सौ से अधिक बसें विभिन्न रूटों पर चल रही हैं। इलेक्ट्रिक बसें भी आ गयी हैं, जिसमें सफर करने में पब्लिक को अच्छा लग रहा है।
-मुकेश कुमार, आरएम, सिटी रोडवेज

Posted By: Inextlive