-बनारसी पान को मिलेगा जीआई टैग

-लंगड़ा आम व रामनगर के बैगन के लिए भी शुरू हुई प्रक्रिया

पूरी दुनिया में बनारसी पान फेमस है। अगर कोई यहां बनारस आए और पान नहीं खाए तो यात्रा अधूरी रह जाएगी। अब इस पान को और खास पहचान मिलने जा रही है। जल्द ही पान जीआई टैग से लैस हो जाएगा। इसके साथ ही बनारसी लंगड़ा आम को भी जीआई टैग की लिस्ट में शामिल करने के लिए भेजा गया है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) ने बनारसी लंगड़ा आम के लिए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जीआई टैग हासिल होने के बाद आम की इस वेरायटी के उत्पादकों को अपनी फसल के बेहतर रेट मिलने की संभावना बढ़ेगी और अन्य क्षेत्रों के आम उत्पादक उनके नाम का दुरुपयोग कर अपनी फसल बाजार में नहीं बेच सकेंगे।

मिल जाएगा बाजार

पान और लंगड़ा आम को जीआई टैग मिलने के बाद इनके लिए अच्छा बाजार तैयार करने में मदद मिलेगी। जीआई टैग के एक्सपर्ट पद्मश्री डॉ। रजनीकांत मिश्र ने बताया कि जीआई टैग मिलने से बनारसी पान व लंगड़ा आम उत्पादकों को फसल का बेहतर दाम मिल सकेगा। साथ ही इसके दुरुपयोग पर रोक लग जाएगी। बताया कि जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में पैदा होते हैं। इन उत्पादों की खासियत और प्रतिष्ठा उस क्षेत्र विशेष में पैदा होने की वजह से स्थापित होती है। यह टैग मिलने के बाद संबंधित उत्पाद का नाम लेकर बाजार में किसी और चीज को बेचने पर पाबंदी लग जाती है। डॉ। रजनीकांत ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी दी।

मिल जाएगी अलग पहचान

बनारस का पान, लंगड़ा आम के साथ आदमचीनी चावल व चोखा के लिए मशहूर रामनगर का प्रसिद्ध बैगन देश के साथ ही पूरी दुनिया में मशहूर है। इनके लिए भी जीआई टैग की तैयारी है। डॉ। रजनीकांत ने बताया कि इस तरह वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश से ही सर्वाधिक जीआई उत्पादों के लिए विगत एक वर्ष में आवेदन किया गया है। यह विश्वास है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश बौद्धिक सम्पदा अधिकार के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभायेगा तथा सर्वाधिक जीआई उत्पादों का निर्यात भी उत्तर प्रदेश से ही होगा। इसमें पान व लंगड़ा आम भी आने वाले दिनों में शामिल हो जाएगा। जिससे इसको पूरी दुनिया में अलग ही पहचान मिल जाएगी।

लोकल को मिलेगा बढ़ावा

डॉ रजनीकान्त द्वारा उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से आग्रह किया गया है कि प्रदेश में जीआई प्रोत्साहन एवं संवर्धन नीति लागू किया जाए तथा प्रदेश स्तर पर राज्य जीआई बोर्ड का गठन किया जाए। इससे करोना के संक्रमण काल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत जीआई ही कानूनी रूप से लोकल के साथ ग्लोबल तक पहुंचेगा और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलेगा तथा देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी और बनारस सहित प्रदेश के उत्पादों की खुशबू पूरी दुनिया में फैलेगी।

बनारसी साड़ी व मीनाकारी को मिल चुका है टैग

बनारसी पान व लंगड़ा आम को जीआई टैग मिलने से पहले यहां की साड़ी, गुलाबी मीनाकारी व ग्लास बीड्स को यह टैग हासिल हो चुका है। अब तक पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई टैग का दर्जा प्राप्त हो चुका है, जिसमें बनारसी साड़ी, काला नमक चावल, बनारसी साड़ी, मेटल क्राफ्ट, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन शिल्प, चुनार बलुआ पत्थर, ग्लास बीड्स, भदोही कालीन, मिर्जापुर, गाजीपुर वालहैंगिंग, निजामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पाटरी और इलाहाबाद का अमरूद शामिल है। इसको लेकर अब उत्तर प्रदेश में कुल 26 जीआई उत्पाद हो चुका है और वह देश की बौद्धिक सम्पदा में शुमार है।

दशहरी से अल्फांसो तक

डॉ। रनीकांत मिश्र ने बताया कि दशहरी आम को सितंबर 2009 में जीआई टैग हासिल हो चुका है। इसके अलावा आम की अनेक भारतीय किस्मों को भी जीआई टैग हासिल हो चुका है। इनमें रत्नागिरी का अल्फांसो, गीर और मराठवाड़ा का केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जर्दालू, कर्नाटक का अप्पामिडी और मालदा का हिमसागर मुख्य है।

Posted By: Inextlive