शहर में तेजी से बढ़ रहा एयर पॉल्यूशन 45 से 90 तक पहुंचा एयर क्वालिटी इंडेक्स वातावरण में धूल धुआं सल्फर और कार्बन मोनो आक्साइड के तत्वों की बढ़ रही मात्रा

वाराणसी (ब्यूरो)बनारस में बढ़ते प्रदूषण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बारिश के बंद होते ही पर्यावरण में प्रदूषण का जहर घुलना शुरू हो गया है। दो और तीन जुलाई को शहर का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स 40 से 45 तक बना हुआ था, जो अब यानी मानसून सीजन में बारिश के थमते दोबारा से छलांग मारते हुए 80 से 90 एक्यूआई पर जा पहुंचा है। इतना ही नहीं वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के चलते हवा में सल्फर डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, ओजोन, कार्बन, एरोसॉल्स, धुआं, धूलकण समेत कई अन्य हानिकारक तत्व तेजी से घुल रहे हैैं। इनका मानव स्वास्थ्य पर सीधा हानिकारक असर देखने को मिलता है। फिलहाल आगामी तीन-चार दिनों तक बारिश के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैैं.

हवा प्रदूषण का बारिश ही इलाज

शहर में लगातार निर्माण कार्य, साफ-सफाई, तोडफ़ोड़-मरम्मत, वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण, ध्वनि व धुआं प्रदूषण, हवा में व्याप्त पहले से पॉल्यूशन को मानसून की बारिश ने कुछ मात्रा में घटाया था, यों कहिए कि हवा में लिपटे हानिकारक तत्वों को बारिश अपने साथ भूमि पर ला दिया। इससे कुछ समय के लिए हवा में प्रदूषण की मात्रा कम जरूर हो गई। लेकिन, बारिश के बंद होते ही एक बार फिर एयर क्वालिटी इंडेक्स की सेहत बिगड़ती जा रही है.

शहर में स्थानों के एयर क्वालिटी इंडेक्स

बीएचयू- 154

भेलूपूर- 90

अर्दली बाजार - 55

मलदहिया का डेटा- अनुपलब्ध

मौसम का हाल

शहर में गत मंगलवार से शुरु हुई बारिश ने लगातार तीन दिनों तक चली। इन दिनों क्रमश 66, 103 और 15 एमएम की बारिश दर्ज की गई। अब तीन, चार और पांच जुलाई बारिश को बगैर ही गुजर गए। मंगलवार को सुबह ही तीखी धूप निकली, जो दिन चढऩे के साथ लोगों को बेहताशा गर्मी सहने को विवश कर दिया। कभी-कभार बादल जरूर आसमान में दिखे, लेकिन वे सिर्फ ललचा कर रवानी ले लिए। शहर में सात किमी की रफ्तार से चल रही हवा कुछ खास एहसास नहीं करा पाई। सघन इलाकों में हवा के स्लो होने से उमस ने भी खूब लोगों को सताया.

धूल कणों से भरे वायु प्रदूषण से बचने की कोई दवा नहीं है। इससे बचने का सीधा उपाय है जागरूकता और सावधानियां। मास्क लगाकर ही जाएं, ताकि धूल कण सांस में न जा सकें। प्रदूषित हवा में जो पार्टिकुलेट मैटर होते हैं, उससे एक तो फेफड़े पर तो असर पड़ता ही है, ब्रेन पर भी असर पड़ सकता है। हमारे ब्रेन को ऑक्सीजन की जरूरत होती है.

डॉरविशंकर मौर्य, चिकित्सक

Posted By: Inextlive