शहर में नई बस्ती स्थित कुम्हार कॉलोनी से देश के कई राज्यों तक लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां जाती हैं. कुम्हार कॉलोनी के निवासी श्यामलाल प्रजापति एक विशेष तरह के लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां बनाते हैं. डिमांड के हिसाब से मूर्तियों को कई राज्यों तक भेजा जाता है.

वाराणसी (ब्यूरो)। बनारस की इन मूर्तियों की खास बात यह है कि ये गंगा की शुद्ध मिट्टी से तैयार की जाती हैैं। इन मूर्तियों की खास डिमांड पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में है। दीपावली में लक्ष्मी जी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है। श्यामलाल बताते हैं कि उनका पूरा परिवार त्योहार से करीब 4 महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देता हैं। घर के बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी की अपनी-अपनी जिम्मेदारी होती है। दीपावली करीब आते ही मूर्तियों को अंतिम रूप देकर डिमांड के हिसाब से उनकी डिलेवरी करा दी जाती है। श्याम लाल प्रजापति का परिवार कई पीढिय़ों से लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बनाने का काम करता आ रहा है। इसी रोजगार से परिवार का भरण पोषण होता है।

कीमत 50 से 650 तक
मूर्तियों के मूल्यों कि बात करें तो इनकी रेंज जोड़ों में 50 रुपए से लेकर 650 रुपए तक है। थोक के रेट में 10 से 20 रुपए कम हो जाते हैैं। बाजार में तीन तरह की गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति की मांग है। यहां छह इंच से लेकर एक फीट तक की मूर्तियां उपलब्ध हैं। आकार के अनुरूप मूर्तियों की कीमत तय होती है।

मूर्ति तैयार करने में ये जरूरी
मूर्ति बनाने में गंगा की मिट्टी, सिंदूर, कई तरह के रंग, मोती, कपड़े के साथ अन्य कई सजावटी सामान।

मिट्टी के भाव 4 हजार रुपए
कुम्हारों को मूर्तियां बनाने के लिए मिट्टी की जरूरत होती है। एक ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत 3 से 4 हजार रुपए तक चुकानी पड़ती है। कुछ कुम्हार चाक और कुछ मशीन से मूर्तियां बना रहे हैैं।

मूर्ति में नहीं जुड़ती मजदूरी की कीमत
एक मूर्ति को बनाने में डेढ़ से दो दिन का समय लगता है। इसमें मिट्टी, रंग और कपड़ों समेत अन्य सामानों के साथ मूर्ति बनाने में 25 से 30 रुपए लग जाते हैैं। इसमें परिवार की मजदूरी नहीं जुड़ी है। 6 इंच से लेकर 1 फीट तक मूर्तियां बनती है और उसी प्रकार से उनकी कीमत तय होती है। बाजार में सबसे छोटी मूर्ति करीब 60 से 70 रुपए में बिकती है। वहीं सबसे बड़ी प्रतिमा का मूल्य लगभग 650 रुपये तक होता है।

प्लास्टर ऑफ पेरिस ने किया प्रभावित
मार्केट में प्लॉस्टर ऑफ पेरिस, इलेक्ट्रिक, तांबे एवं अन्य प्रकार की मूर्तियां भी उपलब्ध हैं। इनसे मिट्टी की मूर्तियों का व्यापार काफी प्रभावित हुआ। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पर्यावरण प्रदूषण को लेकर लोग सजग हुए हैैं। इसके चलते दोबारा मिट्टी की मूर्तियों का प्रचलन बढ़ा है।

Posted By: Inextlive