एक महीने से अधिक समय से नाव संचालन ठप्प घरों में घुसा बाढ़ का पानी 1500 परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट आजीविका बंद होने से हो रही परेशानी

वाराणसी (ब्यूरो)बनारस में गंगा नदी में आई बाढ़ तटवर्ती इलाके के नागरिकों पर कहर बनकर टूट रही है। लोगों के घर मकान, खेत-खलिहान, रास्ते, दुकान, स्कूल और बाजार पानी से घिर गए हैैं। बाढ़ प्रभावित सैकड़ों लोगों ने शेल्टर हाउस में शरण लिया हैै। जो अपने घरों में हैैं, उन्हें भोजन, पेयजल और अन्य जरूरतों के लिए तरसना पड़ रहा है। तकरीबन एक महीने से गंगा नदी में पानी अधिक होने से प्रशासन ने नाव के संचालन पर रोक लगा दी है। इससे सभी घाटों को मिलाकर 1700 नावें खड़ी हैैं और इनके संचालक 1500 लोगों की आजीविका महीनों से ठप्प है। रोजी बंद होने से नाविकों के परिवार का गुजर-बसर मुश्किल में पड़ गया है। नाव संचालकों को गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। बढ़ते कर्ज के बोझ से राजघाट के उपेंद्र, भैैंसासुर घाट के जितन, कुसुम और कोरिया घाट के राकेश समेत कई नाविकों को रात में नींद नहीं आ रही है।

इस दर्द की दवा क्या है

बनारस में हर साल गंगा में इतना पानी भर जाता है कि घाट किनारे के सभी काम-धंधों पर प्रशासन रोक लगा देती है। इसमें नाव संचालन, पूजा-पाठ, फूल-माला, इस्तेमाल की वस्तुएं समेत सभी प्रकार के रोजी-रोटी के साधन ठप्प हो जाते हैैं। ऐसे में जो लोग रोज कमाने-खाने वाले होते हैैं, परेशानियों के भंवर में घिर जाते हैैं।

केस-1

राजघाट पर गंगा पूरे वेग में बह रही है। यहीं घाट किनारे जितन साहनी नाव चलाते हैैं। इससे पूरे दिन में 700 से 900 रुपए कमा लेते थे। इन रुपयों से पांच सदस्यीय परिवार का गुजर और अन्य जरूरतें पूरी होती थी। गंगा में पानी बढ़ते ही इनकी रोजी-रीटी का साधन नाव पीपल के पेड़ से बंध गई और अब तक बंधी है। अब कर्ज लेकर जीवन की गाड़ी सरक रही है। प्रशासन का भी कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।

केस-2

भैैंसासुर घाट किनारे अधेड़ कुसुम चूड़ी-बिंदी ठेले पर सजाकर बेचती हैं। वह बताती हैैं कि उनका बेटा नाव चलाता है, जो तकरीबन एक महीने से बेरोजगार है। गंगा में बाढ़ व सैलानियों के कम आने से चूड़ी-बिंदी का धंधा भी एकदम मंदा चल रहा है। दिनभर में सौ रुपए की बिक्री हो जाए, बड़ी बात है। घर बाढ़ में घिरा हुआ है। साफ पेयजल और राशन आदि की दिक्कत हो रही है। परिवार का पेट पालने, दवा और अन्य जरूरत के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। प्रशासन से कुछ उम्मीद थी, लेकिन निराशा हाथ लगी है।

आकड़ों पर एक नजर

- शहर में घाटों पर चलने वाली कुल बोट- 1700

- मोटरबोट- 1000

- पतवार व डीजल- 700

- नाविक- 1500

- नाविकों की आबादी- बीस हजार लगभग

- एक दिन का कारोबार- 1.5 लाख रुपए से अधिक

- महीने का कारोबार- 50 लाख रुपए से अधिक

गंगा में पानी बढ़ते ही प्रशासन महीनों नाव संचालन पर रोक लगा देती है। आप बताइये हमारी रोजी-रोटी बंद हो जाएगी तो हम गुजारा कैसे करेंगे। प्रशासन को कोई विकल्प तो चुनना चाहिए। शहर स्मार्ट हो रहा है और हमें पीछे धकेला जा रहा है। ये कैसा विकास है भला ?

उपेंद्र साहनी, नाविक, राजघाट

सन 1978 में बाढ़ आई थी, लेकिन इतनी तबाही नहीं होती है। बाढ़ की वजह से काम-धंधे ठप्प पड़े हुए हैैं। सरकार या प्रशासन से किसी प्रकार की मदद नहीं मिली है। पानी, राशन और रोटी-रोजी के भटकना पड़ रहा है। बाढ़ होने की वजह से कोई काम भी नहीं मिल रहा है।

सच्चेलाल, नाविक, राजा घाट

Posted By: Inextlive