मंदिर में टूटी मजहब की दीवार
- बली के दरबार में अली की हाजिरी ने दिखाया सुरों की नहीं होती कोई सरहद
- संकटमोचन संगीत समारोह में गजल सरताज गुलाम अली को सुनने के लिए उमड़े हर मजहब और उम्र के लोग VARANASI : यूं ही नहीं कहा जाता कि सूरों में इतनी ताकत होती कि पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाता है। बनारस तो इसका गवाह बन गया। सरहद पार से आए एक आर्टिस्ट ने बली के दरबार में तान छेड़ी तो मजहब की दीवार रेत की तरह हवा में उड़ गयी। वहां न कोई हिन्दू था न कोई मुसलमान। न कोई सिख और न ईसाई। पूरी रात बस होती रही सुरों की बरसात और वहां थे उसमें भींगते लोगों के जज्बात। मौका था संकट मोचन संगीत समारोह का। मौजूदगी थी गजल के सरताज गुलाम अली की। हर दिल रहा बेताबशहर के हर शख्स को पहले ही पता चल चुका था कि सरहद पार का फनकार संकट मोचन संगीत समारोह में शिरकत करने आ रहा है। रूहों को राहत देने वाली गजलों से रूबरू होने का लुत्फ कौन नहीं लेना चाहता। शाम से भीड़ संकटमोचन मंदिर कैम्पस में जम गए। आम दिनों मंदिर की ओर जाने वाली रास्ते पर बढ़ते हुए गैर हिन्दू के पैर थम जाएं लेकिन यहां तो बिंदास सीढि़यां चढ़ते ऐसे गए जैसे वह ऐसे जहान में जा रहो हों जहां कोई मजहब होता ही नहीं। होती है तो सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत। तय कार्यक्रम के मुताबिक गजल के बेताज बादशाह गुलाम अली को आधी रात के बाद महफिल में आना था लेकिन शाम से ही मंच के नजदीक रहने की होड़ सी लगी रही। जिसे जहां जगह मिली घंटों पहले जम गया। किसी ओर बुजुर्गो की टोली थी तो किसी ओर बुर्कानशीनों की। गमच्छाधारी पान के शौकीनों के बीच पगड़ीधारी भी नजर आ रहे थे। रात दस बजे तक प्रोग्राम को लाइव दिखाने के लिए पूरे कैम्पस में जगह-जगह लगी दो दर्जन टीवी स्क्रीन के सामने तिल रखने की जगह नहीं थी। छतों पर सिर्फ नरमुण्ड नजर आ रहे थे।
लगता रहा हर हर महादेवमहफिल के मिजाज को गजल के सरताज ने पहली नजर में भांप लिया। अनगिनत गजलों के गुलदस्ते से एक फूल निकाला जो बिल्कुल मौके के मुताबिक था। इसकी खूशबू ने सबको सराबोर कर दिया। गजल के बोल थे दिल में एक लहर सी उठी है अभी कोई ताजा हवा चली है अभी। शोर बरपा है खाना ए दिल में कोई दीवार सी गिरी है अभी। सिर्फ इंसानियत और संगीत रस से सराबोर रहा हर शख्स वाह कह उठा। गुलाम अली रात एक बजे मंच पर आए। अपनी परम्परा की मुताबिक बनारस के लोगों ने हर हर महादेव के उद्घोष के साथ उनका स्वागत किया। यह तब तक चलता रहा जब तक उन्होंने अपने हरमोनियम से सुर नहीं मिलाना शुरू कर दिया। उन्होंने किसी को मायूस नहीं किया। ठुमरी सुनायी, फरमाइश पर गजलें गायीं। वक्त की पाबंदी थी नहीं तो मंच और महफिल में मौजूद कोई शख्स इस जादू की दुनिया से बाहर नहीं आना चाह रहा था। रात लगभग तीन बजे तक एक से बढ़कर एक गजलों का दौर चलता रहा और लोग उन्हें उतने ही शिद्दत से सुनते रहे।