कोरोना की पहली और दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन ने वाराणसी के नाविकों की परेशान काफी बढ़ा दी थी. नाव संचालन न होने से दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से जुगाड़ हो रही थी. संक्रमण के मामले कम हुए तो जिंदगी पटरी पर लौट ही रही थी कि फिर ओमिक्रॉन और तीसरी लहर की दस्तक ने बढ़ी हुई रफ्तार थाम दी. सबसे महत्वपूर्ण समय यानी शाम के वक्त नाव संचालन बंद हो गया.

वाराणसी (ब्यूरो)वाराणसी में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते जिला प्रशासन ने गंगा घाटों पर तय समय सीमा लागू करते हुए अधिक लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे नाविकों को आर्थिक नुकसान का सामना फिर से करना पड़ रहा है। गंगा की गोद में रहकर अपना पेट पालने वाले निषाद समाज के हजारों नाविक अब यही सोच रहे हैं कि । अब हमरी नैया कैसे लगिहें पार

ये कैसा प्रतिबंध
गंगा के घाटों पर शाम 4 बजे के बाद स्थानीय के साथ-साथ बाहर से आने वाले सैलानियों का आना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। वहीं नाविकों का कहना है कि हमें शाम के 6 बजे तक की अनुमति तो है, लेकिन जब यात्री ही नहीं आएंगे तो हम नाव कैसे चलाएंगे। नाविकों को प्रशासन से गुहार लगाते हुए कहा है कि 4 बजे के बाद कोरोना प्रतिबंध सिर्फ निषाद समाज के लिए ही क्यों लागू है। सड़क की गलियों में जो दुकानें रात 9 बजे तक खुलती हैं, क्या उससे कोरोना का खतरा नहीं बढ़ेगा। क्या हमें अपनी जिंदगी चलाने का हक नहीं है। प्रशासन के इस दोहरे मापदंड से नाविकों को अपने परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है।

सरकारी लाभ भी नहीं मिलता
निषाद समाज के लोगों ने बताया कि वे सालाना टैक्स भी भरते हैं, लेकिन कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है। नाव का इंश्योरेंस भी नहीं कराया जाता है। जब भी गंगा किनारे या नदी में कोई घटना होती है तो नाविक ही एनडीआरएफ की टीम को सहयोग करते हैं, लेकिन इसके बदले प्रशासन ने नाविकों की किसी भी मांग को स्वीकार नहीं किया है।

पुलिस देख कर नहीं आते लोग
शाम होते ही जल पुलिस को देखकर यात्री खिसकने लगते हैं। ऐसे में नाव सवार के इंतजार में खाली ही किनारे लगे रहते हैं। अगर सवारी मिल भी जाती है तो जल पुलिस नाव से जबरदस्ती नाव से सवारियों को भगाने लगती है। इस तरह नाविकों को आर्थिक नुकसान का चोट सहना पड़ता है।

न सुरक्षा और न ही सुविधा
निषाद समाज से मिली जानकारी के मुताबिक नदी में जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो प्रशासन के लिए नाविक ही सबसे बड़े सहायक साबित होते हैं। घटना के समय नाविक अपना सौ फीसदी योगदान देते हैं, लेकिन इसके बदले सरकार से किसी प्रकार का न तो मुआवजा न ही कुछ और मिलता है। निषाद समाज कई बार सरकार से सुरक्षा और गोताखोरों की नियुक्तियों में भागीदारी सुनिश्चित करने की मांग कर चुका है।

गंगा आरती के समय अधिक मांग
गंगा आरती के समय नाविकों की डिमांड सबसे अधिक होती है। बाहर से आए लोगों में गंगा आरती देखने का क्रेज होता है, ऐसे में गंगा आरती नाविकों की कमाई का बहुत बड़ा जरिया है, लेकिन इन दिनों गंगा आरती के समय नाव का परिचालन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।


कभी लॉकडाउन तो कभी बाढ़
दशाश्वमेध घाट पर रहने वाले निषाद समाज की मानें तो दो साल लगातार लॉकडाउन में हालात इतने खराब हो गए थे कि कभी रुपये कर्ज तो कभी घर के गहने बेचकर परिवार को चलाना पड़ा। समाज के लोगों ने बताया कि उस समय प्रशासन ने किसी प्रकार से कोई मदद नहीं की। इतना ही नहीं, पिछले दो साल में कभी कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन तो कभी बारिश के और बाढ़ के कारण चार-चार माह तक नाव का संचालन बंद रहा। ऐसे में बच्चों की फीस तक देने में समस्या आ गई।


कुल गंगा घाट - 84
नाव (मोटर वोट, हाउस वोट व छोटे-बेड़े नाव) - 950
नाविक 5000
प्रतिदिन कमाई 1200 रुपये
उस पार आने जाने का किराया - 40 रुपये
सालान टैक्स - 850 रुपये
नाव की वैल्यू - नहीं
नाव का इंश्योरेंस - नहीं
नाव का लाइसेंस- मालिक के नाम

नाविक ने बताई परेशानी
शहर में बाजार रात 9 बजे तक खुल रहे हैं, और हमारे नाव को 4 बजे के बाद से कोई सवारी तक नहीं मिल रहा। हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है। सरकार न हमारी दशा देखती है और न कोई सुधार करती है।
शंभूनाथ मांझी, अध्यक्ष बनारस नौकायान सेवा समिति

ठंड में दिन के 2 बजे के बाद यात्रियों का आना अधिक होता है, लेकिन 4 बजे के बाद यात्रियों के आने पर रोक लगा दी गई है। अगर यात्री ही नहीं आएंगे तो हम कैसे नाव चलाएंगे और कैसे पैसा कमाएंगे।
- राजू, नाविक

नाव हमारी जिंदगी का आधार है। जब पैसा ही नाव से कमाएंगे तो अपना परिवार हम कहां से पालेंगे। हमें तो कभी-कभी रात में क्या खाएंगे, उसके लिए भी इस कोरोना काल में सोचना पड़ रहा है।
- अनिल, नाविक

लॉकडाउन के समय से ही हम आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। जब संभलने का समय आता है तो फिर कोरोना की लहर आ जाती है। हमें प्रशासन के आदेश फिर से मानने पड़ते हैं। ऐसे में हम कैसे अपना पेट भरेंगे।
- अज्जू, नाविक

शासन का आदेश मानने में हमे कोई परहेज नहीं है, लेकिन सरकार ये भी तो सोचे कि अगर हम कमाएंगे नहीं तो फिर कैसे अपना भरण-पोषण करेंगे। इस प्रकार तो हम सड़क पर आ जाएंगे।
- मनीष, नाविक

नौकायन करने वालों ने कहा
घाटों पर रोजाना यात्रियों की संख्या में कमी हो रही है। कोरोना के कारण पहले से ही लोगों का आना कम था और प्रशासन के आदेश के बाद लोग किसी झमेले में नहीं पडऩा चाहते हैं।
- लवकुश, स्थानीय निवासी

हम राजस्थान से वाराणसी पहली बार आए हैं। कोरोना के कारण शाम के समय घाटों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, इसलिए दिन में आकर नौकायान का लुत्फ ले रहे हैं।
- सुधा, सैलानी

मैं पहले भी यहां आ चुका हूं। इस बार आया तो नौका की सवारी करना नहीं भूला, हालाकि आरती के समय नौकायन का मजा ही अलग होता है, लेकिन इस बार मैं वंचित रह गया।
- विशाल, सैलानी

Posted By: Inextlive