बाबा के गण भूत प्रेत पिशाच ही नहीं यक्ष-गंधर्व भी बाबा के रंग में रंगे नजर आए परंपराओं को तोड़कर लड़कियां भी पहुंची मसाने

वाराणसी (ब्यूरो)काशी राग-विराग की भी नगरी है। यहां मृत्यु भी उत्सव है और काशी में परंपराओं की होली में चिता भस्म की होली राग-विराग को सजीवता देती है। मणिकर्णिका घाट पर मशाननाथ मोक्ष देने के लिए घाट पर मौजूद रहते हैं। ऐसे में विराग की परंपरा निर्वहन के क्रम में बाबा की नगरी में महाश्मशान घाट पर मोक्ष के लिए आने वालों की चिताओं की भस्म उत्सवी माहौल का हिस्सा बनी.

साधु-संतों संग युवाओं ने खेली होली

जीवन के शाश्वत सत्य से परिचित कराती स्थली महाश्मशान घाट पर होली खेलने अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय नजारा साक्षात देखने को मिला। एक तरफ धधकती चिता तो दूसरी तरफ चिता की भस्म से होली के महाउत्सव में काशी उमड़ पड़ी। क्या देशी क्या विदेशी, क्या साधु-संत सभी बाबा महाश्मशाननाथ संग होली खेलने में मगन रहे.

होलियाना मूड में बाबा की नगरी

गौना के मौके पर बाबा विश्वनाथ को अबीर-गुलाल लगाने के बाद बाबा की नगरी होलियाने मूड में आ गई है। बाबा के गौना के अगले दिन परंपराओं के मुताबिक बाबा के गण भूत, प्रेत, पिशाच ही नहीं, यक्ष-गंधर्व भी बाबा के रंग में रंगे नजर आए। शनिवार को महादेव के भक्तों ने महाश्मशान में जलती चिताओं के बीच चिता की भस्म से होली खेली। इस दौरान पूरा मणिकर्णिका घाट व गलियां हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंजा उठ। हर ओर डमरू की डमडमाहट के साथ चिता की भस्म से होली खेली जा रही थी.

हर कदम मणिकर्णिका की ओर

फगुआ मस्ती में हर उम्र चूर रहा और रंग-उमंग संग भांग-गोटी व ठंडई के सुरूर का गुरूर चढ़ता-उतरता रहा। सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चिता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में जुट गए थे। जहां दु:ख व अपनो से बिछडऩे का संताप देखा जाता था वहां आज शहनाई की मंगल ध्वनि, डमरुओं की निनाद गूंज रहा था। हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर रहे.

होरियारों की मंडली

महाश्मशान पर चिता भस्म की होली खेलने के लिए सुबह से ही शिवगणों की जुटान होने लगी थी। बीएचयू के छात्र, खाटी बनारसी हो या फिर विदेशी सभी इसमें शामिल होने के लिए लालायित रहे। हर-हर महादेव के उद़घोष के साथ होरियारों की मंडली मणिकर्णिका घाट की ओर बढ़ती रही। अबीर-गुलाल उड़ाते और महादेव का उद़घोष करते होरियारों की मंडली घाट की ओर बढ़ती रही.

जिसको जहां जगह मिला वहीं छेका

घाट किनारे से लगायत ललिता घाट तक जिसको जहां जगह मिला वहीं छेक कर खड़ा हो गया। चिता भस्म की होली देखने के लिए ऐसा भी समय आया जब यूथ की गलियां भी भीड़ से ठसाठस हो गयी। जो जहां था वहीं पर ठहर गया। भगदड़ की स्थिति आ गयी थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सभी कतारबद्ध होकर घाट की ओर चल दिए.

Posted By: Inextlive