-शहर के सरकारी अस्पतालों में बना है दवाइयों का संकट

-मरीजों को कभी भी नहीं मिलती पूरी दवा, बाहर की दवा लेना मरीजों की बनी मजबूरी

अगर आप सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए आ रहे हैं तो यह मत सोचिएगा कि इलाज के बाद वहां से मिलने वाली पूरी दवा मिल ही जाए। क्योंकि यहां अभी भी दवा का संकट है। इसलिए यहां इलाज के बाद दवा मिलना मुश्किल है। कोरोना संक्रमण की वजह से जिला अस्पताल पहले ही कोविड हॉस्पिटल में बदल दिया गया है। शहर में सिर्फ मंडलीय हॉस्पिटल में मरीजों का इलाज हो रहा है। मगर यहां पूरी दवा न मिलने से मरीज निराश होकर लौट रहे हैं। डायरिया के मरीजों को दिए जाने वाला आईसोलाइट एम फ्लूड, टायफाइड की एंटी बायोटिक दवा ओफ्लाक्सासीन, लियोफ्लाक्सासीन भी नहीं मिल पा रही है। खास बात यह है कि यूरिक एसिड की दवाओं का भी अस्पताल में टोटा है। मजबूरी में पेशेंट्स को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है।

जन औषधि केन्द्र भी कह रहे ना

अस्पताल में फ्री दवा न मिलने की वजह से मरीजों को बाहर बने मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यही नहीं अस्पताल में मरीजों को जो दवा नहीं मिलती उसे वे सस्ते रेट पर खरीद सके इसके लिए हॉस्पिटल कैंपस में ही प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र बनाया गया है, लेकिन यहां भी 50 फीसदी से ज्यादा दवाएं नदारत ही रहती है। अब ऐसे में यहां भी दवा न मिलने से मरीजों को थक हारकर अपनी जेब ढीली करनी ही पड़ती है।

क्यों हो रहा है ऐसा

दरअसल, शासन ने दवाइयों के लिए दिए जाने वाले बजट को बंद कर दिया है। ऐसे में कम सप्लाई के चलते अस्पतालों में दवाइयों का संकट कभी भी खड़ा हो जा रहा है। अब बनारस में मेडिसिन यूपी स्टेट कॉरपोरेशन के तहत वेयर हाउस से दवाएं पहुंच रही है। जब तक बनारस में वेयर हाउस नहीं बन जाता तब तक लखनऊ से दवा मंगायी जाएगी। इधर अधिकारियों का कहना है कि वेयर हाउस से ही पूरी दवा न आने की वजह से समस्या खड़ी हो जाती है।

ऐसे होगी मॉनिटरिंग

शासन की ओर से अभी तक स्वास्थ्य विभाग, जिला अस्पताल व मंडलीय अस्पताल व राजकीय महिला अस्पताल के लिए दवाइयों का अलग-अलग बजट भेजा जाता था। इसमें सीएचसी-पीएचसी भी शामिल है। हालिया योजना के तहत अब शासन ने अलग-अलग बजट न देकर प्रदेशभर में दवाइयों के लिए अलग से कॉरपोरेशन तैयार कर दिया है। इसी सिस्टम से अस्पतालों को दवाइयों का स्टॉक, डिमांड मेंटेन करना पड़ रहा है।

एक महीने का स्टॉक

पं। दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल व मंडलीय अस्पताल में मांग के अनुसार सप्लाई न होने की वजह से दवाइयों का संकट हमेशा बना रहता है। इस नई व्यवस्था से यह संकट पहले से ज्यादा गहराता जा रहा है। ऐसा इसलिए कि वेयर हाउस से अस्पतालों को उन्ही दवाईयों की सप्लाई हो रही हे जो उनके स्टॉक में उपलब्ध होगा। फिलहाल मंडलीय अस्पतालों में एंटी बॉयोटिक, पेन किलर, हार्ट, बीपी समेत तमाम दवाइयों का स्टॉक नहीं है।

दोनों अस्पतालों में रहता है टोटा

शहर में मंडलीय और डीडीयू दो ऐसे सरकारी अस्पताल हैं जहां अभी तो नहीं लेकिन आम दिनों में डेली चार से साढ़े चार हजार पेशेंट इलाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मरीजों को पूरी दवा मिल जाए। आए दिन दवाओं की किल्लत बनी रहती है। दवाएं नहीं मिलने से मरीजों को बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती है। मंडलीय अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि अब वे खुद कोई भी दवा नहीं खरीद सकते। अब जो दवाएं आएंगी वही मरीजों को दी जाएंगी।

फैक्ट फीगर

2500

के करीब पेशेंट डेली पहुंचते हैं मंडलीय हॉस्पिटल

2000

के करीब पेशेंट इलाज के लिए पहुंचते हैं डीडीयू हॉस्पिटल

01

करोड़ रूपए के करीब दवाओं की खपत है एक अस्पताल में

शासन की तरफ से मिलने वाले बजट को बंद कर दिया गया है। दवाइयों के लिए शिवपुर में वेयर हाउस बनाया जा रहा है। वहीं से दवाइयों की सप्लाई की जाएगी। इनकी मॉनिटरिंग डीवीडीएमएस से की जाएगी। रही बात दवा पूरी न मिलने की तो इसकी कमी जल्द पूरी की जाएगी।

डॉ। वीबी सिंह, सीएमओ

Posted By: Inextlive