बीएचयू और अमेरिका की चैपमैन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का खुलासा मणिकर्णिका समेत कई घाट 30 से 50 मिमी. नीचे खिसके


वाराणसी (ब्यूरो)बनारस की सड़कें ही नहीं, बल्कि गंगा घाट के धंसने का खतरा भी बढ़ गया है। लगातार भूजल की कमी होने से गंगा का प्रवाह प्रभावित हो रहा है। साथ ही मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, सामने घाट, प्रहलाद घाट, गाय घाट और चौसट्टी घाट खतरे की जद में हैं। कई घाटों पर दरारें भी नजर आ रही हैं। कुछ घाट दरकने भी लगे हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा बीएचयू और अमेरिका की चैपमैन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। फरवरी 2017 से लेकर अगस्त 2023 के बीच इन 6 वर्षों में मणिकर्णिका घाट और दशाश्वमेध घाट 23 मिमी। से अधिक पानी में डूब गए हैं। सामने घाट और प्रहलाद घाट पर गंगा प्रवाह में परिवर्तन की वजह से कटाव 50 मिमी। से अधिक हो गया है, जबकि गाय घाट और चौसट्टी घाट में यह 33 मिमी। से अधिक है। वहीं, अस्सी घाट, राजा हरिश्चंद्र घाट, राजा चेत सिंह घाट भी डूब क्षेत्र के कगार पर पहुंच रहे हैं। गंगा की गहराई में बनी रेत, गाद और मिट्टी की परतें बीएचयू और चैपमैन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट डाटा को भूजल और वर्षा माप के साथ जोड़कर नदी के किनारे प्रति वर्ष 2 मिमी। से 8 मिमी। तक भूमि धंसने की दर की गणना की है। 2003 से 2023 तक अमेरिकी सैटेलाइट और केंद्रीय-राज्य भूजल बोर्डों से डाटा का उपयोग करके भूजल परिवर्तनों का आकलन किया गया है। फरवरी 2017 से 2023 तक जमीनी विस्थापन की जानकारी के लिए एक यूरोपीय सैटेलाइट का डाटा भी उपयोग किया है। पिछले एक दशक में कई अध्ययनों से पता चला है कि हिमालय की तलहटी से लेकर भारत-गंगा के मैदानी एरिया तक जमीन के विशाल हिस्से में भूजल की कमी तेजी से हुई है। इससे सिंधु-गंगा के मैदान प्राचीन चट्टान से 4.9 किमी की औसत गहराई तक एक-दूसरे के ऊपर रेत, गाद और मिट्टी की परतें बन गई हैं. पैदा हो रही भू-वैज्ञानिक स्थितियां शोधकर्ताओं ने साफ किया है कि गंगा का प्रवाह प्रभावित होने की वजह से अलग तरह की भू-वैज्ञानिक स्थितियां पैदा हो रही हैं, जिसने वाराणसी के ऐतिहासिक नदी तट पर जमीन धंसने के खतरे को बढ़ा दिया है। सीढिय़ों के नीचे हो रहा कटान गंगा उस पार रेत के बढ़ते टीले के कारण पानी का दबाव घाटों की ओर बढ़ गया है, जिसके कारण घाटों की सीढिय़ों के नीचे कटान हो रहा है और सीढिय़ां खोखली होती जा रही हैं। इस कारण कई घाटों पर सीढिय़ां अब बैठ गई हैं। भदैनी घाट के अलावा चेतसिंह घाट, पंचगंगा घाट समेत कई घाटों पर ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है. भूजल की कमी से धंस रही जमीन चैपमैन यूनिवर्सिटी के राजू के अनुसार भूजल रेत की परतों के भीतर फंसा हुआ है और इसकी कमी से मिट्टी की परतों में गड़बड़ी आ गई है। इससे भूजल पूर्ति में रुकावट पैदा होती है। इसी वजह से जमीन धंसने का खतरा बढ़ जाता है। भूजल की कमी दुनिया के कई स्थानों पर भूमि धंसने से जुड़ी हुई है। इसमें भारत-गंगा के मैदानी इलाकों से लेकर चंडीगढ़, दिल्ली और लखनऊ जैसे शहर भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक स्रोतों को दरकिनार कर किए जा रहे कॉस्मेटिक वर्क भी खतरा बन गए हैं। घाटों के साथ ऐतिहासिक इमारतों को भी खतरा गंगा बेसिन अथॉरिटी के पूर्व सलाहकार प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने बताया, लगातार कटान के कारण घाटों के अलावा ऐतिहासिक इमारतों पर भी खतरा मंडरा रहा है। सीढिय़ों के नीचे से मिट्टी पानी के बहाव में बह रही है। इससे सीधे तौर पर घाटों की सीढिय़ों को नुकसान हो रहा है। क्या है कटान की मुख्य वजह प्रोफेसर त्रिपाठी के अनुसार गंगा उस पार बालू के टीले बढ़ते चले जा रहे हैं, उससे गंगा के पानी का प्रेशर घाटों की तरफ आया। प्रेशर जब घाटों की तरफ आएगा तब वहां पर ऊपरी सतह की मिट्टी कटनी शुरू हो जाती है। कई जगह यह देखा गया कि घाट के अंदर पाल बन गया था। यदि गंगा में जल का प्रवाह बढ़ाया जाए तो इससे इन समस्याओं को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। गंगा का जल जब घाटों की सीढिय़ों से होकर बहेगा तो इससे कटान रुकेगी और सीढिय़ों के नीचे की मिट्टी भी नहीं कटेगी. - प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी, गंगा बेसिन अथॉरिटी के पूर्व सलाहकार Posted By: Inextlive