चार सदस्यीय कमेटी गठित की मौके पर जाकर जांच करने का दिया निर्देश चार सप्ताह में जांच टीम को मौके पर जाकर वस्तूस्थिति का जायजा लेने का निर्देश तीन माह में खनन की पूरी रिपोर्ट बनाकर कोर्ट के सामने पेश करने का दिया आदेश

वाराणसी (ब्यूरो)वाराणसी में गंगा घाट उस पार नदी में नियम विरुद्ध बालू खनन के मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अब कड़ा रूख अपनाया है। गंगा पार बालू के अवैध खनन के मामले में जांच कमेटी बनाई गई है। एनजीटी कोर्ट में दो सदस्यीय पीठ न्यायमूर्ति ब्रजेश सेट्ठी तथा पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ। अफरोज अहमद के समक्ष दायर याचिका अवधेश दीक्षित बनाम भारत सरकार में याचिकाकर्ता की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने पक्ष रखते हुए बताया कि गंगा में खनन में किस तरह खेल किया जा रहा है। इसका संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने पूरे प्रकरण की जांच के लिए चार सदस्यीय टीम बनाई है। टीम को तीन माह में रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही चार हफ्ते के अंदर मौके पर जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने का निर्देश भी दिया गया है.

क्या दिया गया आर्डर

एनजीटी कोर्ट की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि यह गंभीर मुद्दा है। आरोप इतने संगीन हैं कि अब ये सभी के लिए जानना जरूरी हो गया है कि आखिर वास्तविकता क्या है। जांच टीम को निर्देश दिया गया है कि चार हफ्ते में साइट पर जाएं और जहां-जहां भी खोदाई हुई है, उसे चेक करें। वास्तविक स्थिति क्या है, उसकी तीन महीने के अंदर पूरा रिपोर्ट दें।

आदेश की हुई अवमानना

कोर्ट में दलील दी गई कि यह पूरा खनन सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के फैसले के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार और एनजीटी की ओर से सुदर्शन दास बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल केस में खनन की गाइड लाइन जारी की गई थी। वाराणसी में गंगा पार बालू खनन में उस गाइड लाइन की धज्जियां उड़ाई गई हैं।

ये है पूरा मामला

गंगा में वाटर चैनल बनाने के उद्देश्य से लगभग पांच किमी में अस्सी घाट से लेकर राजघाट के बीच नहर का निर्माण सिंचाई विभाग की ओर से कराया गया। इसमें लगभग 12 करोड़ रुपए खर्च किए गए। तर्क दिया गया कि गंगा में पानी के दबाव को कम करने व घाट बचाने के लिए पांच किमी नहर का निर्माण कराया गया है। लेकिन विभाग की ओर से नहर निर्माण से पहले किसी एक्सपर्ट की राय तक नहीं ली गई, जबकि इनवायरमेंटल मामलों में डिस्ट्रीक्ट सर्वे रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसके बाद इनवायरमेंटल इंफेक्ट असेसमेंट किया जाता है, लेकिन यहां कुछ नहीं कराया गया.

प्रशासन की भूमिका संदिग्ध

अधिवक्ता सौरभ तिवारी की ओर से पेश दलीलों से एनजीटी संतुष्ट नजर आई। अधिवक्ता ने बताया था कि स्थानीय प्रशासन की भूमिका पूरे मामले में संदिग्ध है। इसकी वजह से हजारों ट्रैक्टर बालू का रोज उठान पर्यावरण के नियमों को ताख पर रखकर किया गया तथा गंगा के तट को नुकसान पहुंचाया गया है.

याचिका में लगे आरोप

- गंगा में हो रहा बालू का अवैध खनन

- जब नहर ही नहीं तो गंगा में खनन क्यों

- एरिया का डिमार्केशन भी नहीं

- अवैध खनन में पोकलेन जैसी मशीन का इस्तेमाल किया गया

- डीएसआर तैयार नहीं

- इनवायरनमेंट इंफेक्ट असेसमेंट नहीं

- मौके पर सीसीटीवी नहीं

- नियमित पेट्रोलिंग नहीं

- प्रतिदिन रिपोर्टिंग नहीं

जांच टीम में ये बने सदस्य

1. राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण

2. उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

3. नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा

4. जिलाधिकारी वाराणसी

पर्यावरण के विरुद्ध जो भी खनन हो रहा है, वह पूर्ण रूप से गलत है। गंगा बालू उठाव के मामले में डीएम का आदेश ही गलत है। जिस खनन का टेंडर कभी हुआ ही नहीं वह खनन हो कैसे रहा है। एनजीटी मामले को लेकर गंभीर है और जल्द ही दोषियों पर कार्रवाई होगी.

- सौरभ तिवारी, अधिवक्ता

एनजीटी कोर्ट का आदेश स्वागत योग्य है। मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा है कि अनियमितता बरतने वालों को सजा मिलेगी। ताकि मां गंगा के साथ खिलवाड़ दुबारा न हो सके.

अवधेश दीक्षित, याचिकाकर्ता

Posted By: Inextlive