मैदागिन उपदेश स्थली पर हर दिन संत रविदास देते थे संदेश

वाराणसी (ब्यूरो)काशी के कण-कण में भगवान शंकर का वास है और संतों का स्थान भी है। यहां जन्म लेने वाला संत के समान है। 15वीं शताब्दी में संत कबीर व संत रविदास ने समाज में भाईचारा बढ़ाने और कुरीतियों को खत्म करने के लिए घूम-घूमकर संदेश दिया था, लेकिन विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में मैदागिन पर संत रविदास हर दिन उपदेश दिया करते थे। इसलिए मैदागिन को उनकी उपदेश स्थली कहा गया। इसी जगह पर उन्होंने मीराबाई को भी उपदेश दिया था। संत रविदास के उपदेश से ही मीराबाई ने अध्यात्म और भक्ति की राह पकड़ी थी। संत रविदास ने सामाजिक समरसत्ता के ढांचे को मजबूती प्रदान की है और उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाया है.

प्रतिदिन देते थे उपदेश

महंत भारत भूषण दास ने बताया कि मैदागिन पर ही संत गुरु रविदास अपने भक्तों को उपदेश दिया करते थे। मैदागिन स्थित उपदेश स्थली पर ही उन्होंने मीराबाई को भी उपदेश दिया था। संत रविदास के उपदेश से ही मीराबाई ने अध्यात्म और भक्ति की राह पकड़ी थी। मान्यता है कि गुरु रविदास यहीं पर सत्संग कर रहे थे और मीराबाई इसी रास्ते से मंदिर जा रही थी। आते समय उन्होंने देखा कि एक भगत के घर में कुछ लोग इकट्ठे हो गए हैं। दो भक्त वहां बैठे थे तो मीराबाई ने पूछा कि इतनी भीड़ क्यों लगी हुई है। पता चला कि संत रविदास सत्संग कर रहे हैं। सत्संग शुरू हुआ और संत ने परमात्मा और सृष्टि की रचना के रहस्यों के बारे में बताया। सत्संग का ऐसा प्रभाव पड़ा कि मीरा के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया.

संतन में रविदास

कबीर ने संतन में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रविदास का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। रैदास के चालीस पद पवित्र धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहब में भी सम्मिलित हैं।

मीरा के गुरु

कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे। उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊंच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। वे संत कबीर के गुरुभाई थे। मन चंगा तो कठौती में गंगा यह उनकी पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती हैं.

Posted By: Inextlive