आरटीआई के तहत नहीं मिलती कोई जानकारी डीएम समेत कई अफसरों पर लग चुका है जुर्माना

वाराणसी (ब्यूरो)फरवरी से जून तक जिले के 125 अधिकारियों पर प्रार्थना पत्रों का जवाब न दिए जाने या शिथिलता बरतने पर जुर्माना लगाया गया। साथ ही अर्थदंड संबंधित अधिकारी के वेतन से काटकर राजकोष में जमा कराने को कहा गया था। सूचना के अधिकार में लापरवाही के लगातार मामले सामने आने पर खुद प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती ने सर्किट हाउस सभागार में कैंप लगाकर आम लोगों की शिकायतें सुनी थी और जन सूचना अधिकारियों को लताड़ लगाते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए थे.

केस-1

सूचना से जुड़े एक मामले में अपर नगर मजिस्ट्रेट व जनसूचना अधिकारी पुष्पेंद्र पटेल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। कालोनाइजर से ठगी की शिकार रामनगर की महिला ने कार्रवाई के बारे में सूचना मांगी थी, लेकिन इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई थी.

केस-2

बीएचयू के अंदर एक पेट्रोल पंप था, जिसे हटाकर परिसर की ही भूमि पर सुंदरपुर-लंका रोड पर बना दिया गया। इस संबंध में डीएम से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई। लेकिन, सूचना नहीं दी गई। इस मामले को राज्य सूचना आयोग ने डीएम पर 25,000 रुपये जुर्माना लगाया था.

केस-3

चार साल तीन माह में परिवहन विभाग द्वारा समय से सूचना उपलब्ध नहीं कराने पर राज्य सूचना आयुक्त ने एआरटीओ (प्रशासन) पर 25 हजार रुपये जुर्माना किया था। आयुक्त ने प्रतिदिन 250 रुपये के हिसाब से जुर्माना करते हुए उनके वेतन से जुर्माना राशि तीन माह के अंदर वसूलने का निर्देश दिया था। यह तीन मामले सिर्फ उदाहरण हैं। बनारस में सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी देने में अधिकतर विभाग हीलाहवाली करते हैं।

एक हजार से अधिक की सुनवाई

सर्किट हाउस सभागार में चार दिवसीय कैंप का आयोजन किया गया था। हर दिन करीब 250 से प्रकरणों की सुनवाई होती थी। बनारस में ही जन सुनवाई करने के पीछे की मुख्य वजह थी कि सूचना आयोग, लखनऊ में होने पर आने-जाने में लोगों का समय और पैसा फालतू खर्च होता था। इसीलिए सुनवाई करने के लिए जिले में आयोग ने व्यवस्था की थी.

धारा 4-1 बी का अनुपालन जरूरी

जन सूचना अधिकार अधिनियम की भावना के अनुसार प्रार्थना पत्रों का निस्तारण समय से करने का निर्देश दिया गया है। प्रार्थना पत्रों का निस्तारण प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित किया जाए, ताकि बिना वजह आयोग की कार्रवाई से आप बच सकें। जन सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 4-1 बी का अनुपालन सुनिश्चित कराएं। आवेदक को प्रमाणित जवाब उपलब्ध कराया जाए और जो प्रार्थना पत्र उनसे या उनके विभाग से संबंधित न हो, उन्हें संबंधित अधिकारी और विभाग को हर दशा में पांच दिन के अंदर उपलब्ध करा दें.

आरटीआई के तहत लोगों को जानकारी मांगने का अधिकार है, लेकिन वाराणसी में कैंप के दौरान बड़ी संख्या में लापरवाही सामने आई थी। हालांकि अधिकारियों को शिथिलता नहीं बरतने का आदेश दिया गया है। आरटीआई के जवाब को लेकर ऐसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी.

अजय कुमार उप्रेती, राज्य सूचना आयुक्त

Posted By: Inextlive