भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भाई दूज का पर्व परंपरागत ढंग से मनाया गया. यह पर्व रक्षा बंधन के पर्व से भी पहले से सनातनी संस्कृति का हिस्सा रहा है. शनिवार को भाई दूज का टीका करने के लिए बहनों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय मिला है.

वाराणसी (ब्यूरो)। गोधना कूटने की रस्म सुबह-सबेरे पूरी करने के बाद बहनों ने भाइयों को टीका कर उनके दीर्घायु की कामना की। गोधना कूटने के लिए महिलाओं ने समूह में बैठ कर रूई में बेसन लगा कर लंबी मालाएं बनाईं। मान्यता यह है कि रूई और बेसन की माला जितनी लंबी होगी। भाई की उम्र उतनी ही लंबी होगी।

कुंमभटकइया के काटें चुभोए
टोटका काटने के लिए बहनों को भाईयों को श्राप दिए। इसके बाद बहनों ने अपनी जीभ पर कुंमभटकइया के काटें चुभोए। इस दौरान महिलाओं ने एक दूसरे को कई लोक कथाएं भी सुनाईं। स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण दोनों में ही इस पर्व की महत्ता का वर्णन किया गया है।

भाई अपनी बहनों के घर पहुंचे
शास्त्रों में इस संदर्भ का निरूपण नारी सम्मान के रूप में किया गया है। परंपरा का निर्वाह करते हुए भाई अपनी बहनों के घर पहुंचे। टीका आदि की रस्म के बाद बहनों के हाथ का पका हुआ भोजन ग्रहण किया। इसके उपरांत अपनी सामर्थ के अनुसार द्रव्य, वस्त्र, मिष्ठान आदि भेंट कर बहनों का आदर किया। अविवाहित और छोटी बहनों को उनकी इच्छानुसार भेंट दिए।

सामूहिक गोधना पूजन किया
गोधना पूजन के लिए मोहल्ले-मोहल्ले में महिलाएं किसी एक घर में इक_ा हुईं। वहीं आदमपुर, सारनाथ, सुंदरपुर, चितईपुरा, डीएलडब्ल्यू, चांदपुर, लहरतारा, कैंटोमेंट, पांडेयपुर, शिवपुर आदि इलाकों में महिलाओं का समूह मंदिरों, तालाबों और कूपों के पास इक_ा होकर महिलाओं ने सामूहिक गोधना पूजन किया।

Posted By: Inextlive