-17 डिपार्टमेंट मिलकर भी नहीं कर पा रहे एयर पॉल्यूशन कंट्रोल

- प्रदूषण के मामले में देश के टॉप टेन शहरों में बनारस भी है शामिल

- छह करोड़ का बजट होने के बाद भी जिला प्रशासन नहीं है गंभीर

लॉकडाउन ने भले ही रोजगार को छीन लिया मगर इससे सबसे बड़ा फायदा नेचर को हुआ था। मार्च अप्रैल में शहर का पॉल्यूशन लेवल बेहद नीचे आ गया था। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे इस शहर पर जमीं धूल को किसी ने साफ कर दिया। शुद्ध हवा में सांस लोग ले रहे थे। मगर जैसे ही अनलॉक स्टार्ट हुआ और लोग बाहर निकले पॉल्यूशन एक बार फिर लौटने लगा। अब तो प्रदूषण अपने पुराने रौ में आ रहा है। जबकि हर साल इसे कंट्रोल करने के लिए करोड़ों खर्च होते हैं। बावजूद इसके सर्दी में यह शहर गैस चैंबर में बदल ही जाता है। कोरोना काल में कितना खतरनाक है पॉल्यूशन, क्यों नहीं हो पा रहा कंट्रोल और क्या किये जा रहे उपाय पर पढि़ये ये स्पेशल रिपोर्ट

बढ़ने लगा पॉल्यूशन

द क्लाइमेंट एजेंडा की एक्सपर्ट सानिया अनवर के मुताबिक हवा में हानिकारक गैसों का घनत्व खतरे के निशान पर पहुंचने लगा है। यूपी में बनारस मोस्ट पॉल्यूटेड सिटीज की लिस्ट में पहले ही आ चुका है। वक्त के साथ सिटी में पॉल्यूशन कम होने की बजाय दोगुनी रफ्तार से बढ़रहा है। हालांकि इस बार सíदयों से पहले ही पॉल्यूशन पर वार शुरू हो चुका है। बनारस को गैस चैंबर बनने से रोकने के लिए परमानेंट सॉल्यूशन पर काम बेहद कम होता है। जबकि आंकड़े कम करने के लिए सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पॉल्यूशन सेंसर के 2 किमी। के दायरे में सारे प्रयास सीमित हो जाते हैं।

17 विभागों को मिली है जिम्मेदारी

एयर पॉल्यूशन को कम करने के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम देश के 112 शहरों में लागू किया गया। जिसमें वाराणसी समेत यूपी के 15 शहर शामिल है। इन तमाम शहरों में 2024 तक एयर पॉल्यूशन को 20-30 परसेंट कम करने टारगेट दिया गया है। वहीं बनारस में 58 पॉइंट्स का एक एक्शन प्लान तैयार किया गया है। जिसमें लगभग 17 अलग अलग विभागों को नियमित और लंबे समय सीमा के साथ जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन अभी तक कोई भी विभाग गंभीरता से काम नहंी कर रहा।

विभाग कर रहे सिर्फ खानापूर्ति

यह एक्शन प्लान प्रदेश के 15 शहरों को 3 अलग अलग भागों में बांट कर जारी किया गया है। जिसमे पहले फेज में वाराणसी, आगरा, कानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद आदि है। अब बात की जाए इन योजनाओं के व्यवहारिक रूप से लागू करने कि तो इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य विभाग कुछ खास अप्रोच नहीं अपना रहे हैं। जब मीडिया में पॉल्यूशन को लेकर खबरे प्रकाशित होती है तो मामले को संज्ञान में लेकर एक्शन के तौर पर अर्दली बाजार (जहां मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित है) उसके आस पास के इलाकों में पानी का छिड़काव कर खानापूíत कर ली जाती है।

क्या किया एक साल में

एक्शन प्लान बने एक साल बीत चुके है। मगर कही कोई खास व्यवस्था नहंी की गई। नगर निगम में सिर्फ एक मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन को लाया गया, मगर वो भी सड़कों पर दिखाई नहीं दे रहा। शहर के सड़कों की स्थिति बेहद खस्ताहाल है, डीजल पेट्रोल से चालित वाहनों की पीयूसी जांच की और वाहनों से होने वाले प्रदूषण को अभी भी सीरियसली नहीं लिया जा रहा है।

समस्या गंभीर है

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को सेहत के लिए नुकसानदायक बता रही है। पíटकुलेट मैटर (पीएम 2.5), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओटू), सल्फर डाईऑक्साइड (एसओटू) समेत अन्य गैसों की मात्रा में तमाम प्रयासों के बाद लगातार इजाफा हो रहा है।

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इसलिए बढ़ता जा रहा पॉल्यूशन

1. लेस ग्रीनरी

33 परसेंट ग्रीनरी पॉल्यूशन कम करने के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन मौजूदा समय में सिटी में 5 परसेंट से भी कम ग्रीनरी है। हालांकि नगर निगम ने इस साल मियावाकी पद्धति से इस करीब एक लाख पौधे लगाए हैं। जिसका असर आने वाले सालों में दिखेगा।

2.डस्ट पॉल्यूशन

10 परसेंट डस्ट पॉल्यूशन को हर साल पानी के छिड़काव से कम करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन पॉल्यूशन बढ़ता ही जाता है। न तो यहां सालों से जमा डस्ट को हटाया जाता है और न ही इनकी जगह इंटरलॉकिंग टाइल्स आदि बिछाई जाती हैं।

3. मैकेनिकल स्वीपिंग

मैकेनिकल स्वीपिंग के लिए सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने पिछले साल नगर निगम को पैसे दिए थे। कुछ माह पहले एक मशीन भी आई, लेकिन यह अभी भी सड़कों से गायब है। जबकि पहले से मौजूद एक मशीन खड़े-खड़े खराब हो रही है।

4. बदहाल सड़कें

20 परसेंट पॉल्यूशन डस्ट से होता है। शहर के सिगरा, रथयात्रा, गोदौलिया समेत कुछ मुख्य सड़कों को छोड़ दे तो तमाम ऐसी सड़के हैं, जहां डस्ट पॉल्यूशन सबसे ज्यादा है। गंदगी भी है। लेकिन इन्हे साफ कराने पर ध्यान नहीं दिया गया। सिटी में 30 से ज्यादा सड़कें डस्ट पॉल्यूशन का बड़ा सोर्स हैं।

5. कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलेशन

एनजीटी के आदेशों को दरकिनार सिटी में धड़ल्ले से निर्माण और डिमोलेशन होता है। सिर्फ सदियों में इसे रोका जाता है। जबकि केडीए, नगर निगम, आवास विकास समेत सभी विभागों को पूरे साल इस पर काम करना चाहिए। 25 परसेंट पॉल्यूशन इससे होता है।

6. व्हीकल पॉल्यूशन

20 परसेंट पॉल्यूशन सिटी में व्हीकल से होता है। लेकिन सड़कों पर 15 साल पुराने रजिस्ट्रेशन वाले व्हीकल भी धड़ल्ले से दौड़ते हैं। सिटी में 05 लाख से ज्यादा व्हीकल सड़कों पर दौड़ रहे हैं।

कुछ प्रयास भी हुआ

-पॉल्यूशन सेंसर- स्मार्ट सिटी के तहत दर्जन भर चौराहों के लोकेशन पर पॉल्यूशन सेंसर लगाए गए हैं। जो रोजाना पॉल्यूशन का डाटा रिकॉर्ड करते हैं, लेकिन वर्तमान में ये भी सुस्त हो गए हैं।

सिटी में पॉल्यूशन के बड़े सोर्स

व्हीकल- 20 परसेंट

कंस्ट्रक्शन व डिमोलेशन- 25 परसेंट

रोड डस्ट- 25 परसेंट

कूड़ा जलाने से- 5 परसेंट

एग्रीकल्चर वेस्ट जलाने से- 5 परसेंट

इंडस्ट्री व धुआं से-20 परसेंट

ये भी हैं वजह

-सकरी सड़कों की वजह से लगने वाले भीषण जाम की वजह से गाडि़यां जहर उगलती हैं

-जेनरेटर के बढ़ते इस्तेमाल से भी शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है

-कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहे शहर में हरियाली नाममात्र की है

-हरियाली न होने की वजह से प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है

-कचरा जलाना और डीजल का उपयोग

-कचरा निस्तारण प्रणाली के अभाव में कचरा जला देना

इंडियन इंडेक्स के अनुसार पीएम 10 का स्तर 100 व पीएम 2.5 का स्तर 60 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

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क्लाइमेट एजेंडा लगातार शहर में वायु प्रदूषण की रोकथाम को गठित समिति से संपर्क करने का प्रयास कर रहा है। पिछले सप्ताह डीएम को इस संबंध में ज्ञापन सौंपा गया है। वहां से योजनाओं के क्रियान्वयन पर अश्वासन दिया गया है। इसके साथ ही संस्था द्वारा जनअभियान के माध्यम से व्यापक रूप से हस्तक्षेप करने की योजना है।

एकता शेखर, मुख्य अभियानकर्ता, द क्लाइमेट एजेंडा

Posted By: Inextlive