-स्पेन की मारिया लुईस को संस्कृत यूनिवर्सिटी में मिला गोल्ड मेडल

-दस साल पहले इंग्लैंड की एविएशन कंपनी में एयर होस्टेस लुईस चकाचौंध की जिंदगी छोड़ पहुंच गयीं बनारस

-संस्कृत, संस्कृति और आध्यात्म ने मारिया को बनाया देवांगी

चकाचौंध भरी जिंदगी को छोड़ अपने वतन से हजारों मील दूर संस्कृत की पढ़ाई करने आना आसान नहीं है। पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ी एक विदेशी लड़की ने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और आध्यात्म को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है। यहां बात स्पेन की मारिया लूईस की हो रही है। पेशे से एयर होस्टेस मारिया यहां आने से पहले 1.80 लाख रुपये सेलरी पा रही थीं। लेकिन संस्कृत के प्रति ललक ने उन्हें बनारस आने पर मजबूर कर दिया। कुछ ऐसा ही नजारा दिखा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में। विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडल पाने वाले स्टूडेंट्स की लिस्ट में स्पेन की मारिया लुईस भी थीं। जिन्हें पूर्व मीमांसा विषय में गोल्ड मेडल प्रदान किया गया।

दस साल में बनी देवांगी

लुईस ने सिर्फ संस्कृत को ही नहीं अपनाया है बल्कि वह पूरी तरीके से भारतीय आध्यामिक माहौल में भी रच बस गई हैं। यहां से वह पश्चिमी देशों को यह संदेश देना चाह रही हैं कि भारतीय वेद पुराणों व शास्त्रों के ज्ञान का नशा सब पर भारी है। इग्लैंड की इजी जेट कंपनी में एयर होस्टेस रहीं मारिया लुईस महज 10 सालों में देवांगी बन गयीं। यहां योग, ध्यान और अध्ययन में ही उनका पूरा समय बीतता है। बताया कि टूरिज्म बीजा पर सन् 2008 में दो महीने के लिए वह बनारस घूमने आयीं थीं। इस बीच कई बार संस्कृत यूनिवर्सिटी में वह पहुंची। इसके बाद तो उन्होंने यहां एडमिशन लेकर पढ़ाई करने का निर्णय लिया। और अब मारिया से शिवांगी बन गयी हैं।

तीन साल में सीखा हिंदी व संस्कृत

भारतीय भाषा से अनभिज्ञ मारिया लुईस के इच्छाशक्ति का परिणाम रहा कि तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद वह पूरी तरीके से हिंदी व संस्कृत पढ़ने और लिखने लगीं। मैक्सिको में सन् 1980 में पैदा हुई मारिया स्पेनिश, इटैलियन, जर्मन, इंग्लिश भाषा बोलने व लिखने में दक्ष हैं। अब तो संस्कृत व हिंदी भी फर्राटेदार बोलती हैं। स्पेन में रहने वाले मारिया के दो भाई व मां भी अपनी एकलौती बेटी में आए परिवर्तन को ईश्वर का वरदान मानती हैं। मारिया बताती हैं कि उनकी मां उन पर फक्र करती हैं। मारिया ने बताया कि अंग्रेजी सीखने के लिए वो आयरलैंड गयी थीं। बनारस आने के पहले सन् 2005 में आयरलैंड से टूरिज्म स्टडीज व स्पेन से सोशल वर्क में ग्रेजुएशन की डिग्री सन् 2008 में प्राप्त किया है।

संस्कृत प्रमाणपत्रीय व शास्त्री में भी कोर्स

वाराणसी आयीं मारिया ने सबसे पहले संस्कृत यूनिवर्सिटी से प्रमाणपत्रीय का कोर्स किया। इसके बाद शास्त्री की डिग्री हासिल की। फिर यूनिवर्सिटी के एमए पूर्व मीमांसा कोर्स में एडमिशन लिया। इसी बीच उन्हें आईसीएसआर से संस्कृत के अध्ययन के लिए स्कॉलरशिप भी मिल गयी। जिससे उनकी पढ़ाई आसान हो गयी। गोल्ड मेडल तक के सफर के बारे में बताया कि पूर्व मीमांसा विषय के अध्ययन में उनके शिक्षक प्रोफेसर कमलाकांत त्रिपाठी का बहुत बड़ा रोल रहा है।

सूर्य आराधना व योग से शुरुआत

मारिया लुईस से भारतीय संस्कृति में परिवíतत हुई देवांगी की दिनचर्या सूर्य की पहली किरण से पहले भोर में करीब 3:00 बजे उठना स्नान, ध्यान, पूजन व योग के बाद अपने हाथों से खुद के लिए भोजन पकाना तथा उसके बाद अध्ययन। शाम को ध्यान व आराधना करती हैं। बताया कि उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी योगानंद परिव्राजक जी महाराज हैं। जिनके मार्गदर्शन में वह अपनी आध्यात्मिक दिनचर्या की रूपरेखा बनाती हैं।

पिता बनाना चाहते थे साइंटिस्ट

स्पेन के न्यूक्लियर प्लांट में इंजीनियर पिता की चाहत तो कुछ और ही थी। वो चाहते थे कि मारिया साइंटिस्ट बने। लेकिन उसकी मंजिल तो कुछ और थी। वो टूरिज्म स्टडीज में डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी करने लगीं, फिर सोशल वर्क में ग्रेजुएशन कर समाजसेवा में लग गयीं। यहां भी मन नहीं लगा। बचपन से संस्कृत की ओर रुझान ने उन्हें बनारस पहुंचा दिया और वो यहां की होकर रही गयी हैं। 40 वर्षीय मारिया उर्फ देवांगी गृहस्थ जीवन यानी विवाह को सिरे से नकारती हैं उनका मानना है की ईश्वर ही उनका सब कुछ है। बताया कि पीएचडी कर संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन में पूरा जीवन बीताने की मंशा है।

मां भेजती हैं पैसे

बांसफाटक स्थित आश्रम में वेदपाठी बच्चों संग रहकर अध्ययन करने वाली मारिया का जीवन तड़क भड़क से काफी दूर हो चुका है। फर्श पर सोना, अपना सारा काम खुद से करना, यूनिवर्सिटी तक अक्सर पैदल आना, यह उनकी जीवनशैली में शुमार हो चुका है। हालांकि उनके खर्च के लिए स्पेन में भाईयों संग रहने वाली मां लगभग हर महीने 20 हजार रुपये भेजती हैं। बताया कि ये पैसे भी साथ रहने वाले बच्चों पर खर्च कर देती हूं।

Posted By: Inextlive