इस देश की मिट्टी की यह महानता है कि इसने कभी अपने वीर सपूतों को नहीं भूलाया. उनके बताये मार्ग पथ प्रदर्शक बने. आज बदलते परिवेश में यह बेहद जरूरी है कि देश की अखंडता एकता और मजबूती के लिए हरेक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझे.

वाराणसी (ब्यूरो)। युवा राजनीति में आएं और बदलाव के वाहक बनें। उक्त बातें रवीन्द्र जायसवाल, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), स्टांप तथा न्यायालय शुल्क, पंजीयन, उत्तर प्रदेश ने कही। वह आजादी का अमृत महोत्सव श्रृंखला के तहत संगीत नाटक अकादेमी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के सहयोग से राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी के समापन सत्र में संबोधित कर रहे थे। रवीन्द्र जायसवाल ने सरदार पटेल के जीवन पर बोलते हुए कहा कि उन्होंने राष्ट्र के नवनिर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई। देश को धर्म और जाति में बटने नहीं दिया। उन्होंने बटे रियासतों का एकीकरण कर देश को टूटने से बचाया। उनसे हम सीख सकते हैं कि परिस्थितियां जैसी भी हों हम अलर्ट रहते हुए अपनी सूझबूझ से उससे निपट सकते हैं।

सरदार पटेल के पिता सैनिक थे
रवीन्द्र जायसवाल ने नेपाल और बार्डर की सुरक्षा पर बात रखी। कहा कि पटेल होते तो देश में युद्ध जैसे हालात नहीं बनते। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नारा हिंदी-चीनी, भाई-भाई सफल होता। सरदार पटेल का काशी से संबंध बताते हुए कहा कि काशी की मनु जो बाद में रानी झांसी के नाम से मशहूर हुईं, उनकी सेना में सरदार पटेल के पिता सैनिक थे।

पटेल का मौन रहना भी संवाद
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के पूर्व कुलपति प्रो राममोहन पाठक ने 1931 में सरदार पटेल की अध्यक्षता में संपन्न कराची अधिवेशन में मौलिक अधिकार, जिसमें धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार से इतर सभी को कानून के समक्ष समानता के अधिकार का प्रावधान, नि:शुल्क शिक्षा, संवाद, संस्कृति और भाषा के संरक्षण की गारंटी की प्रस्तावना को उनका दूरदृष्टि बताया। कहा कि आजादी के बाद उनकी इसी दृष्टिकोण ने देश में महाभारत होने से बचा दिया। सरदार पटेल उस काल खंड में मतभेदों में से भी सर्व सम्मत मत-अभिमत निकाल लाने वाले व्यक्ति थे। कहा कि सरदार पटेल का मौन रहना भी संवाद की तरह कार्य करता था। प्रो राममोहन पाठक ने कहा कि महापुरुषों की प्रमिताएं हमें गर्व की अनुभूति तो कराती ही हैं, ये लाइट हाउस की भूमिका में सदैव हमारे आसपास रहती हैं।

कौटिल्य की कूटनीति और शिव के शौर्य
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने कहा कि सरदार पटेल को पढ़ेंगे और जानेंगे तो उनमें कौटिल्य की कूटनीति और शिव के शौर्य का समन्वय दिखाई देगा। गांधी जी की तरह ही अहिंसात्मक रूप से उन्होंने रियासतों में बिखरे देश को एकजुट किया और एकता के सूत्र में पिरोया। सरदार पटेल को तीन शब्दों में व्यक्त करना चाहें तो संवाद, आत्मविश्वास और प्रतिबद्धता की प्रतिमूर्ति के रूप में जान सकते हैं।

कूटनीतिक और राजनीतिक कौशल
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के सहायक प्राध्यापक डॉ किंशुक पाठक ने अपने वक्तव्य में कहा कि युवाओं के लिए पटेल का व्यक्तित्व अनुकरणीय है। उन्होंने ऐसे समय में गृहमंत्री का पदभार संभाला जब देश के बिखराव की सबसे ज्यादा संभावना थी। बंटवारे के समय पटेल ने अपनी कूटनीतिक और राजनीतिक कौशल से जिन्ना के उद्देश्य को सफल नहीं होने दिया। फलस्वरूप अखंड भारत की परिकल्पना संभव हो सकी।

भारत एक संपूर्ण राष्ट्र बना
पांचवा स्तंभ के सह संपादक संजय कुमार मिश्रा ने कहा कि हम सरदार पटेल के जीवन और विचारों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। सरदार पटेल किसी के आगे झुके नहीं, देश को एक बनाने के लिए जी-जान से जुटे रहे। तमाम रियासतों की आपसी लड़ाई को कंट्रोल करते हुए संपूर्ण भारत को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं काशी विद्यापीठ, मंच कला विभाग की अध्यक्ष डॉ संगीता घोष ने कहा कि संगोष्ठी जैसे आयोजन से हमें अपने महापुरुषों को जानने और उनके पदचिन्हों पर चलने की सीख मिलती है।

नई ऊर्जा का हुआ संचार
समापन सत्र में संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली के सहायक निदेशक, तेज स्वरूप त्रिवेदी ने आजादी का अमृत महोत्सव और संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कहा कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नगरी काशी में &राष्ट्रीय एकता की संकल्पना और सरदार पटेल&य विषयक संगोष्ठी ने नई ऊर्जा का संचार किया है। देश की अखंडता का भाव सबे दिल में है। दो दिवसीय संगोष्ठी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के शिक्षक, छात्र और शौधार्थी मौजूद रहे।

सोशल मीडिया की सूचनाएं, खबर नहीं हो सकतीं: प्रो.संजय द्विवेदी
वहीं काशी विद्यापीठ में एकता दिवस पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने दैनिक जागरण आईनेक्स्ट से विशेष वार्ता करते हुए, पत्रकारिता और भाषा के वर्तमान दौर, चुनौतियों और भविष्य पर विस्तृत रूप से चर्चा की। प्रमुख अंश

सोशल मीडिया पर कितना भरोसा करें
सोशल मीडिया आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर न्यूज तेजी से फैलती है। हालांकि इसकी सत्यता और निष्पक्षता पर शुरू से ही सवाल उठते आए हैं। सोशल मीडिया से आ रही सूचनाएं, खबर नहीं हो सकतीं। दूसरे माध्यमों से आने वाली खबरें कई फिल्टर्स से गुजरकर निष्पक्षता के साथ जनता तक पहुंचती हैं। लेकिन यहां ऐसा नहीं होता। इसलिए इनकी सत्यता पर संदेह स्वाभाविक है।

पत्रकारिता के इस दौर को कैसे देखते हैं
पत्रकारिता का यह दौर अनिश्चितता और अस्थिरता का है। आने वाले वक्त में जर्नलिज्म के सामने चुनौतियां बहुत हैं। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, ऐसे में जिम्मेदारियां भी बहुत हैं। ज्वलंत मुद्दों को समाज तक लाना और सही मार्ग दिखाना इसका कार्य है।

पत्रकारिता में नये अवसर क्या हैं
यह जरूरी नहीं है कि जिसकी पढ़ाई की उसी क्षेत्र में रम जाएं। आज ग्लोबल विलेज के दौर में कई नये विकल्प खुल कर सामने आए हैं। स्टार्टअप के साथ युवा वेबसाइट, ब्लॉग या न्यूज साइट बनाकर काम कर सकते हैं। सोशल मीडिया स्वतंत्र मंच है। युवा इसका उपयोग कर सकते हैं। बेहतर यह है कि आप जो सबसे बेहतर कर सकते हैं, वही कार्य करें।

भाषा पर पकड़ कैसे मजबूत हो
भाषा पर अच्छी पकड़ के लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। खासकर मीडिया और लिटरेचर के छात्रों के नये द्वार और करियर के विकल्प तो उनकी इसी क्षमता पर खुलती है। इसलिए जरूरी है कि वे अच्छे साहित्य और लेख को पढ़ें। पुस्तकों को अपना दोस्त बनाएं। संगोष्ठी, कार्यशाला में भाग लेते रहने से आत्मविश्वास बढ़ता है, जो आगे चलकर उन्हें हुनरमंद और विषय में दक्ष बनाता है।

Posted By: Inextlive