- दिव्यांग खिलाडि़यों के लिए शहर में नहीं है कोई इंतजाम

- बिना कोच व ट्रेनिंग के नेशनल तक जीत चुके हैं मेडल, संसाधन मिले तो ओलंपिक तक का पूरा हो सफर

- ज्यादातर घर में ही कर रहे प्रैक्टिस

वाराणसी में दिव्यांग प्रतिभावान खिलाडि़यों की कमी नहीं है, लेकिन उनके लिए योग्य कोच, ट्रेनिंग तथा ग्राउंड का अभाव है। कुल मिलाकर शहर के बीच में एक स्टेडियम है, जहां सामान्य खिलाडि़यों का इतना ज्यादा दबाव रहता है कि दिव्यांग खिलाड़ी इस माहौल में असहज महसूस करते हैं। इसके साथ ही अपमानजनक दोयम दर्जे का व्यवहार भी ग्राउंड से विमुख होने का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में कई खिलाडि़यों ने अपने घर में ही खुद के संसाधन से अपने गेम से संबंधित इंतजाम कर लिए हैं।

घर में बना लिया शूटिंग रेंज

नेशनल एयर पिस्टल शूटर सुमेधा पाठक ने बताया कि मैंने जब शूटिंग की प्रैक्टिस शुरू की तो उसके लिए मेरे परिवार ने घर में ही शूटिंग रेंज का निर्माण करवाया। जिसमे मैं आज भी शूटिंग प्रैक्टिस करती हूं। पिछले दिनों संयोगवश मेरी मुलाकात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई और मैंने उनसे बनारस में एक अत्याधुनिक शूटिंग रेंज की गुहार लगाई। जिस पर पीएम ने मुझे आश्वस्त किया कि जल्द ही बनारस में शूटिंग रेंज बनकर तैयार हो जाएगा। उसी का परिणाम है कि रायफल क्लब में अत्याधुनिक शूटिंग रेंज का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

आंगन में करते हैं प्रैक्टिस

यूपी ओलंपिक 2021 में गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाले डिसकस थ्रो विनर संतोष कुमार पांडेय ने बताया कि हफ्ते में घूम घूमकर शहर के स्पोटर््स ग्राउंड में प्रैक्टिस करना पड़ता है। इसको देखते हुए मैनें घर के आंगन में ही प्रैक्टिस का इंतजाम कर लिया है। यहीं पर डेली प्रैक्टिस करता हूं। बता दूं कि वाराणसी में बहुत सारे प्रतिभाशाली दिव्यांग खिलाड़ी हैं लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण कोई भी खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दिखा पा रहा है। कमोवेश यही हाल सभी खिलाडि़यों का है।

स्पोटर््स व्हीलचेयर तक नहीं

एक्सपर्ट के अनुसार एक भी खिलाड़ी वाराणसी में ऐसा नहीं है जिसके पास एक्टिव स्पो‌र्ट्स व्हीलचेयर हो। जबकि यह सबसे महत्वपूर्ण टूल्स है, खेल सामग्री उपलब्ध होना तो बहुत दूर की बात है। असेसबिलिटी, हर चीज हमारी पहुंच से दूर है, खेल के लिए एक भी ग्राउंड नहीं है। कहने के लिए यह शहर घाटों, मंदिरों और विद्या की नगरी है। सच्चाई यह है कि कभी किसी विद्यालय या यूनिवíसटी में खेलने के मौका नहीं मिलता है। सिचुएशन यह है कि पूरी दुनिया बनारस घूमने आती है पर यहां दिव्यांग घाट पर नहीं जा सकते हैं। वाराणसी के होटल या मॉल दिव्यागों के अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में दिव्यांग खिलाड़ी कहीं रुक नहीं सकते हैं। इसके बावजूद आठ मेडल राज्य स्तर का वाराणसी के दिव्यांग विपरीत परिस्थितियों में ला चुके हैं। अगर मौका और व्यवस्था मिलें तो वाराणसी का नाम दिव्यांग एक दिन पूरी दुनिया मे रोशन करेंगे।

फिर कैसे खेलेंगे ओलंपिक

जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है उनके लिए पैरा ओलंपिक, जो मानसिक रूप से दिव्यांग हैं उनके लिए स्पेशल ओलंपिक के आयोजन होते हैं। इसके अलावा फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट है, ब्लाइंड क्रिकेट है, व्हीलचेयर क्रिकेट है और अन्य व्हीलचेयर के खेल हैं, जिन का आयोजन हम सफलतापूर्वक कर सकते हैं। दिव्यांगजनों के लिए आउटडोर इंडोर दोनों प्रकार के खेल उपलब्ध हैं। तैराकी हैं और अनेक प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। अगर इनको अवसर दिया जाए तो वह भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। लेकिन पूर्वाचल का सबसे बड़ा शहर होने के बाद भी यहां दिव्यांग खिलाडि़यों के लिए कोई इंतजाम नहीं है।

पेरिस ओलंपिक पर नजर

वाराणसी में सरकारी व्यवस्था भले न हो लेकिन एक संस्था प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को देखते हुए दिव्यांग स्पोर्ट एकेडमी की स्थापना करने जा रही है। डॉ। उत्तम ओझा ने बताया कि डॉ। नीरज खन्ना के सहयोग से निरोग ग्राम संस्थान द्वारा एक एकेडमी बनाने का प्लान है। संस्था अपने खर्च से एकेडमी को संचालित करेगी जो कि एक उदाहरण होगी। लेकिन खेल का मैदान का अभाव है जिसके लिए संस्था प्रयत्नशील है। यदि खेल के मैदान की उपलब्धता हो गई तो जल्दी ही यहां से प्रशिक्षण शुरू होगा। सन् 2024 में पेरिस में होने वाले पैरा ओलंपिक में काशी का प्रतिनिधित्व होगा।

इतने मेडल खाते में

वर्ष 1968 से 2016 तक कुल 12 पदक भारत ने पैरालंपिक में जीते थे जबकि सन् 2021 ओलंपिक में अकेले ही भारत में जो है 12 पदक जीते हैं।

प्रॉपर इंतजाम न होने से मेरी तैयारी प्रभावित हो रही थी। जिसको देखते हुए पैरेंट्स ने घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दिया। वहीं पीएम से गुहार लगाने पर बनारस में दिव्यांगों के लिए शूटिंग रेंज बनने लगा है। तब तक घर में ही प्रैक्टिस करना होगा।

सुमेधा पाठक, नेशनल एयर पिस्टल शूटर

बनारस में प्रतिभावान दिव्यांग खिलाड़ी तो हैं लेकिन उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है। कभी सिगरा तो कभी शिवपुर जाकर प्रैक्टिस करना होता है। ऐसे में मैंने घर के आंगन में ग्राउंड बना लिया हूं। जहां प्रैक्टिस करता हूं। साथ ही खिलाडि़यों की कोचिंग भी करता हूं।

संतोष पांडेय, गोल्ड मेडलिस्ट

यूपी ओलंपिक 2021

वाराणसी में खेल के प्रति जो आकर्षण है वह बहुत बढ़ रहा है। पर अभी भी यहां संसाधनों की बहुत कमी है। इस शहर में खेल के लिए बहुत अच्छे मैदान उपलब्ध नहीं है, खिलाडि़यों के प्रशिक्षण के लिए अच्छे प्रशिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। जबकि सुविधाएं मिले तो यहां के खिलाड़ी भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।

सुबोध राय, कैप्टन

उत्तर प्रदेश दिव्यांग क्रिकेट टीम

मैं खेलों को लेकर काफी दिनों से उत्सुक था लेकिन इस तरह का कोई प्लेटफार्म नहीं मिला। धीरे-धीरे शुरुआत तो किया लेकिन न किसी तरह के खेलों की सामग्री की व्यवस्था न ही ढंग से व्हीलचेयर की व्यवस्था और ना ही प्लेग्राउंड की व्यवस्था है, फिर भी हम लोग आपस में मिलकर अब तक इस लेवल तक खेल पाए हैं, अगर इस तरह की व्यवस्थाएं उपलब्ध होती हैं तो बनारस के खिलाड़ी और अच्छा प्रदर्शन करते।

महेश प्रताप, एथलिट

स्टेट लेवल

हमारे दिव्यांग खिलाडि़यों ने जिस प्रकार से टोक्यो ओलंपिक में प्रदर्शन किया है वह काबिले तारीफ है। सरकार इसको लेकर बहुत गंभीर है और जल्द ही प्रयास करेगी कि दिव्यांग खिलाडि़यों को भी वह सुविधा मिले जो सामान्य खिलाडि़यों को मिलती है। मेरा प्रयास है कि वाराणसी में जल्द ही दिव्यांग स्पोर्ट एकेडमी का कार्य प्रारंभ हो जिसका लाभ वाराणसी सहित पूरे देश के प्रतिभाशाली दिव्यांग खिलाडि़यों को मिले। उत्तर प्रदेश में भी शकुंतला मिश्रा दिव्यांग विश्वविद्यालय में देश का पहला दिव्यांग स्पोर्ट स्टेडियम बनकर तैयार है।

डॉ। उत्तम ओझा

सदस्य केंद्रीय सलाहकार बोर्ड दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग भारत सरकार एवं प्रदेश संयोजक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश दिव्यांग सेल

Posted By: Inextlive