एसएसपीजी में ओपीडी में रोजाना आते है 85 से 90 मानसिक समस्याओं के केस महीने में चार से पांच बच्चों में मोबाइल गेमिंग और स्क्रीन एडिक्शन के केस

वाराणसी (ब्यूरो)विज्ञान के आविष्कार से इंसानों का जीवन आसान बन जाता है। वहीं, मॉडर्न टेक्नोलॉजी का मिसयूज भी मुश्किल में डाल सकता है। मसलन, हाल के छह महीनों में बनारस में स्मार्टफोन के मिसयूज से यथा- ऑनलाइन गेमिंग, रिल्स और वीडियो आदि देखने की लत के शिकार 9 से 15 साल के बच्चे हो रहे हैैं। वाराणसी के एसएसपीजी के साइकाट्रिस्ट डा। रवींद्र कुशवाहा के अनुसार सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों की मेंटल हेल्थ पर भी नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। बच्चों में स्ट्रेस और एंग्जायटी के केसेज बढ़ गए हैैं। साथ ही आत्मविश्वास, फोकस और अच्छी नींद की कमी होने से मासूमों का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा हैै। इससे टीनएजर्स के विहैब में चेंजेज होने से गुस्सा, धमकी, चिड़चिड़ापन और अकेलापन से गस्त हो रहे हैैं। एसएसपीजी के ओपीडी में औसतन पर मंथ 1040 पेशेंट मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त इलाज को पहुंच रहे हैैं। इनमें 40 से 50 की तादात ऐसे बच्चों की होती है, जो स्मार्टफोन के लती होते हैैं.

कोविड काल के दौरान बढ़ा क्रेज

मनोवैज्ञानिक डॉ। अवधेश कुमार ने बताया कि कोविड काल में ऑउटडोर एक्टिविटी बैन होने से ऑनलाइन या स्मार्टफोन का क्रेज बढ़ा गया। किंडर गार्डेन, प्लेस्कूल व स्कूल बंद होने से सभी बच्चों के शिक्षा से जुड़ी गतिविधियां भी ऑनलाइन संचालित होने लगी हैं। इसके चलते 9 से 15 साल के बच्चों को आसानी से स्मार्टफोन पर समय बिताने काएक्सेस मिल गया। कोविड ऑनलॉक होते स्कूल तो खुल गए, लेकिन एक वर्ष से अधिक समय तक स्मार्टफोन पर 04 से 06 घंटे बिताने वाले बच्चे तबतक स्मार्टफोन के लती हो गए।

केस-1

मना करने पर करता तोडफ़ोड़

दुर्गाकुंड का 12 वर्षीय मासूम जॉनी (बदला हुआ नाम) कोविड काल में ऑनलाइन क्लास के लिए स्मार्टफोन से जुड़ा। पैरेंट्स की प्रॉपर देखरेख नहीं होने से जॉनी धीरे-धीरे सिल्वर स्क्रीन एडिक्ट हो गया। कांउसलर के अनुसार वह पहले दो घंटे, फिर धीरे-धीरे छह घंटे से अधिक समय तक स्मार्टफोन पर वीडियो देखता रहता था। माता-पिता के मना करने पर गुस्सा, तोडफ़ोड़, एकांत में छिप जाना और बगैर बताए घंटो कहीं चले जाना आदि हरकतें करता था। हालांकि, अब इसका इलाज चल रहा है।

केस-2

गेम एडिक्ट मामा-भांजा

एसएसपीजी में इलाज कराने भदोही के दो पेशेंट आए। इनमें से भांजा (स्नेहल, 16 वर्ष) और मामा (धर्मेंद्र, 35 वर्ष, दोनों बदला हुआ नाम) एक दिन में 11 घंटे से अधिक ऑनलाइन गेम खेलते थे। स्नेहल बनारस में रहकर पढ़ाई करता था और धर्मेंद्र भदोही से कनेक्ट होकर गेम खेलते थे। रिजल्ट बिगडऩे पर उसके पिता को डाउट हुआ तो दोनों को काउसिंलिंग के लिए मंडलीय अस्पताल ले आए। दोनों को इलाज चल रहा है.

आंकड़ों पर एक नजर

कोविड काल से पहले मानसिक स्वास्थ्य की ओपीडी- 30 से 40

अब मानसिक स्वास्थ्य की ओपीडी - 90 से 95

एसएसपीजी में महीने की ओपीडी- 1040

चाइल्ड एडिक्ट पर मंथ केसेज- 30 से 40

-बच्चों में लत का कारण-वीडियोज और ऑनलाइन गेमिंग

-एडिक्ट बच्चे बिताते हैैं औसतन छह घंटे से अधिक समय

स्मार्टफोन और गेमिंग की लत के लक्षण

-आक्रामकता, गुस्सा, खुलकर बातचीत में कमी, नींद की कमी, ईंजाइटी, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, नेत्रविकार, डिप्रेशन।

यूं रखें मासूमों का ध्यान

-प्रकृति से प्रेम करने की भावना करें विकसित

-बच्चों को पार्क, पिकनिक और तालाब की सैर पर ले जाएं.

-बच्चों को किताबें पढऩे के लिए प्रेरित करें.

-घर में कपड़े सुखाने, कमरे की सफाई और किचन के छोटे-छोटे कामों में बच्चों की हेल्प लें.

-बच्चों के साथ मस्ती और हंसी-मजाक करना न भूलें.

-बच्चों की गतिविधियों की मानिटरिंग भी कर सकते हैैं।

कोविड के बाद ही बच्चों में स्मार्टफोन और गेमिंग एडिक्शन के केसेज में लगभग दोगुने हो गए हैैं। फैमिली में लाइट व कूल माहौल बनाए रखें। एजुकेशन व इफॉर्मेशन ऑवर के बाद बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी की प्रॉपर मानिटरिंग करें। साथ ही रोक-टोक भी करें। किसी भी तरह की परेशानी होने पर काउंसलर की मदद समय रहते ले सकते हैैं.

डॉ। रवींद्र कुशवाहा, साइकाट्रिक, एसएसपीजी, कबीरचौरा

स्मार्टफोन के लती और ऑनलाइन गेमर्स को अचानक से इन एक्टिविटी से दूर नहीं करें। एकदम से फोन छीनने से बच्चे जिद्दी व आक्रामक हो सकते हैैं। बच्चों को घूमाने के लिए पार्क में ले जाएं और इनडोर व आउटडोर गेम्स खेलने पर जोर दें। साथ ही बच्चों को पैरेंट्स समय भी दें। हो सके तो दोस्त की तरह समय भी बिताएं।

डॉ। अवधेश कुमार, साइकाट्रिक

Posted By: Inextlive