यूपी फुटबॉल एसोसिएशन और क्लबों के बीच नहीं बैठता सामंजस्य जब तक पारदर्शिता नहीं तब तक बदलाव आना मुश्किल

वाराणसी (ब्यूरो)किसी भी खेल व खिलाडिय़ों को बढ़ावा देने में स्पोट्र्स एसोसिएशन का रोल सबसे अहम माना जाता है। कंट्रोलिंग बॉडी के रूप में काम करने वाले ये एसोशिएशन खिलाडिय़ों के चयन से लेकर ट्रेनिंग व हाईटेक फैसिलिटी अरेंज कराते हुए खेल की दशा और दिशा में सुधार करते हैं। लेकिन, बनारस में ऐसा नहीं है। यहां के स्पोट्र्स एसोसिएशन की मशीनरी में जैसे जंग सी लग गई है। तमाम पदाधिकारी तीन दशक से भी ज्यादा समय से फुटबॉल एसोसिएशन के पदों पर कब्जा जमाए बैठे है। जो जिस पद है, वो वहीं बैठकर मनमानी कर रहा है। अगर इनसे पूछा जाए कि बनारस में दम तोड़ते फुटबॉल को लेकर क्या किया गया तो बस कहानी सुना दी जाती है। इस खेल और खिलाडिय़ों का भला कैसे होगा, इस पर भी पल्ला झाड़ लिया जाता है। चलिए आज आपको बताते हैं कि यहां के फुटबॉल की बर्बादी में एसोसिएशंस कितना रिस्पांसिबल है.

मैदान छोटा होना तो बहाना है

खेल प्रेमी हो या क्रिकेट खिलाड़ी। सभी में क्रिकेट मैच को लेकर दीवानगी तो देखी जा सकती है, लेकिन फुटबॉल में नहीं। सिटी में फुटबॉल का वजूद अब खतरे में है। आखिर क्यों ये सवाल हर उस व्यक्ति के दिमाग में गूंज रहा है, जिसने बेनियाबाग के मैदान पर पसीना बहाते हुए फुटबॉल के एक से बढ़कर एक शानदार प्लेयर्स की फौज तैयार की थी। जानकारों की मानें तो बेनियाबाग मैदान छोटा होना तो एक बहाना है। शहर में कई स्कूल-कॉलेज में बड़े मैदान हैं, फिर भी कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं हो रहा। अगर कोई मन से चाह जाए तो कुछ भी किया जा सकता है.

सरकारें बदलीं, पदाधिकारी नहीं

बड़े टूर्नामेंट न होने के पीछे की वजह स्टेट फुटबॉल एसोसिएशन की उदासीनता है। यहां संचालित क्लबों के पदाधिकारियों की मानें तो एसोसिएशन में कहीं भी कोई पारदर्शिता नहीं है। पांच साल में तो सरकारें बदल जाती हैं, लेकिन इस एसोसिएशन में शामिल पदाधिकारी एक पद पर लंबे समय से बने हुए हैं। यहां परिवारवाद और मनमानी भी हावी है, जिस पर लगाम लगाने वाला भी कोई नहीं है.

संगठन में हावी है परिवारवाद

आपको जानकर हैरानी होगी कि एसोसिएशन में पदाधिकारियों के लिए कब और कैसे चुनाव होता है, इसकी किसी को भनक तक नहीं लगती। उत्तर प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन के महासचिव शमसुद्दीन के इंतकाल के बाद अब इस पद पर उनके बेटे मो। शाहिद बैठे हुए हैं। पूर्व साई कोच फरमान हैदर की मानें तो स्व। शमसुद्दीन महासचिव के पद पर तीन बार विराजमान हुए थे। इससे पहले 1982 में उनके बड़े भाई स्व। रजाउद्दीन काबिज थे और अब शमसुद्दीन के बेटे, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। देश में ऐसा कोई भी एसोसिएशन नहीं है, जहां तय समय पर चुनाव न होता हो और पदाधिकारियों को न बदला जाए। परिवार के लोग होने से उनके अपने ही लोग कोचिंग भी संचालित करते हैं।

क्लबों को नहीं मिलता सपोर्ट

वहीं सिटी में संचालित फुटबॉल क्लबों के पदाधिकारियों का आरोप है कि यूपी फुटबॉल एसोसिएशन सिर्फ अपनी वाली ही करता है। क्लबों की नहीं सुनता। वहां के लोग नहीं चाहते कि क्लबों के प्लेयर नेशनल-इंटरनेशनल खेलें। होनहार प्लेयर्स को नेशनल-इंटरनेशनल खेलने का लालच देकर उन्हें अपने यहां बुला लेते हैं। अगर क्लबों को कहीं बड़े मैच के आयोजन में इनके सपोर्ट की जरूरत होती है तो वो भी नहीं मिलता। सिर्फ परेशान करने का काम किया जाता है.

स्थिति पहले जैसी नहीं है

वहीं फुटबॉल संघ के पदधिकारियों का कहना है कि ऐसा नहंी है कि बनारस में फुटबॉल खत्म हो रहा है। आज भी एसोसिएशन फुटबॉल का भविष्य बनाने को लेकर प्रयासरत है। हां यह जरूर है कि सरकार की तरफ से फुटबॉल के लिए कोई खास मदद न मिलने से इसकी स्थिति पहले जैसी नहीं है। सरकार की ओर से साल में एक बार 15 दिन के कैंप के लिए बजट देती है। अब सिर्फ इससे फुटबॉल का भला कैसे हो पाएगा.

क्या है एसोसिएशन का काम

उत्तर प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन का काम बनारस समेत अन्य जिलों में इस खेल को बढ़ावा देना और हर एज ग्रुप के नए फुटबॉल प्लेयर्स तैयार कर उन्हें स्टेट से नेशनल लेवल तक पार्टिशिपेट कराना होता है। लेकिन, वर्तमान में ये सब सिमटता जा रहा है। जहां पहले साल में 12 से 14 टूर्नामेंट होते थे, वहां अब कुछ ही टूर्नामेंट आयोजित हो रहे हैं।

यूपी फुटबॉल एसोसिएशन में पारदर्शिता के नाम पर कुछ नहीं है। जहां परिवारवाद होगा, वहां बदलाव कैसे आ सकता है। जब तक पारदर्शिता नहीं आएगी तब तक फुटबॉल का भला होना मुश्किल है.

फरमान हैदर-साई के पूर्व कोच

एसोसिएशन की ओर से फुटबॉल खेल के साथ ही खेल हो रहा है। लगातार लंबे समय से एक ही व्यक्ति के पद पर बने रहने से कभी इस खेल का भला नहीं होगा। इसके लिए अब सरकार को भी सोचने की जरूरत है.

नूर आलम, जनरल सेक्रेट्री-बनारस स्पोर्टिंग क्लब

यह नहीं कहा जा सकता कि बनारस में फुटबॉल का अंत हो रहा। यहां खिलाडिय़ों की कोई कमी नहीं है। बस खेल का मैदान न होने से स्थिति थोड़ी खराब हुई है। ऐसा नहीं है कि हमारा एसोसिएशन किसी क्लब का सपोर्ट नहीं करता। फुटबॉल किट महंगा होने से थोड़ी दिक्कत होती है।

मोशाहिद, महासचिव, यूपी फुटबॉल एसोसिएशन

Posted By: Inextlive