-लैब में तीन साल से चार हजार मामले पड़े हैं पेंडिंग

-वाराणसी के 400 से अधिक केसों में अभी तक नहीं आई विसरा रिपोर्ट

-डीएनए की जांच के लिए लखनऊ भेजी जाती है विसरा

:: प्वाइंटर::

25

से 35 विसरा रिजर्ब की जाती है लैब में हर दिन

15

दिन तक विसरा को हाथ नहीं लगाया जाता है कोरोना के चलते लैब में

15

दिन या एक महीने के अंतराल पर सीओ या कप्तान की ओर रिमाइंडर भेजा जा सकता है

60

दिन के अंदर हर हाल में विसरा रिपोर्ट देने का है प्रावधान

3300

से अधिक विसरा रसायन से संबंधित है

01

हर मंडल स्तर पर और

प्रदेश में कुल 18 लैब निर्माण की है योजना

वाराणसी में हत्या और हादसों में हुई मौतों पर ली जा रही विसरा रिपोर्ट सिर्फ दिखावा मात्र ही रह गई है। या यूं कहें कि लोगों का गुस्सा शांत करने या टरकाने के लिए विसरा रिपोर्ट लेने की औपचारिकता निभाई जा रही है। अक्सर पुलिस यह कहकर मामला टाल रही है कि अभी विसरा रिपोर्ट नहीं आई है। रामनगर स्थित फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी लैब में पिछले तीन साल से 22 जिलों में हत्या, आत्महत्या और हादसों में हुई मौत के करीब चार हजार मामले पेंडिंग पड़े हैं, जिसमें वाराणसी के 400 से अधिक विसरा रिपोर्ट शामिल हैं। कोरोना के कारण विसरा रिपोर्ट देने में न तो लैब जल्दबाजी कर रही है और न ही पुलिस कोई संज्ञान ले रही है। ऐसी स्थिति में आरोपियों की सजा में लेट और पीडि़तों की पीड़ा बढ़ रही है।

क्या है विसरा

व्यक्ति की मौत के बाद रासायनिक परीक्षण के लिए मृतक के लीवर, किडनी, आंत सहित अन्य अंग लिए जाते हैं। इसे विसरा कहते हैं। विसरा सैम्पल को कैमिकल में संरक्षित रखा जाता है। विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी यानी एफएसएल में की जाती है।

संदिग्ध मौत पर होती है जांच

एडवोकेट अमित प्रजापति के अनुसार जब मृत्यु का कारण स्पष्ट हो, तब पोस्टमार्टम करवाया जाता है। सड़क दुर्घटना, गोली लगने या गंभीर चोट के कारण मृत्यु होती है तो वहां पोस्टमार्टम में कारण स्पष्ट हो जाता है। अगर मौत संदिग्ध परिस्थिति में हो और अंदेशा हो कि जहर या अन्य किसी कारण मौत हुई है तो विसरा की जांच की जाती है। जहर देने की आशंका हो तो विसरा की जांच की जाती है। डेड बॉडी अगर नीली पड़ी हुई हो, जीभ, आंख, नाखून आदि नीला पड़ा हुआ हो या मुंह से झाग आदि निकलने के निशान हों तो जहर देने की संभावना रहती है। तब पोस्टमॉर्टम के बाद डेड बॉडी से विसरा निकाला जाता है।

विसरा रिपोर्ट में देरी का है यह खेल

पुलिस को किसी मामले में 90 दिन के भीतर चार्जशिट पेश करना होता है। उससे पहले विसरा की रिपोर्ट आ जाती है। कुछेक केसों में छह महीने से ज्यादा समय लग जाता है। ऐसे में केस की कार्यवाही अटक जाती है। सूत्रों के अनुसार विसरा रिपोर्ट में लैब और पुलिस यानी दोनों की ओर से जानबूझ कर देर की जाती है। इसके चलते जांच लटकी रहती है। जांच पेंडिंग होने का लाभ आरोपी को मिलता है, जबकि पीडि़त का टेंशन बढ़ता है।

स्टाफ आए तो बढ़ेगी जांच की गति

इसमें दो राय नहीं है कि विसरा की रिपोर्ट आने में समय लग जाता है। दरअसल, रामनगर लैब में स्टाफ की कमी लंबे समय है। वर्तमान में अधिकारी तीन वैज्ञानिक हैं, जबकि जरूरत तीन और वैज्ञानिक की है। इसके अलावा 12 असिस्टेंट वैज्ञानिक की जरूरत है। इसके लिए शासन को पत्र लिखा गया है। उम्मीद है कि एक महीने में मांग पूरी हो जाए। स्टाफ के अभाव में ही जांच में देरी होती है।

पॉस्को और गोली लगने की विसरा को प्राथमिकता

हर मामलों की विसरा रिपोर्ट में लेटलतीफी नहीं होती है। लैब के डिप्टी डायरेक्टर के अनुसार पॉस्को और गोली लगने वाली घटना की विसरा रिपोर्ट को प्राथमिकता दी जाती है। इन केस में 10 से 12 दिन में रिपोर्ट भेज दी जाती है। इसके अलावा अदालत या शासन के आदेश पर भी किसी केस की जांच तुरंत कर रिपोर्ट पेश की जाती है। हालांकि किसी भी घटना की विसरा रिपोर्ट 60 दिन के अंदर भेज दी जाती है। अज्ञात या किसी अन्य मामले में रिमाइंडर नहीं आने पर ही पैंडिंग रहती है।

इन वजह से लग रहा समय

फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी, रामनगर में चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही, बलिया, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर मंडल को मिलकर कुल 22 जिलों से भी केसों की जांच के लिए विसरा भेजा जाता है। ऐसे में समय और लगता है। बहुत जल्द ही मिर्जापुर और आजमगढ़ में लैब खुल जाएगा। इसके लिए जमीन तलाश ली गई है। बहुत जल्द ही निर्माण शुरू होने की उम्मीद है।

कोट ::

स्टाफ की कमी और कोरोना के चलते विसरा रिपोर्ट तैयार करने में देरी हो रही है। वैसे पॉस्को और गोली करने के मामले की विसरा रिपोर्ट दस दिन के अंदर दे दी जाती है। 60 दिन में किसी भी मामले की विसरा रिपोर्ट संबंधित जिले या थाने को भेज दी जाती है। मिर्जापुर और आजमगढ़ में लैब खुलने से यहां लोड कम हो जाएगा।

-आलोक शुक्ला, उप निदेशक फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी रामनगर

विसरा की रिपोर्ट अगर देरी से आती है या समय पर आती है तो इसमें पुलिस की कोई ज्यादा भूमिका नहीं होती। पुलिस यहां से विसरा भेज देती है और वहां से रिपोर्ट ले आती है। जो भी समय लगता है, वह लैब में लगता है, क्योंकि वहां पर बहुत सारे विसरा जांच के लिए आए होते हैं।

-अभिमन्यु मागलिंग, सीओ कैंट

----------

-मामलों से संबंधित थानों की पुलिस भी रिपोर्ट मांगने की कोई खास पहल नहीं कर रही है

-पुलिस पीडि़तों से कोर्ट तक में एक ही हवाला दे रही है कि अभी विसरा रिपोर्ट नहीं आई है

Posted By: Inextlive