-बनारस के लकड़ी खिलौने कारोबार पर पड़ी कोरोना की मार

-बंद पड़े हैं शिल्पकारों के कारखाने, अटका हुआ है पेमेंट

हस्तशिल्प से जुड़ी एक ऐसी वस्तु जो देश के कोने-कोने में नजर आती है वो बनारस में बना लकड़ी खिलौना है। वैसे तो देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह की हस्तशिल्प-हस्तकलाएं मशहूर हैं, लेकिन अपनी अलग पहचान रखने में यहां के लकड़ी से बने खिलौने की कोई सानी नहीं है। मगर अफसोस कि पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रहे इस कारोबार को कोरोना संकट निगलने पर उतारू है। हजारों को रोटी देने वाले इस कारोबार को अब सरकारी मदद ही उबार सकता है। लम्बे समय से चल रहे लॉकडाउन की वजह से इस ट्रेड से जुड़े लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए है।

लम्बे समय तक रहेगा असर

बनारस की काष्ठ-कला (लकड़ी से बनी मूíतयां ) पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां बने लकड़ी के तरह तरह के खिलौने, सिंदूरदान, चूड़ीकेस के अलावा सजावटी सामान इंटीरियर डेकोरेशन में काफी प्रयोग होता है। इस काष्ठ कला ने दुनिया में बनारस को एक अलग पहचान दी है। जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग मिलने के बाद बनारस का लकड़ी कारोबार 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। कश्मीरीगंज, खोजवां इलाके में लकड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं। जबकि लहरतारा में फ्लावर पॉट, नक्काशी किए गए ऐंटीक आइटम बनाये जाते हैं। ये आइटम विदेशो में खूब पसंद किए जाते हैं। मगर पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण की वजह से यह पूरा साल इनके लिए बेकार हो गया है। अब न कोई अॅार्डर मिलना है न ही प्रोडक्शन हो पायेगा।

खोजवां है सबसे बड़ा बाजार

कश्मीरीगंज इलाका लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र माना जाता है। लकड़ी के खिलौने बनाने वाली खराद की मशीनें नवापुरा, जगतगंज, बड़ागांव, हरहुआ, लक्सा, दारानगर में भी चलती हैं। यहां तीन हज़ार से अधिक कारीगर जंगली लकड़ी 'कोरैया' से कई प्रकार के खिलौने तैयार करते हैं। कश्मीरीगंज,में बड़े स्तर पर लकड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं। पांच साल पहले यह कला अपने अंतिम दौर में थी, लेकिन भारत सरकार और विदेशों में बढ़ रही मांग के कारण यह कला फिर से पसंद की जाने लगी है।

अभी तो बढ़ रही थी मांग

बढ़ती टेक्नोलॉजी ने बनारस के डूबते काष्ठ व्यवसाय को संजीवनी दी है। बाजार के लिए तरस रहे बनारस के खिलौनों ने अब इंटरनेट के माध्यम से दुनिया में रंग जमाना शुरू कर दिया है। समय के साथ-साथ डिज़ाइन और स्वरूप बदलने से बनारस के लकड़ी उत्पादों का व्यवसाय बढ़ रहा है। थोक कारोबारियों के ऑर्डर पर अब इस काम से जुड़े कारीगरों को काम मिलने लगा था, जिससे खत्म होती यह कला दोबारा जीवित हो रही थी। मगर लॉक डाउन ने ऐसा ब्रेक लगाया है की एक झटके में सब कुछ चौपट हो गया। अब सरकार से ही आस है जो डूबता हुए इस उद्योग को सहारा दे।

समय के साथ हुआ बदलाव

अब शिल्पी सिर्फ लकड़ी के पारंपरिक खिलौने बनाने की बजाय उनके रंग-रूप में काफी बदलाव किया है। यही नहीं, अब यह व्यवसाय खिलौनों तक ही सीमित नहीं रहा। लकड़ी से घर की साज-सज्जा के खूबसूरत उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं। यही वजह है कि अब बनारस में बने लकड़ी के खिलौनों और इंटीरियर उत्पाद विदेशी ग्राहकों खासकर यूरोप व अमेरिका को भी लुभा रहे हैं। लकड़ी से तैयार मूíतयां भी खासी पसंद की जाती हैं।

एक नजर

5000 लोग सीधे तौर पर जुड़े है लकड़ी के कारोबार से

2000 छोटी-बड़ी दुकानों से बिकता है लकड़ी का खिलौना

35

करोड़ रुपये का है वाíषक कारोबार

28

राज्यों तक जाता है यहां बना खिलौना

20

देशो में तक पहुंचता है बनारस में बना लकड़ी का खिलौना

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इन उपाय से उबार सकता है लकड़ी खिलौना कारोबार

कुछ नए प्रयोग के साथ इस कारोबार को ऊपर उठाने की कोशिश चल रही थी। लेकिन कोरोना वायरस ने एक झटके में सब कुछ बर्बाद कर दिया। जो माल बनाकर भेजा गया है उसका पेमेंट अभी मिला नहीं है। अब अगले छह माह तक मिलेगा भी नहीं। काम पूरी तरह से बंद है। संकट गहराने वाला है। अब भारत सरकार से ही मदद की आस है।

प्रेम शंकर-शिल्पकार

-सरकार विशेष आíथक पैकेज दे

-सरकार शिल्पियों को श्रमिक दे

-उद्योग से जुड़े लोगो को जीरो परसेंट पर लोन मिले

-जीएसटी खत्म हो, नहीं तो पांच परसेंट करे

-बनारसी लकड़ी के खिलौने कारोबार में स्किल्ड अपडेट की जरूरत

-हस्तशिल्पियों को स्पेशल ट्रेनिंग दें

-ट्रेनिंग में नए प्रोडक्ट और मार्केटिंग का फंडा बताया जाये

-ट्रेनिंग के दौरान शिल्पियों को पारिश्रमिक दिया जाए

-पॉवरलूम की तर्ज पर खिलौने के मशीन को भी बिजली में सब्सिडी मिले

-कच्चे माल के लिए डिपो बने

-कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाया जाए

-सोलर चलित छोटी मोटर उपलब्ध हो

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सरकार से यह आग्रह किया गया है की हस्त कला खासकर काष्ठ-कला उद्योग डूबने के कगार पर है। यह उद्योग सूक्ष्म व लघु उद्योग की श्रेणी में आता है, इसलिए सरकार विशेष आíथक पैकेज दे। ताकि इससे जुड़े हजारों लोगों की रोजी रोटी चल सके।

डॉ। रजनीकांत, निदेशक, ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन

Posted By: Inextlive