-मंडलीय व महिला चिकित्सालय के जच्चा-बच्चा वार्ड में नहीं है मुकम्मल व्यवस्था

-तीन फुट के सकरे रास्ते में इमरजेंसी निकास द्वार मिला बंद

- फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है दुरुस्त

शहर में ऐसे कई प्राइवेट और सरकारी अस्पताल हैं, जहां फायर फाइटिंग सिस्टम को ताख पर रख दिया गया है। अगर इन जगहों पर आग लग जाती है तो वार्ड से जान बचाकर निकल पाना मुश्किल हो जाएगा। महाराष्ट्र के भंडारा जिले के एक अस्पताल के न्यू बॉर्न केयर यूनिट में आग लगने से 10 बच्चों की मौत ने सिर्फ उसी अस्पताल की ही नहीं, बल्कि देश भर के अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था के प्रबंधों को घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बनारस के ऐसे ही कुछ अस्पतालों की पड़ताल की है, जहां चौकाने वाले तथ्य देखने को मिले।

सीन-1

स्थान : राजकीय महिला चिकित्सालय

राजकीय महिला चिकित्सालय के चिल्ड्रेन वार्ड में फायर फाइटिंग सिस्टम तो लगा हुआ है, लेकिन अगर आग लग जाए तो यहां मौजूद व्यक्ति का जान बचाना मुश्किल हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि फायर फाइटिंग सिस्टम आधा अधूरा है। एसएनसीयू वार्ड में आग बुझाने की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां आग लगने पर बच्चा और जच्चा दोनों को खतरा हो सकता है। वहीं वार्ड नंबर तीन के बाहर एग्जिट प्वाइंट भी बंद रहता है।

सीन-2

स्थान : महिला चिकित्सालय

कबीर चौरा स्थित महिला चिकित्सालय में रोजाना 300 से 400 महिलाएं इलाज के लिए आती हैं। लेकिन यहां के सर्जिकल वार्ड, नंबर एक में आग बुझाने का कोई इंतजाम नहीं है। 30 बेड के इस वार्ड में मात्र एक फायर इंस्टीग्यूसर रखा गया है। वार्ड के बाहर बालू और आग बुझाने का कोई अन्य इंतजाम तक नहीं है। ऐसी ही स्थिति वार्ड नंबर दो और तीन की भी है।

सीन-3

स्थान: मंडलीय हॉस्पिटल

मंडलीय हॉस्पिटल को करीब दो साल पहले ही फायर फाइटिंग सिस्टम से लैस किया गया है। लेकिन वर्तमान में ये सिस्टम शो पीस बनकर रह गया है। हॉस्पिटल के चिल्ड्रेन वार्ड के बाहर लगा फायर अलार्म पैनल ही बंद पड़ा है। यही नहीं यहां इमरजेंसी के लिए फायर इंस्टीग्यूसर तक नहीं रखे गए हैं। कई जगह तो फायर सेंसर का तार ही कटा हुआ मिला। ऐसे में अगर आग लग भी जाए तो किसी को जानकारी भी नहीं हो पाएगी।

सुरक्षा में आज भी खामी

ये तो सिर्फ दो अस्पताल के तीन उदाहरण भर हैं। फायर सेफ्टी के नाम पर शहर के अस्पताल अभी भी खरे नहीं उतर रहे हैं। यहां आए दिन खामियां बनी रहती हैं। खासकर सरकारी अस्पतालों में। अमूमन अस्पतालों में आग पर काबू पाने के लिए बालू से भरी लाल रंग की बाल्टी और फायर इंस्टीग्यूसर देखी जाती थी। लेकिन वर्तमान में ऐसा कही भी नहीं है। डीडीयू हॉस्पिटल, एसएसपीजी हॉस्पिटल और महिला चिकित्सालय से बालू की बाल्टी नदारत है।

जच्चा बच्चा दोनों को है खतरा

कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल के चिल्ड्रेन वार्ड और राजकीय महिला चिकित्सालय के जच्चा-बच्चा वार्ड से लेकर एसएनसीयू तक घोर लापरवाही देखने को मिली। अगर इन अस्पतालों में आग जैसी कोई बड़ी घटना घटती है तो यहां माताओं को अपनी ही नहीं अपने कलेजे के टुकड़े का जान बचाना मुश्किल हो जाएगा।

बड़ी आग पर काबू पाना मुश्किल

अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक आग जैसी समस्या से निपटने के लिए सारी व्यवस्था की गई है। प्रबंधन की ओर से फायर सिस्टम के इंतजाम के दावे तो ठीक है, लेकिन विकराल आग लगने पर ये सारी व्यवस्थाएं नाकाफी साबित होने वाले हैं। अस्पताल में तैनात कर्मचारी भी आग बुझाने के लिए प्रशिक्षित नहीं किए गए हैं। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि अनुमानत: शहर के 95 प्रतिशत अस्पतालों ने फायर एनओसी रिन्यूअल तक कराई है।

रिन्यूअल नहीं तो होगी कार्रवाई

महाराष्ट्र में हुई घटना के बाद डीएम कौशल राज शर्मा ने अस्पतालों में फायर फाइटिंग सिस्टम को दुरुस्त करने का निर्देश पहले ही दे दिया है। 11 जनवरी तक जिले के सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को व्यवस्था दुरुस्त करने को कहा था। अब सिर्फ आज भर का ही समय है। डीएम ने मुख्य अग्नि शमन अधिकारी को निर्देश दिया है कि 12 जनवरी से विभागीय अधिकारियों की एक टीम बनाकर इस तरह के सभी अस्पतालों की जांच कराएं। समय के बाद भी जिन अस्पतालों ने एनओसी रिन्यूअल नहीं कराया है या कोई अस्पताल बगैर एनओसी के संचालित हो रहा है तो उस पर कड़ी कार्रवाई करें।

:: कोट:::

जिले के लगभग 95 प्रतिशत अस्पताल संचालकों ने फायर एनओसी रिन्यूअल नहीं करवाया है। इसके अलावा शहर के कई सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था में कमियां हैं।

अनिमेश सिंह, मुख्य अग्निशमन अधिकारी

महिला चिकित्सालय में फायर फाइटिंग सिस्टम को बेहतर करने का काम चल रहा है। काम पूरा होने के बाद सारी व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी। जहां कमी है उसे पूरा कराया जा रहा है।

लीली श्रीवास्तव, एसआईसी, महिला चिकित्सालय

Posted By: Inextlive