DEHRADUN : डीजल व पेट्रोल के लगातार बढ़ते दामों ने दुनिया भर में इसके विकल्प की जरूरत को पैदा कर दिया है. वल्र्ड लेवल पर साइंटिस्ट्स इस पर कई शोध और एक्सपेरिमेंट्स भी कर रहे हैं. इंडिया में भी कई रिसर्च सेंटर्स में इस प्रॉब्लम से पार पाने के लिए रिसर्च की जा रही है. इसी कड़ी में उत्तराखंड के एक छात्र ने इसका हल खोज निकाला है. आपदा प्रभावित क्षेत्र के ट्वेल्थ क्लास के एक स्टूडेंट ने एल्गी यानि शैवाल के जरिए डीजल बनाने पर रिसर्च तैयार की है. रिसर्च के अनुसार आने वाले समय में शैवाल से बने डीजल से देश में 80 परसेंट डीजल की खपत को कम किया जा सकता है. यही नही गाडिय़ों में इंजन में थोड़े से बदलाव के बाद डीजल की खपत को 100 परसेंट कम किया जा सकता है.

क्या है ऑयल प्रोड्यूस करने का प्रोसीजर
सबसे पहले एल्गी यानि शैवाल को पानी में तैयार किया जाता है, इसके बाद ऑयल एक्सट्रेक्शन किया जाता है। एक्सट्रेक्शन के बाद इससे प्रोटीन सिसिड्यू और बायो डीजल प्रोडक्शन होगा। प्रोडक्शन के बाद इससे ग्लिसरीन प्रोडक्ट और रिन्यूवेबल फ्यूल प्राप्त होगा। जिसे गाडिय़ों में अस्सी बीस के रेशियो में डीजल में मिलाकर गाड़ी को चलाया जा सकता है।

100 परसेंट कम होगी खपत
फिलहाल एल्गी से तैयार बायो डीजल को डीजल में मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन गाडिय़ों के इंजन में अगर कुछ बदलाव कर दिए जाएं तो इसे पूरी तरह से कम किया जा सकता है। बायो डीजल के मुताबिक इंजन को मोडिफाई किया जा सकता है। जिस दिन बायो डीजल के हिसाब से इंजन डिजाइन होगा तो उस दिन नॉन रिन्यूवेबल फ्यूल यानि डीजल की खपत 100 परसेंट तक कम की जा सकती है। लेकिन इसके लिए गवर्नमेंट एजेंसीज को इस पर गहन शोध करने की जरूरत है। बायो डीजल में ल्यूब्रीकेंट पावर कम होती है। इसीलिए इसे डीजल के साथ ही यूज किया जा सकता है।

रोजगार में भी Helpfull
शैवाल को पानी में तैयार किया जा सकता है। इसे कहीं भी ठहरे हुए पानी में तैयार किया जा सकता है। अगर एल्गी से बायो डीजल बनाने के प्लांट देश में लगा दिए जाएं तो इससे कई लोगों को रोजगार भी मिलेगा।


13 डिस्ट्रिक्ट से 202 रिसर्च हुई सबमिट
जीआरडी वल्र्ड स्कूल में 21वीं स्टेट लेवल पर नेशनल चिल्डे्रन साइंस कांग्रेस ऑर्गनाइज हुई। प्रोग्राम को चीफ गेस्ट गढ़वाल यूनिवर्सिटी के एक्स वाइस चांसलर पद्मश्री प्रो। एएन पुरोहित और माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीएस गवाल ने इनॉगरेट किया। प्रोग्राम में स्टेट के डिफरेंट डिस्ट्रिक्ट से आए जूनियर साइंटिस्ट्स ने 202 रिसर्च प्रेजेंट की। रिसर्च का मेन टॉपिक उर्जा के क्षेत्र में संभावनाएं, उपयोगिता और संरक्षण था। इस मौके पर चीफ गेस्ट ने बच्चों द्वारा पेश किए गए रिसर्च की खूब सराहना की। नेशनल साइंस कांग्रेस के को-ऑर्डिनेटर निर्मल रावत ने बताया कि एनसीएसटी और डीएसटी द्वारा साइंस के प्रति स्टूडेंट्स को अवेयर करने के मकसद से इसका आयोजन किया जाता है। मंडे को 202 रिसर्च में से 16 को नेशनल लेवल के लिए भेजा जाएगा। प्रोग्राम में जीआरडी के प्रिंसिपल आरके शर्मा, जीआईसी सेलाकुई से पीके शर्मा, पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत, योगिता शर्मा सहित सैंकड़ों स्टूडेंट्स मौजूद रहे।

चौबीस घंटे होगी पहाड़ों में बिजली

पिछले दिनों पहाड़ के कई इलाकों ने आपदा का दर्द झेला। आपदा का वह दर्द साइंस कांग्रेस में भी दिखाई दिया। अधिकतर रिसर्च आपदा प्रबंधन और पहाड़ी इलाकों को समर्थ बनाने को लेकर थी। इसी कड़ी में जीआईसी फाटा के टेंथ क्लास के स्टूडेंट रजत चंद्र जमलोखी ने नाग ताल में विद्युत संभावनाओं को लेकर रिसर्च और मॉडल प्रेजेंट किया। रजत ने सोलर एनर्जी और एयर एनर्जी को कंबांइड रूप में कैसे यूज किया जा सकता है इस पर रिसर्च सबमिट की। उनका मानना है कि अगर घरों के ऊपर सोलर प्लेट लगा दी जाए और पहाड़ों में चलने वाली तेज हवाओं को बिजली में कनवर्ट किया जाए तो पहाड़ों से बिजली संकट दूर हो सकता है।

रिसर्च अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन दिए गए आंकड़े एक दम सही है। डीजल से पूरी दुनिया का बाजार प्रभावित होता है इसीलिए इस टॉपिक पर रिसर्च करने की सोच दिमाग में आई। मेरा मकसद केवल डीजल की जरूरत को कम कर बायो डीजल के जरिए इसकी जरूरत को कम करना है।
-महेश चंद्र भट्ट, स्टूडेंट, जीआईसी बड़ाबे, पिथौरागढ़

अगर देश में बायो डीजल के प्रोडक्शन पर विचार किया जाए तो मौजूदा तस्वीर को बदला जा सकता है। फिलहाल देश में केवल प्रयोगशाला स्तर पर ही इस पर काम किया जा रहा है। इसे व्यवसायिक स्तर पर पहुंचाने की जरूरत है।
-सुनील कुमार उप्रेती, टीचर

Posted By: Inextlive