भगत सिंह कोश्यारी ने कहा, नहीं लडूंगा 2019 का चुनाव, लूंगा संन्यास

-2019 के बहाने 2017 को साधने का सियासी दांव

-खंडूड़ी को तवज्जो से लगातार असहज हो रहे पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी

-खंडूड़ी ही नहीं, हर नागरिक है जरूरी-कोश्यारी

देहरादून: सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही बीजेपी के घर में कोहराम मचा हुआ है। नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी का चेहरा न बनाए जाने से नाराज पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी ने शनिवार को ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। भगतदा ने ऐलान किया है कि वह 2919 का लोकसभा चुनाव नहीं लडे़ंगे और राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इसके बाद वे राजनेता नहीं, बल्कि एक आम आदमी की भूमिका में रहकर समाजसेवा करेंगे। कोश्यारी ने अपने इस बयान से दो निशाने साधे हैं। 2019 की बात कहकर उन्होंने ब्रह्मास्त्र छोड़ा है 2017 को साधने के लिए। उनके इस बयान के कई सियासी मायने माने जा रहे हैं। एक तो ये कि कोश्यारी पार्टी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं कि उन्हें ही 2017 का चेहरा बनाया जाए। दूसरा, अगर उन्हें पार्टी ने इसी तरह साइड करके रखा तो वे 2017 के साथ साथ 2019 में भी पार्टी को उनका सियासी दम नजर आ जाएगा।

खंडूड़ी को तवज्जो देने से नाराज?

कोश्यारी यहीं पर नहीं रूके हैं। नैनीताल में उन्होंने कहा कि सिर्फ खंडूड़ी ही नहीं, बल्कि हर नागरिक जरूरी है। साफ है कि कांग्रेस की चुनौती से पार पाने के लिए बीजेपी में जिस तरह से बीसी खंडूड़ी को फिर से तवज्जो मिलनी शुरू हुई है, उससे भी भगतदा असहज हैं। कई बार भगतदा अपनी नाराजगी साफ जाहिर भी कर चुके हैं। हाल ही में उन्हीं के संसदीय क्षेत्र भीमताल में हुई पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में वे शामिल नहीं हुए।

प्वाइंटर्स

भगतदा का कब-कब चूका दावा

-वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार गठित हुई, तो आरएसएस पृष्ठभूमि वाले कोश्यारी सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन नित्यानंद स्वामी को कमान सौंप दी गई। हालांकि 2001 में तीन महीने के लिए कोश्यारी को सीएम बनने का मौका मिला।

-वर्ष 2007 में बीजेपी सत्तासीन हुई, तो भी भगतदा का सीएम पद के लिए प्रबल दावा था, लेकिन बीसी खंडूड़ी सीएम बन गए।

-वर्ष 2009 में बीजेपी हाईकमान ने खंडूड़ी को बदलने का फैसला किया, तो भी दौड़ में भगतदा शामिल थे, हालांकि बदले समीकरण में उन्होंने अपनी जगह प्रकाश पंत को आगे कर दिया था, हालांकि खंडूड़ी की पसंद होने की वजह से रमेश पोखरियाल निशंक को मौका मिला।

-वर्ष 2011 में एक बार फिर बीजेपी ने सीएम बदला। निशंक हटे, लेकिन भगतदा देखते रह गए और फिर खंडूडी सीएम बन गए।

वर्जन

-भगतदा की नाराजगी या फिर दबाव बनाने जैसी कोई बात नहीं है। भगतदा हमारे वरिष्ठ नेता हैं। उनके बयान पर टिप्पणी मैं नहीं कर सकता हूं, मगर अपनी मंशा जाहिर करने का अधिकार सभी को है। भगतदा ने चुनाव को लेकर अपनी मंशा जाहिर की है, तो ये उनका अपना नजरिया है.-अजय भट्ट, प्रदेश अध्यक्ष, बीजेपी।

-कोश्यारी जी हमारे सर्वमान्य नेता हैं। उनके मार्गदर्शन में ही हम काम करते रहे हैं। नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने पर उनका हमेशा जोर रहा है.उन्होंने जो ऐलान किया है, उस पर कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन नाराजगी या दबाव जैसी बातों को इस संबंध में जोड़कर नहीं देखा जा सकता.-प्रकाश पंत, महामंत्री, बीजेपी।

-पार्टी की आंतरिक बैठकों में भगतदा हमेशा ये बात कहते रहे हैं कि चुनावी राजनीति से वे अब दूर होना चाहते हैं। नए लोगों को मौका देने की बातें भगतदा ने पहले भी की हैं.-त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व कैबिनेट मंत्री।

-कोश्यारी जी हमारे सम्मानित नेता हैं। उनका मार्गदर्शन पार्टी को हमेशा चाहिए। वैसे भी मोदी जी ने आयु वाला फार्मूला पार्टी में लागू कर दिया है। ऐसे में नए लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

डॉ। हरक सिंह रावत, बीजेपी नेता।

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खफा हुए थे खंडूड़ी, अब हुई जांच पूरी

बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। दून के रायपुर में हुई पर्दाफाश रैली के दौरान जिस अव्यवस्था से पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी इतने नाराज हुए थे कि रैली छोड़कर ही निकल गए। बाद में पार्टी को इस पूरे मामले की जांच तक करानी पड़ी। दो सदस्यीय कमेटी ने जांच पूरी कर ली है। खंडूड़ी ने कहा था कि साजिश के तहत रैली में अव्यवस्था फैलाई गई। सूत्रों के मुताबिक जांच में साजिश की जगह लापरवाही की बात पुख्ता तौर पर उभर रही है। रायपुर क्षेत्र में 19 अगस्त को पर्दाफाश रैली में पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी के भाषण के दौरान अव्यवस्था फैल गई थी। इस पर अभिमन्यु कुमार और नीरू देवी की दो सदस्यीय जांच कमेटी बना दी गई थी। इस कमेटी ने जांच में कई बिंदुओं को शामिल करते हुए तथ्य जुटाए हैं। जांच रिपोर्ट अब प्रदेश अध्यक्ष को सौंपने की तैयारी है।

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अलग-थलग पडे़ अजय भट्ट

बीजेपी के भीतर मचे घमासान की स्थिति में प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट अलग-थलग नजर आ रहे हैं। भट्ट को अध्यक्ष पद से हटाए जाने संबंधी खबरें सोशल मीडिया में आने के बाद से उनके समर्थन में बीजेपी का कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया है। दरअसल, अध्यक्ष बनने के बाद से भट्ट अपने साथ पार्टी के दूसरे नेताओं को जोड़ नहीं पाए हैं। उनकी ये कमजोरी पर्दाफाश रैली के दौरान जगह जगह नजर आई है।

Posted By: Inextlive