- बंद हो चुके कई सिंगल स्क्रीन सिनेमा

- भारतीय सिनेमा दिवस आज

देहरादून।

दून में पहले जैसा सिनेमा नहीं रहा। यहां अधिकतर सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो चुके है। जो हैं, उन्होंने भी बदलते दौर में मल्टीप्लेक्स का रूप ले लिया है। जो सिंगल स्क्रीन सिनेमा चल भी रहे हैं, उनके ओनर साथ में कोई दूसरा बिजनेस भी कर रहे हैं।

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सबसे पुराना सिनेमा भी बंद

दून का सबसे पुराना सिनेमा हॉल दिग्विजय है। जो कि 30 नवंबर 1926 को बना था। हालांकि इससे पहले ये सिनेमा ओलंपिया नाम से था। जो कि 1919 से चला आ रहा है। 1926 में इसका नाम दिग्विजय हो गया। अब ये बंद हो चुका है।

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सिंगल सिनेमा का बदल दिया रूप

विकासनगर का उपासना सिनेमा हो या मसूरी का वासु सिनेमा दोनों का ही रूप बदलर मल्टीप्लेक्स की तरह कर दिया है। ताकि लोग इस ओर आकर्षित हो सके। इनको वेल फर्नीश्ड किया गया है। हालांकि उपासना अब भी सिंगल स्क्रीन सिनेमा ही है। न्यू अंपायर में कार्निवाल सिनेमा चल रहा है।

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ये सिनेमा चल रहे

नटराज, न्यू अंपायर, अंपायर, ओरिएंट, छायादीप, पायल, सिल्वर सिटी, पीवीआर, मूवी लांज, मुक्ता, ए-टू सिनेमाज, कार्निवाल इंदिरानगर, कार्निवाल सिटी जंक्शन मॉल।

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ये सिंगल सिनेमा हो गए बंद

प्रभात, दिग्विजय, कैपरी टॉकीज, कनक, ओडीएन सिनेमा, फिलिमस्तिान, लक्ष्मी, न्यू राज कमल, दो आर्मी के सिनेमा, शशि टाकीज सहसपुर, हर्ष टाकीज डोईवाला,छाया ऋषिकेश, ऋषि टॉकी ऋषिकेश, गगन हर्बटपुर, अभिनव सिनेमा विकासनगर, जुबली, ऑल्टो और लांजुमन मसूरी में, पिक्चर पैलेस भी मसूरी में।

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तब साइलेंट पि़क्चर चलती थी।

टॉकीज के जानकार जीएस थापा ने बताया कि मसूरी के पिक्चर पैलेस में सबसे पहले साइलेंट फिल्में चलती थीं और तब लोगों के मनोरंजन के लिए बैंड-बाजा आदि बजाया जाता था। बाद में इसका नाम रिड्ज कर दिया गया है। फिर इसका नाम वासु किया गया। वर्ष 1913 में ये बना था और यहां सबसे पहली फिल्म द होली नाइट लगी थी। तब ये इलेक्ट्रिक सिनेमा हुआ करता था और ये अकेला ऐसा सिनेमा था जहां अंग्रेज और इंडियन साथ में फिल्म देखा करते थे।

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सिंगल स्क्रीन सिनेमा को चलाना बेहद मुश्किल है। इसकी मेंटीनेंस तक करवानी भारी पड़ रही है। ये वही लोग चला सकते हैं। जिनका साथ में कोई दूसरा काम भी हो।

- भीम मुंजल, नटराज सिनेमा

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मैं भी सैकड़ो फिल्मों और एलबम में काम कर चुका हूं। लोकल फिल्मों को सिंगल स्क्रीन पर ही लांच किया जाता है। लेकिन यहां तो ऑडियंस तक नहीं आती है। जो कि बेहद बुरा लगता है।

- कांता प्रसाद, स्थानीय कलाकार

Posted By: Inextlive