-बाघों की निगरानी करने वाले वैज्ञानिकों के डाटा चुराते हैं साइबर शिकारी

-डाटा चुराकर बाघों की एग्जैक्ट लोकेशन का लगाते हैं पता

-रेडियो कॉलर लगे बाघ आसानी से हो जाते हैं ट्रैक

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DEHRADUN: कॉर्बेट प्रशासन इन दिनों शिकारियों की धरपकड़ में जुटा है। पांच दिन का विशेष अभियान टाइगर रिजर्व में चलाया जा रहा है और शिकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। ये अभियान खुफिया सूचना पर चलाया जा रहा है। हालांकि कॉर्बेट प्रशासन ऐसे अभियान बीच-बीच में चलाता रहता है। लेकिन एक सच्चाई और है जो हैरान करने वाली है। बाघों पर साइबर पोचिंग का खतरा भी मंडरा रहा है।

शिकारी करते हैं अकाउंट हैक

साइबर पोचिंग का पहला मामला ख्0क्फ् में सामने आया था। टाइगर्स की एक्चुअल लोकेशन जानने के लिए साइबर शिकारियों ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई) के वैज्ञानिक डॉ। के रमेश का ई मेल एकाउंट हैक करने की कोशिश की थी। इस एकाउंट में बाघों की निगरानी का डाटा था।

वन्यजीव तस्कर वन्यजीव विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की निगरानी में रखे गए बाघों का डाटा चुराने की कोशिश अभी भी कर रहे हैं। ताकि बाघों की सही लोकेशन पता लगाकर उनका शिकार किया जा सके।

जीपीएस से रखी जाती है नजर

बाघों की गतिविधि पर नजर रखने के लिए डब्लूआईआई के वैज्ञानिक जीपीएस की मदद लेते हैं। इससे उन बाघों का डाटा एकत्र किया जाता है जिन पर रेडियो कॉलर लगाए गए होते हैं। डाटा से पता चलता है कि बाघ किस वक्त कहां जाता है और उसकी लोकेशन्स अमूमन कहां कहां होती है।

ज्यादातर डाटा हैं डिजिटाइज्ड

बाघों के संरक्षण और दूसरे जंगली जानवरों से जुड़ी रिसर्च के ज्यादातर डाटा डिजिटाइज्ड हैं। साइबर शिकारियों की नजर इन्हीं डाटा को जुटाने की होती है। इन दिनों वैज्ञानिक एम-ट्रिप्स (मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव पेट्रोलिंग एंड एकोलॉजिकल स्टेटस) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी मुख्य वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं और पेट्रोलिंग में इस तकनीक का खूब इस्तेमाल हो रहा है। डब्लूआईआई ने देश के सात टाइगर रिज‌र्व्स में बाघों की मॉनिटरिंग और आंकड़े एकत्र करने के लिए एम-स्ट्रिप्स नाम की टेक्नीक को डेवलप किया है। कैमरा ट्रैप के जरिए भी बाघों के रहने के स्थानों और आवाजाही के डिजिटल आंकड़े एकत्र किए जाते हैं। यह तकनीक वन्यजीव संरक्षण में मददगार साबित हो रही है, लेकिन इसके साथ ही हैकर भी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं।

इंटरनेशनल हैकर्स भी सक्रिय

वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ, तेंदुआ, हाथी और विलुप्त होते जंगली जानवरों की हड्डियां, दांत और खाल की तस्करी इंटरनेशनल लेवल तक होती है। इसलिए ऐसे जानवरों से जुड़े डाटा चुराने के लिए इंटरनेशनल हैकर्स की सक्रियता से इनकार नहीं किया जा सकता। वे डाटा चुराकर इसे स्थानीय शिकारियों को भी उपलब्ध करा सकते हैं।

बाघों पर साइबर पोचिंग का खतरा मंडरा रहा है तो वन महकमे को इस पर खास रणनीति के तहत गश्त बढ़ाने की जरूरत है। लाखों, करोड़ों में बाघों के अंग बिकते हैं, ऐसे में साइबर एक्सप‌र्ट्स की मदद से तैयारी करना चाहिए।

डॉ.आरबीएस रावत, पूर्व पीसीसीएफ उत्तराखंड।

Posted By: Inextlive