-उत्तराखंड बायोडायवर्सिटी बोर्ड डब्ल्यूआईआई व फॉरेस्ट की मदद से रिसर्च पर जुटा

-दावा, पहली बाद इन मैमल्स पर शुरू हो रही है देश में रिसर्च

-देश में इन वाइल्ड एनिमल्स का 30 परसेंट शिकार उत्तराखंड में

देहरादून, उत्तराखंड में तीन वाइल्ड लाइफ एनिमल्स पर खतरा मंडरा रहा है। एक्सप‌र्ट्स के दावों पर गौर करें तो इनकी पोचिंग पर ब्रेक न लगा तो आने वाले वक्त में ये वाइल्ड लाइफ एनिमल्स एनडेंजर्ड में शामिल हो जाएंगे। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि इन एनिमल्स के कुल शिकार का करीब 30 परसेंट पोचिंग उत्तराखंड में भी हो रहा है। जिसका एक्सपोर्ट चाइना के मार्केट तक पहुंच रहा है। इसके लिए उत्तराखंड बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने इन एनिमल्स पर रिसर्च शुरू कर दी है। बोर्ड की दावों पर गौर करें तो पहली बाद देश में इन एनिमल्स पर रिसर्च शुरु की जा रही है।

उत्तराखंड में 4 स्पेशीज

पेंगोलिन, जिसका जूलोजिकल नेम मैसिस क्रैसिकाउडाटा है। इंडिया, श्रीलंका, नेपाल व भूटान में पाए जाने वाला वाइल्ड एनिमल है। संकटग्रस्त माने जाने वाले पेंगोलिन का उत्तराखंड में अस्तित्व खतरे में है। एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि वर्ष 2006 से 2015 तक देशभर में 5772 पेंगोलिन की पोचिंग हुई है। जिसमें से करीब 30 परसेंट पोचिंग उत्तराखंड में हुई है। आईएफएस व उत्तराखंड बायोडायवर्सिटी बोर्ड के मेंबर सेक्रेटी एसएस रसाइली का कहना है कि पेंगालिन की विश्वभर में 8 स्पेशीज पाई जाती हैं। उत्तराखंड में भी 4 स्पेशीज पाई जाती हैं।

पेंगोलिन की सप्लाई चाइना तक

मेंबर सेक्रेटरी एसएस रसायली का कहना है कि पेंगोलिन की पोचिंग इसलिए ज्यादा मात्रा में हो रही है क्योंकि चाइना मार्केट में इसकी डिमांड बढ़ गई है। चाइना में इस एनिमल्स के स्केलेटन से मेडिसिन तैयार की जा रही है। हालांकि कौन से मेडिसिन बन रही है, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। वर्तमान में पेंगोलिन की स्थिति दुर्लभ एनिमल्स के तौर पर हो गई है।

मॉनिटर लीजर्ड भी संकट में

उत्तराखंड बायोडायवसिटी बोर्ड के मुताबिक पेंगोलिन की तर्ज पर मॉनिटर लीजर्ड भी उत्तराखंड में खतरे में है। उत्तराखंड में इसकी पहचान 'गो-छिपकली', 'गावान' व 'विष खोपरा' के तौर पर है। बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार इन एनिमल्स का शिकार हथाजोड़ी, मटन व इसकी खाल को बजाने वाले ड्रम में यूज करने के लिए किया जा रहा है। लेकिन उत्तराखंड में इसकी सबसे ज्यादा पोचिंग 'हथाजोड़ी' के लिए की जा रही है। एसएस रसायली का मानना है कि अंधविश्वास वाले मान्यताओं के मुताबिक इसके पैरों को घर में रखने के अनुसार लक्ष्मी का प्रवास माना जाता है। इस अंधविश्वास से कुछ लोग इसके शिकार पर तुले हुए हैं। जबकि यह फॉर्मर्स फ्रेंड्स के तौर पर जाना जाता है, जो चूहा व सांप का शिकार करते हैं।

मैंगूज की भी पोचिंग

एक्सप‌र्ट्सट व फॉरेस्ट ऑफिसर्स के मुताबिक मैंगूज यानी नेवले का अस्तित्व भी खतरे में है। इसके बालों को इस्तेमाल पेंटिंग ब्रश के लिए किया जा रहा है। बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी एसएस रसायली का कहना है कि एक मैंगूज से करीब 70-80 ग्राम बाल बरामद किए जा सकते हैं। जिनसे पेंटिंग ब्रश तैयार किए जाते हैं, जो दूसरे ब्रश की तुलना में मजबूत माने जाते हैं।

रुद्रपुर में सामने आए दो मामले

अधिकारियों के अनुसार इस वर्ष कुछ माह पहले फॉरेस्ट टीम ने रुद्रपुर (ऊधमसिंहनगरर)में पेंगोलिन के दो मामले पकड़े थे। जिन्हें जेल भेजा गया है।

Posted By: Inextlive