राज्य की राजधानी होने के बावजूद दून में हेलमेट न पहनने वालों की एक बड़ी संख्या है। हेलमेट सिर पर लगाने के बजाय बांह में लटकाकर टूव्हीलर्स चलाने वाले सड़कों पर बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। इनमें न सिर्फ युवा बल्कि उम्रदराज लोग भी शामिल हैं। सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरे ऐसे लोगों को देख नहीं पाते या देखकर भी बिना हेलमेट वालों को अनदेखा किया जाता है यह समझ से परे है। कभी-कभी चौक चौराहों पर जरूर पुलिस हेलमेट न पहनने वालों का चालान करती है लेकिन यह सिर्फ औपचारिकता ही होती है।

देहरादून ब्यूरो। एक खास बात यह है कि राजधानी देहरादून में भले ही बिना हेलमेट वालों की तरफ पुलिस का ज्यादा ध्यान न रहता हो, लेकिन राज्य के बाकी शहरों में और खासकर कुमाऊं मंडल के शहरों में लोग हेलमेट को लेकर देहरादून से ज्यादा जागरूक नजर आते हैं। हल्द्वानी जैसे शहर की सड़कों पर बिना हेलमेट चलने वाले टूव्हीलर चालकों की संख्या काफी कम होती है।

मौतों का बड़ा कारण हेलमेट न लगाना
हालांकि एक्सीडेंट में मरने वाले टूव्हीलर्स चालकों के मामले में यह रिकॉर्ड नहीं रखा जाता कि जान गंवाने वाले ने हेलमेट पहना था या नहीं, लेकिन पुलिस मानती है कि एक्सीडेंट के ज्यादातर मामलों में टूव्हीलर वालों की मौत का बड़ा कारण हेलमेट न पहनना ही होता है। यही वजह है कि पुलिस समय-समय पर हेलमेट लगाने वालों को अवेयर करने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित करती है, लेकिन इसका देहरादून के लोगों पर कोई खास असर नहीं पड़ता।

पीछे बैठने वाले बिना हेलमेट
नियमानुसार टूव्हीलर में पीछे बैठने वाली सवारी को भी हेलमेट लगाना जरूरी है। दून में कुछ समय पहले इस मामले में सख्ती हुई थी और तब पीेछे बैठे कुछ लोग हेलमेट पहने भी नजर आने लगे थे। लेकिन, उस समय कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इसका विरोध किया था और पुलिस अधिकारियों से मिलकर इस मामले में सख्ती न करने की सलाह दी थी। सलाह मान ली गई और लोगों को मौत के मुंह में धकेलने का रास्ता साफ कर दिया गया।

बच्चों को ज्यादा खतरा
डबल हेलमेट न पहनने के कारण सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को है। ज्यादातर दूनाइट्स बच्चों को टूव्हीलर पर ही बच्चों को स्कूल छोड़ते और वापस घर ले आते हैं। लेकिन पूरे शहर में कुछ ही ऐसे लोग नजर आते हैं, जो बच्चों को भी हेलमेट पहनाते हैं। ज्यादातर लोग ऐसा करने की जरूरत नहीं समझते।

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रीडर्स का रिएक्शन
मेरी राय में बच्चे अनसेफ हैं, परंतु इसका जिम्मेदार प्रशासन है। पेरेंट्स के पास कोई ऑप्शन ही नहीं है। स्कूल बस वाले एक बच्चे का 3000 तक ले रहे हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी महंगा है। ऐसे में पेरेंट्स बच्चों को गाड़ी दिलवा देते हैं।
हिमेश भटनागर

क्या कहते हैं दूनाइट्स
ज्यादातर लोग और खासकर यूथ हेलमेट लगाना अपनी तोहीन समझते हैं। हेलमेट लोग अपने सेफ्टी के लिए नहीं, चालान से बचने के लिए लगाते हैं। यह मानसिकता बदलनी होगी।
कैलाश चन्द्र

हाल ही में पुलिस ने किसी हेलमेटमैन को बुलाया था और उनके साथ शहर में मार्च भी निकाला था। कुछ लोगों को हेलमेट भी दिये थे। लेकिन यह तय है कि जिन लोगों को हेलमेट दिये थे, वे अब भी नहीं लगाते होंगे।
सलीम सैफी

हेलेमेट को लेकर मानसिकता बदलने की जरूरत है। हर रोज दुर्घटनाओं में बिना हेलमेट वाले टूव्हीलर वालों की मौत होती है। इसके बावजूद लोगों की समझ में नहीं आता। जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक ऐसा ही चलेगा।
सुशील सैनी

पेरेंट्स को यह बात समझनी होगी। बच्चों को टूव्हीलर देने से पहले हेलमेट देंगे तो बच्चे सुरक्षित रहेंगे। इस बात का भी जरूर ध्यान रखें कि बच्चे हेलमेट बांट पर लटकाने के बजाय सिर पर ही पहनें।
अरुण श्रीवास्तव

Posted By: Inextlive