करीब दो दर्जन घरों वाला नैनीताल जिले का तल्ला रामगढ़ गांव। गांव के बीच से गुजरती कैंचीधाम जाने वाली रोड और रोड के दोनों ओर कुछ दुकानें। पहाड़ी की ओर से आने वाला एक 3 मीटर की चौड़ा गदेरा जिसमें बरसात के दिनों में थोड़ा-बहुत पानी आता था बाकी दिनों लगभग सूखा। 18 अक्टूबर की शाम तक इस गांव में सब सामान्य था हल्की बारिश थी लेकिन रात 10 बजे बाद बारिश तेज होने लगी थी। लोगों का उम्मीद नहीं थी कि 3 मीटर चौड़ा साधारण सा पहाड़ी नाला बड़ी तबाही का सबब बन जाएगा। रात 3 बजे अचानक इस नाले में पानी के साथ गाद आने लगी। देखते ही देखते मलबा घरों में घुसने लगा। गांव में शोर मच गया। लोग घरों से बाहर निकलकर सुरक्षित जगहों पर भागने लगे। महिलाओं और बच्चों को गांव से करीब 300 मीटर दूर एक सुरक्षित घर में भेज दिया और गांव के पुरुष बारिश में लगातार गदेरे की स्थिति पर नजर रखते रहे।

देहरादून (ब्यूरो)। आपदा के 6 दिन बाद तल्ला रामगढ़ पहुंचे दैनिक जागरण आईनेक्स्ट को गांव के लोगों ने उस रात की खौफनाक दासतां सुनाई। थानसिंह बिष्ट के अनुसार गांव के पुरुष गदेरे से सुरक्षित दूरी पर खड़े जायजा लेते रहे। दो बजे के करीब शुरू हुआ मलबा आने का सिलसिला सुबह 5 बजे तक बढ़ता चला गया। इस दौरान गांव में कुछ मकान भरभरा कर गिर गये और बाकी 6 से 8 फुट मलबे में दब गये। 3 मीटर चौड़ा गदेरा सुबह होने तक 200 मीटर चौड़े पाट वाली बड़ी नदी का रूप ले चुका था। गदेरे के दोनों तरफ हजारों की संख्या में फलदार पेड़, जो यहां के लोगों की रोजी का मुख्य साधन रहा है, टूट चुके थे या बह गये थे।

न बर्तन बचे, न राशन
गांव की दीपा देवी बताती हैं, रात को 3 बजे के करीब घर में पानी और मलबा घुसने लगा था। अब हम समझ चुके थे कि घर छोड़ना पड़ेगा। हम कोशिश कर रहे थे कि कुछ जरूरी सामान ले लें। इसी दौरान मेरा बेटा दूसरे कमरे से दौड़ता आया और हमें बाहर धकेल दिया। मैं, मेरा बेटा और मेरी बेटी तेजी से भागे। कुछ दूर जाकर पीछे देखा तो हमारा घर टूटकर गिर चुका था। न हमारे पास कोई बर्तन बचा न राशन। दो-तीन बर्तन गांव के उन लोगों ने दिये हैं, जिनके घर का सामान बच गया।

गायें खूंटे पर बंधी-बंधी दब गई
रामगढ़ तल्ला और रामगढ़ मल्ला के पास कुछ घरों का गांव है बोहराकोट। यहां एक घर दीवान सिंह का है। 93 वर्षीय दीवान सिंह के दो बेटे हैं। घर से करीब 100 मीटर नीचे पहाड़ी गदेरा है। गदेरे के साथ लगते तीन घर थे और दीवान सिंह के बेटों की गौशाला। यहां गदेरे के साथ-साथ दीवान सिंह के बेटों को फलों का बगीचा था। करीब 1500 पेड़ों वाले इस बगीचे से उन्हें सीजन में 8 से 10 लाख मिल जाते थे। अब बगीचे की जगह बड़े-बड़े पत्थरों वाला रोखड़ है। दीवान सिंह कहते हैं। नीचे गौशाला में छह गायें थे, जो खूंटे पर बंधी ही दबकर मर गई। बात यहीं नहीं रुकी। घर के ऊपर से भी मलबा घर पर गिरने लगा। परिवार ने घर से भागकर करीब 1 किमी दूर एक दूसरे घर में शरण ली।

60 किमी में हजारों जख्म
दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने हल्द्वानी से रामगढ़ तक करीब 60 किमी दूरी तय की। आपदा के निशान हल्द्वानी से आगे बढ़ते ही नजर आने लगे थे। काठगोदाम ने करीब 8 किमी दूर रानीबाग में पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा टूटकर गिरा है। यहां वाहनों के निकलने लायक जगह बनाई गई है। इसके बाद तो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर इस तरह पहाड़ियां दरक कर सड़क पर आ गई हैं। पर्यटक स्थल भीमताल का ताल लबालब भरा हुआ है। पहाड़ी से भारी मात्रा में पानी आकर मेन मार्केट में सड़क पर बह रहा है। भीमताल से करीब 8 किमी दूर नौकुचियाताल का पानी सड़क तक आ गया है। स्थानीय निवासी डॉ। शबाना अंसारी बताती हैं कि इतना पानी नौकुचियाताल में पहले कभी नहीं देखा।

बिजली-पानी सब बंद
भवाली से रामगढ़ तक पूरे क्षेत्र में आपदा के 6 दिन बाद भी न बिजली बहाल हो पाई थी और न पानी। भवाली में ढाबों पर खाना उपलब्ध है, लेकिन ढाबे वाले पानी कम खर्च करने की गुजारिश कर रहे थे। उनका कहना था कि वे तीन किमी दूर पहाड़ी झरने से पानी ढो रहे हैं। बिजली न होने के कारण लोगों के मोबाइल बंद हैं और वे अपनों को अपनी खबर भी नहीं दे पा रहे हैं।

Posted By: Inextlive