- शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बीमार करता है नशा

- डिपेंडेसी, तलब, टॉलरेंस और विड्रॉल चार स्टेज हैं नशे की

देहरादून,

नशा चाहे किसी भी तरह का हो, नुकसानदेह होता है और सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। नशे के आदी लोग इस बात को जानते हैं लेकिन फिर भी वे इसके चंगुल में फंसते जा रहे हैं। नशे का असर शरीर और दिमाग पर होता है। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ। सोना कौशल गुप्ता ने बताया कि नशा करने वाले लोगों में 4 स्टेज होते हैं पहला है डिपेंडेसी। नशा सबसे पहले लोगों की जरूरत बनता है, जो दिमाग को बीमार कर देता है। इसके बाद दूसरी स्टेज में तलब होती है, जिसमें इंसान इसे हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। तीसरी स्टेज टॉलरेंस है, इसमें नशा करने वाला नशे के प्रति टॉलरेंस हो जाता है। जितनी मात्रा में वह नशा पहले लेता है उसके बाद उसकी मात्रा बढ़ती जाती है। शरीर नशे को पहले से ज्यादा डिमांड करता है। चौथी स्टेज विड्रॉल है, जिसमें बैचेनी होने लगती है। इसमें व्यक्ति को दौरे भी आ सकते हैं। साथ ही भूख प्यास पर भी इसका असर पड़ता है।

सूखे नशे का बढ़ रहा चलन

नशे में युवाओं में सूखे नशे का सबसे ज्यादा चलन होता है। सबसे पहले जो प्लांट से सीधा पत्ती के रूप में मिलता है वह भांग, गांजा कहलाता है। इसे सुखा कर भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद इसे रगड़कर धूपबत्ती जैसे तैयार किया जाता है, जो चरस कहलाता है। बाद में पाउडर फॉर्म में तैयार किए जाने वाला प्रोडक्ट स्मैक होता है। जिसका वेट बढ़ाने के लिए अब केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है।

ये हैं नशे के प्रकार-

कोकेन-इसे सूंघ कर या स्मोकिंग के जरिये लिया जाता है। कोकेन लेने वाले लोगों के दिमाग में बनने वाले डोपामिन हार्मोन में रुकावट पैदा होती है, जिससें एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संदेश पहुंचने में बाधा आती है। एक शोध के अनुसार कोकेन के आदि लोगों के शरीर में डोपामिन का स्तर सामान्य से तीन गुना बढ़ जाता है जो काफी खतरनाक हो सकता है। कोकेन व्हाइट कलर का होता है।

स्मैक, चरस: इससे पूरा स्नायु तंत्र प्रभावित होता है। इस नशे से व्यक्ति काफी उग्र हो जाता है और उसे लगता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान है। इसमें उसके अपराध करने की भी आशंका बनी रहती है। काफी दिनों तक यह नशा करने के बाद व्यक्ति को अवसाद, अकेलेपन की दिक्कत होने लगती है। चरस धूपबत्ती की तरह होती है, स्मैक पाउडर फॉर्म में होती है। स्मैक चरस से ज्यादा महंगी होती है। जो लाखों के हिसाब से बिकती है। स्मैक व्हाइट कलर की होती है।

एलएसडी- एलएसडी की फुल फॉर्म लाइसर्जिक एसिड डाईएथिलामाइड है। ये तरल और टैबलेट दोनों रूपों में उपलब्ध इस नशे का असर 10 से 12 घंटे तक रहता है। इससे नशा करने वाला व्यक्ति कल्पना की दुनिया में चला जाता है। ये नशा करने वाला दिमागी सुनपन और उच्च रक्तचाप की चपेट में आ जाता है।

हेरोइन: नशा करने वाले लोगों में हेरोइन सबसे नशीले और पसंदीदा उत्पादों में से एक है जो दिमाग में डोपामिन के स्तर को 200 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। इसका असर स्नायु तंत्र पर तेजी से होता है, लेकिन अधिक सेवन से फेफड़े, किडनी, लीवर के फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। हेरोइन व्हाइट होती है अगर इसमें कुछ एड न किया हो।

निकोटीन - तंबाकू वाले उत्पाद जैसे सिगरेट में निकोटिन पाया जाता है और ये फेफड़ों और दिमाग को अपनी जकड़ में लेता है। एक शोध के अनुसार सिगरेट पीने वाले दो तिहाई लोग सिगरेट के आदि हो जाते हैं जिसे लत कह सकते हैं।

क्राइम की ओर ले जाता है नशा

एनसीआरबी के रिकार्ड पर गौर करें तो बड़े-छोटे अपराधों, बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, राहजनी आदि तमाम तरह की वारदातों में नशे के सेवन का मामला लगभग 73 प्रतिशत तक है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में तो ये दर 87 प्रतिशत तक देखी गई है। अपराध करने के लिए जिस उत्तेजना, मानसिक उद्वेग और दिमागी तनाव की जरूरत होती है इसके लिए अपराधी इस नशे को उपयोग में लाते हैं।

Posted By: Inextlive