सनलाइट वेस्ट मैनेजमेंट की गाड़ी आपके दरवाजे पर खड़ी है। अपने घर और प्रतिष्ठान का कूड़ा गाड़ी में डालें। गीला कचरा हरे डब्बे में डालें और सूखा कचरा नीले डब्बे में डालें। सिटी के विभिन्न हिस्सों में नगर निगम से अनुबंधित वेस्ट कलेक्ट करने वाली गाड़ी पर अक्सर इस तरह की संदेश लाउडस्पीकर के माध्यम से बजता है। लेकिन यह वास्तविकता नहीं है। क्योंकि इस गाड़ी में सूखे कचरे और गीले कचरे के लिए अलग डिब्बा है ही नहीं। यदि आप अपने घर का सूखा और गीला कचरा अलग-अलग रखते हैं तो भी गाड़ी में इस कचरे को एक साथ ही डालना होगा। इसे हम नगर निगम की कथनी और करनी का फर्क भी मान सकते हैं। इस हालत के बावजूद भी न सिर्फ देहरादून नगर निगम को स्वच्छता रैंकिंग बढ़ती रही है बल्कि अब देश के टॉप 50 सिटी में आने का भी दावा किया जा रहा है।

देहरादून (ब्यूरो)।कचरे का सेग्रीगेशन किसी भी शहर की स्वच्छता का पहला पैरामीटर है। स्वच्छता के मामले में बार-बार यह बात दोहराई जाती है कि कचरे का उसके स्रोस से ही सेग्रीगेशसन किया जाए। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि घरों से यदि कुछ जागरूक लोग कचरा अलग भी करते हैं तो भी जब गाड़ी आती है तो सूखा और गीला कचरा एक साथ मिला दिया जाता है। वेस्ट मैनेजमेंट के काम में सहयोग करने वाली संस्थाओं का कहना है कि यदि सूखा और गीला कचरा सोर्स से ही अलग रखने की व्यवस्था बना ली जाए तो वेस्ट मैनेजमेेंट की 60 परसेंट समस्या वैसे ही हल हो जाएगी।

लोग भी निगम की राह पर
वेस्ट सेग्रीगेशन के मामले में आम लोग भी नगर निगम का अनुसरण करते नजर आ रहे हैं। नगर निगम ने अपनी ज्यादातर गाडिय़ों में सूखा और गीला कचरा अलग रखने की व्यवस्था नहीं की है, लेकिन सिटी में कुछ जगहों पर सूखा और गीला कचरा डालने के लिए अलग-अलग बॉक्स रखे हैं। यहां लोग नगर निगम की राह अपना रहे हैं। लोग यहां सूखे और गीले कचरे के अलग-अलग बॉक्स में डालने के बजाय डिब्बों से बाहर ढेर लगा देते हैं। कई बार डिब्बे भर जाने के कारण भी बाहर ढेर लग जाते हैं।

डस्टबिन सिर्फ मिड सिटी में
देहरादून 100 वार्डों का लंबा-चौड़ा शहर है, लेकिन डस्टबिन की व्यवस्था सिर्फ मिड सिटी के कुछ वार्डों तक ही सीमित है। मिड सिटी में इन डस्टबिन को समय-समय पर खाली भी कर दिया जाता है। लेकिन मिड सिटी के वार्डों से बाहर के वार्डों में आमतौर पर डस्टबिन हैं ही नहीं, यदि कहीं डस्टबिन हैं भी तो उन्हें कई-कई दिनों तक खाली नहीं किया जाता और डस्टबिन भर जाने के बाद लोग उसके बाहर ही कचरा फेंक देते हैं।

क्या कहते हैं दूनाइट्स
अच्छा लगता है कि जब पता चलता है कि हमारा शहर सफाई की रैंकिंग में आगे बढ़ रहा है। लेकिन जब शहर में चारों तरफ कचरा नजर आता है कि इस रैंकिंग पर शर्म आती है। फिर महसूस होता है कि इस रैंक के पीछे कुछ तो है।
केवल सिंह पुंडीर

स्वच्छ सर्वेक्षण मोदी सरकार की दूरदृष्टि का एक नायाब नमूना है। यदि वास्तव में शहरी निकाय इस पर ध्यान देते और ईमानदारी बरतते तो हर शहर साफ नजर आता। लेकिन, यहां तो रैंकिंग के लिए भी शॉर्टकट हो रहा है।
मनीष अरोड़ा

बार-बार कहा जाता है कि आम लोगों को साथ लेकर शहर को स्वच्छ बनाना है। लेकिन आम लोगों की भागीदारी के लिए कुछ नहीं होता। अपना नैतिक कर्तव्य समझकर कुछ लोग कचरा अलग रखते हैं तो उसे मिला लिया जाता है।
मोहम्मद तौसीफ

स्वच्छता का सिर्फ नारा दिया जाता है और स्वच्छता रैंकिंग के लिए फर्जी फीडबैक होती है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की कमी है। कुछ नहीं इन्हीें को भर दो। बड़ी संख्या में कर्मचारी तो अधिकारी, नेताओं की कोठियों पर हैं।
सचिन जैन

Posted By: Inextlive