-भूवैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड हिमालय लगातार हो रहा है भूरा

-जंगलों के आग से पिछले दो महीने में पैदा हुआ 0.2 मेगा टन कार्बन

देहरादून, उत्तराखंड में इन दिनों जंगलों की आग अपने चरम पर है। अच्छी बारिश होने तक इस आग पर काबू पाये जाने की उम्मीद बहुत कम है। जंगलों में आग के कारण वन संपदा और बायोडायवर्सिटी को भी भारी नुकसान हो ही रहा है। इस क्षेत्र के हिमालयी ग्लेशियर भी लगातार काले पड़ रहे हैं। जियोलॉजिस्ट बताते हैं कि यदि ग्लेशियर इसी तरह से ब्लैक कार्बन की चपेट में आते रहे तो ग्लेशियर्स के पिघलने की रफ्तार तेज हो जाएगा और यह न सिर्फ भारत बल्कि विश्वभर के लिए बड़ा खतरा होगा।

0.2 मेगा टन कार्बन

वैज्ञानिकों के अनुसार कॉपरनिक्स एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस के मुताबिक उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से पिछले एक महीने में 0.2 मेगाटन कार्बन पैदा हुआ है। यह 2003 के बाद कार्बन की सबसे ज्यादा मात्रा बताई जा रही है। हालांकि 2016 और 2018 में राज्य के जंगलों में 2003 के मुकाबले ज्यादा आग लगी थी।

मई में सबसे ज्यादा ब्लैक कार्बन

देहरादून स्थित वाडिया हिमालयन जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट की एक रिसर्च के अनुसार उत्तराखंड के ग्लेशियरों में मई के महीने में सबसे ज्यादा ब्लैक कार्बन पाया गया है, जबकि अगस्त में सबसे कम ब्लैक कार्बन होता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ने यह स्टडी गंगोत्री ग्लेशियर के चीड़बासा में की थी। स्टडी बताती है कि गर्मी के दिनों में उत्तराखंड में जंगलों की आग के कारण ब्लैक कार्बन की मात्रा में इजाफा होता है।

क्या हैं खतरे

इसरो के सेवानिवृत्त सीनियर साइंटिस्ट डॉ। नवीन जुयाल कहते हैं कि ब्लैक कार्बन जितनी ज्यादा मात्रा में जमा होगी, उतनी ही तेजी से ग्लेशियर काले पड़ने लगेंगे। ग्लेशियर जैसे-जैसे काले पड़ेंगे, वे सूरज की गर्मी को ज्यादा ऑब्जर्व करेंगे और इससे आखिरकार ग्लेशियर्स के पिघलने की रफ्तार बढ़ जाएगी। यह भविष्य के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है।

90 नैनोग्राम तक ब्लैक कार्बन

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक स्टडी बताती है कि कुछ हिमालयी ग्लेशियर्स में जंगलों की आग के बाद ब्लैक कार्बन की मात्रा 90 नैनोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाती है, हालांकि बरसात के मौसम के बाद यह कम होकर 10 नैनीग्राम पर क्यूबिक मीटर तक भी हो जाती है। इस वर्ष राज्य के जंगलों में आग की ज्यादा घटनाओं के कारण ब्लैक कार्बन रिकॉर्ड मात्रा में जमा होने की आशंका जताई जा रही है।

32.75 परसेंट फॉरेस्ट सेंसिटिव

देहरादून स्थित फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार उत्तराखंड में कुल फॉरेस्ट एरिया में से 32.75 परसेंट फॉरेस्ट आग लगने की घटनाओं को लेकर बेहद सेंसिटिव हैं। खास बात यह है कि तमाम चेतावनियों के बावजूद राज्य के जंगलों में हर वर्ष आग लगती है और जब आग लगने की घटनाएं चरम पर होती हैं, उस समय राज्य का वन विभाग असहाय हो जाता है।

कुछ उम्मीदें भी हैं

उत्तराखंड फॉरेस्ट्री एंड हॉर्टीकल्चर यूनिवर्सिटी में एनवायर्नमेंट डिपाटमेंट के हेड डॉ। एसपी सती कहते हैं कि जंगलों की आग ब्लैक कार्बन का बड़ा जखीरा लेकर आती है। यह चिंताजनक है। लेकिन, थोड़ा सा राहत यह है कि हर वर्ष सर्दियों में हिमालय में होने वाली ताजा बर्फ ग्लेशियर्स को ढक देती है। इसके बाद गर्मी के दिनों में बनने वाली ब्लैक कार्बन ताजा बर्फ के ऊपरी आवरण को कवर करती है। इससे नीचे में ग्लेशियर्स पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।

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वर्जन::

जंगलों की आग से बनने वाला ब्लैक कार्बन ग्लेशियर के लिए बड़ा खतरा है। वन विभाग सिर्फ जंगलों में जलने वाले पेड़ों की गिनती है। आग से हिमालयी क्षेत्र की डायवर्सिटी और इससे ग्लेशियर्स पर पड़ने वाले असर का भी आकलन जरूरी है।

डॉ। नवीन जुयाल, रिटायर्ड सीनियर साइंटिस्ट, इसरो

हिमालय में सर्दियों में पड़ने वाली ताजा बर्फ कुछ हद तक ब्लैक कार्बन से मुख्य ग्लेशियर को बचा रही है। हिमालयी में मूरैन भी ग्लेशियर्स को बचा रहे हैं। लेकिन, यह राहत बहुत लंबी नहीं चलने वाली है। वनों को आग से बचाने की पुख्ता प्रबंध जरूरी हैं।

डॉ। एसपी सती, हेड एनवायर्नमेंट डिपार्टमेंट, उत्तराखंड फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी

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Posted By: Inextlive