उत्तराखंड में नदियों के पानी के कॉमर्शियल उपयोग करने पर राज्य सरकार को वाटर सेस के रूप में 400 करोड़ मिले हैं। ये सेस 5 मेगावाट से ऊपर की जल विद्युत परियोजनाओं पर लगाया गया है। ये कमाई पिछले 7 वर्षों में हुई है।

- नदियों का पानी इस्तेमाल करने पर बिजली परियोजनाओं से लिया जा रहा वाटर सेस
- कई कंपनियों ने नहीं कराया रजिस्ट्रेशन, सरकार की बढ़ेगी कमाई


देहरादून, ब्यूरो: उत्तराखंड मैनेजमेंट एंड रेगुलेटरी एक्ट 2013 के तहत 2015 में उत्तराखंड मैनेजमेंट एंड रेगुलेटरी कमीशन का गठन किया गया है, लेकिन आयोग का विधिवत गठन न हो पाने के चलते फिलहाल आयोग का कार्य सिंचाई विभाग देख रहा है।

कई पावर प्रोजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन नहीं
अभी तक कई पावर प्रोजेक्ट्स ने रेगुलेटरी कमीशन में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है। सभी प्रोजेक्ट यदि सेस देंगे, तो इससे सरकार को हजारों करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा। दरअसल, कई पावर प्रोजेक्ट््स सेस के खिलाफ हाई कोर्ट गए हैं। हाई कोर्ट ने एक सरकार के पक्ष में फैसला दिया है। अब मामला हाई कोर्ट की बैंच में चल रहा है। ये सेस गदेरों और नदियों के पानी से उत्पादित की जा रही बिजली के एवज में बिजली कंपनियों से लिया जा रहा है। इसमें निजी ही नहीं सरकार के उपक्रम भी शामिल हैं। पावर प्राजेक्ट्स के द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे पानी का हिसाब सिंचाई विभाग के डिविजन कर रहे हैं।

10 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर तक सेस
सरकार पावर प्रोजेक्ट्स से नदियों के पानी पर 2 पैसे से लेकर 10 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर के हिसाब से वाटर सेस ले रही है। संबंधित डिविजन के वेरिफिकेशन के बाद ही सेस के बिल बनाए जा रहे हैं, लेकिन मामला हाई कोर्ट में जाने के बाद यह प्रक्रिया बाधित थी। 31 जुलाई 2022 तक सेस पर स्टे खत्म होने के बाद 1 अगस्त से सेस प्रक्रिया फिर चालू हो गई है।

89 प्रोजेक्ट हुए रजिस्टर्ड
यूजेवीएन लिमिटेड और हिम ऊर्जा समेत 89 पावर प्रोजेक्ट्स ने नियामक आयोग में रजिस्ट्रेशन कराया है। करीब दो दर्जन बड़े प्रोजेक्ट्स ने अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है। दरअसल सेस के खिलाफ जीवीके समेत कई कंपनियां हाई कोर्ट पहुंचे, लेकिन उन्हें कोर्ट से राहत नहीं मिली है। हाई कोर्ट ने सरकार के पक्ष में दिया है। इसके बाद सरकार ने सेस की कार्रवाई तेज कर दी है।

कई बड़ी कंपनियां नहीं दे रहीं सेस
नदियों के पानी पर सेस लगने के बाद यूजेवीएनएल समेत कुछ पावर प्रोजेक्ट््स ही वाटर सेस दे रहे हैं। सबसे बड़ी पावर कंपनी टीएचडीसी, एनटीपीसी और जीवीके समेत कई कंपनियों सेस नहीं दे रही हैं। कोर्ट के फैसले के बाद सरकार इन कंपनियों पर शिकंजा कस सकती है। एक अनुमान के मुताबिक यदि सभी कंपनियां सेस देती हैं, तो सरकार को हर साल 500 करोड़ के लगभग सालाना राजस्व मिल सकता है। पावर प्रोजेक्ट्स के बाद अब सरकार ड्रिंकिंग वाटर पर भी सेस शुरू करेगी।

उत्तराखंड में वाटर सेस लागू है, एक्ट लागू होने के बाद सेस के रूप में तकरीबन 400 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। हाई कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में आने के बाद उत्तराखंड मैनेजमेंट एंड रेगुलेटरी कमीशन के विधिवत गठन की दोबारा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जल्द ही आयोग का गठन किया जाएगा।
मुकेश मोहन, प्रमुख अभियंता, सिंचाई विभाग, उत्तराखंड
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Posted By: Inextlive