जनता से सीधे सरोकार रखने वाले कुछ विभागों में अधिकतर बड़े पद खाली हैं। यही वजह है कि लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कई विभागों में न शिकायतें दर्ज हो पा रही हैं और न हियरिंग हो पा रही है। इस सबके बीच अब ऐसा लग रहा है कि अब निर्वाचित होने वाली नई सरकार ही इन पदों पर फैसला लेगी। कई विभागों में तो छह महीने से भी ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। बावजूद इसके इनमें नियुक्तियां नहीं हो पाईं। यहां तक कि कुछ खास पदों के लिए तो लोगों ने आंदोलन तक किए।

देहरादून (ब्यूरो)। पटेलनगर स्थित लोकायुक्त मुख्यालय पिछले करीब सात सालों से नए लोकायुक्त की बाट जोह रहा है। हकीकत ये है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए दो-दो सरकारों का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। हर बार पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र में लोकायुक्त की नियुक्ति का जिक्र होता आया है। लेकिन, इसके बावजूद भी वर्तमान सरकार को कार्यकाल पूरा होने को है। अब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई। लोकायुक्त कार्यालय के अनुसार लंबे समय से भ्रष्टाचार को लेकर अब तक डेढ़ हजार से अधिक मामले लंबित हैं। अब तो राजधानी में लोग लोकायुक्त भी भूल गए हैं। जबकि, यह वही लोकायुक्त मुख्यालय है, जहां वर्ष 2020 में 13.38 करोड़ रुपए का खर्च आया। यहां कर्मचारियों की तादाद भी कम नहीं है।


कुछ खास महकमों में के खाली पद
उत्तराखंड लोकायुक्त--लोकायुक्त
मुख्य सूचना आयुक्त--सीआईसी व दो आईसी।
बाल आयोग--अध्यक्ष
उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग--अध्यक्ष
गौ सेवा आयोग--अध्यक्ष
वक्फ बोर्ड--चेयरमैन

सूचना आयुक्त कार्यालय में सुनवाई नहीं
अक्टूबर महीने से सूचना आयुक्त मुख्यालय में मुख्य सूचना आयुक्त तक का पद खाली है। इसके अलावा तीन सूचना आयुक्तों में से केवल एक कार्यरत हैं। ऐसे में अक्टूबर महीने से सूचना के अधिकार में आने वाली अपीलों व शिकायतों पर भी सुनवाई नहीं हो पा रही है। सूचना के अधिकार-2005 के तहत सूचना आयुक्त कार्यालय वह मुख्यालय है, जहां महीने में 250 से लेकर 275 तक अपीलें व शिकायतें आया करती थी। यकीनन, शिकायतें मुख्यालय में स्वीकार हो रही हैं। लेकिन, कब से मुख्य सूचना आयुक्त के साथ दो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति होगी और कब से अपीलों पर सुनवाईयां होंगी, ये कहना भी मुश्किल है।

बाल आयोग में न चेयरमैन न मेंबर्स
किसी भी राज्य का बाल आयोग अन्य आयोग की तुलना में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग में मई महीने से न अध्यक्ष हैं और न छह सदस्य। पूर्व अध्यक्ष ऊषा नेगी का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकार की ओर से नए अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। यही वजह है कि बच्चों के अधिकार संबंधी मामलों पर भी सुनवाई नहीं हो पा रही है। मई में कार्यकाल पूरा करने वाले आयोग के सामने तीन वर्षों में सबसे ज्यादा पोक्सो के मामले दर्ज हुए।

सामने आते थे आयोग के सामने ये मामले
-पोक्सो एक्ट
-स्कूलों में ज्यादा फीस वसूलने
-रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने
-ड्रग्स के कारोबार में बच्चों को शामिल करना
-बच्चों से भीख मंगवाना
-अनाथ बच्चों को शेल्टर दिलाना

उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग में प्रभारी व्यवस्था
बिजली कंपनियों पर नियंत्रण पाने के लिए उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) की खास भूमिका रहती है। लेकिन, करीब चार वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है, अब तक पूर्व चेयरमैन सुभाष कुमार के रिटायरमेंट के बाद स्थाई चेयरमैन की तैनाती नहीं हो पाई है। नियामक आयोग के मेंबर डीपी गैरोला को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जबकि एक सदस्य के तौर पर एमके जैन जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। बताया जा रहा है कि चेयरमैन की नियुक्ति के जिस रफ्तार से बिजली कंपनियों के टैरिफ व ग्राहकों की शिकायतों का निस्तारण हुआ करता था, अब उसमें रफ्तार कम पड़ रही है।

वक्फ बोर्ड चेयरमैन पद भी अक्टूबर से खाली
महत्वपूर्ण बोर्डों में शामिल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का पद भी 24 अक्टूबर से खाली है। जबकि कई बार शिकायतें सामने आती रही हैं। वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर कब्जे हो रहे हैं। लेकिन, बोर्ड के अध्यक्ष न होने के कारण लोग चेयरमैन तक अपनी समस्याएं नहीं पहुंचा पा रहे हैं। अब तक वक्त बोर्ड के चार अध्यक्ष बनाए जा चुके हैं, जबकि दो बार चेयरमैन की नियुक्ति न होने के कारण जिलाधिकारी ने प्रशासक के तौर पर कार्यभार संभाला।

गौ सेवा आयोग के चेयरमैन का पद भी खाली
गौवंश के संरक्षण व संवर्धन के लिए सरकार ने गौ सेवा आयोग का गठन किया था। कुछ समय के लिए गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति हुई। अब आयोग के अध्यक्ष का पद खाली है, केवल उपाध्यक्ष के भरोसे चल रहा है। राजधानी दून के कई इलाकों में आवारा पशुओं की समस्याएं आम बात हैं। इसको लेकर कई बार गौ सेवा सदनों व गौशालाओं की बात होती रही है। लेकिन, बात आगे नहीं बढ़ पाई।

Posted By: Inextlive