प्रदेश में एक हजार से ज्यादा गांव बंजर हुए
-2011 की जनगणना के मुताबिक हैं 1059 गांव गैर आबाद
-जानकारों के मुताबिक लंबी हो सकती है गांवों की सूचि DEHRADUN : इससे बेरोजगारी की मार कहेंगे कि क्ब् सालों के बाद भी पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं का अभाव कहें या फिर विकास की करारी मार। जो भी हो, लेकिन उत्तराखंड में क्0भ्9 गैर आबाद हैं। इन गांवों को बंजर गांव कह दिया जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जानकारों को फिक्र इस बात की है कि आने वाले समय में यह सूची लंबी न हो जाए। ऐसी उम्मीद नही थी9 नवंबर ख्000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंडवासियों को पूरा भरोसा था कि यूपी के दौरान लखनऊ उनकी राजधानी की दूरी कम हो जाएगी। बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा, रोजगार का सृजन होगा, गांवों में विकास कार्य होंगे, एजुकेशन, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का प्रतिपूर्ति हो सकेगी। लेकिन ऐसा लगता है कि नवगठित उत्तराखंडवासियों को ये सुविधाएं नहीं मिल पाई। यह हम नहीं, बल्कि आंकड़े गवाही देने के लिए काफी हैं। अर्थ एवं सांख्यिकी डिपार्टमेंट के आंकड़े तस्दीक देते हैं कि प्रदेश में ख्0क्क् की जनगणना के मुताबिक करीब क्0भ्9 गांव गैर आबाद हो गए हैं। यहां न कोई रहता है और न यहां खेती-बाड़ी हो पाती है। खेत-खलिहान बंजर हो गए हैं। इन गांवों से लोगों का पलायन हो चुका है। इसलिए इनको गैर आबाद की कैटेगरीज में रखा गया है।
सबसे ज्यादा संख्या पौड़ी गढ़वाल में इसमें सबसे अव्वल नंबर पर पौड़ी गढ़वाल जिला है। जहां फ्फ्ख् गांव गैर आबाद बताए गए हैं। इसके बाद अल्मोड़ा के क्0भ्, पिथौरागढ़ के क्0फ् व टिहरी के 88 गांव शामिल हैं। ख्00क् की जनगणना में गैर आबाद गांवों की संख्या इससे क्0म्भ् थी। लेकिन क्0 साल बाद कुछ कम हो गई है। इस कमी के पीछे नगर निगम, पालिका, पंचायत में गांवों को शामिल होना भी एक कारण बताया गया है। दरअसल, राज्य निर्माण के बाद कई जिलों में नगर पालिका, परिषद, पंचायत व नगर निगम बनाए गए हैं। जहां कुछ गांवों को शामिल किया गया है। यही वजह है कि गैर आबाद गांवों की संख्या में क्0 सालों में बढ़ने के बजाय कम हुई है। ::एक्सपर्ट्स की राय में गैर आबाद के कारण -बेरोजगारी। -डेवलेपमेंट। -मूलभूत सुविधाओं का अभाव। -आपदा का डर। पलायन व बेरोजगारी कारणजानकारों की मानें प्रदेश में गांवों के गैर आबाद होने के प्रमुख कारण बेरोजगारी, विकास, मूलभूत सुविधाओं और लगातार हो रही आपदाओं की घटनाएं प्रमुख हैं। पहाड़ों में स्कूल हैं, लेकिन बेहतर एजुकेशन नहीं है। युवा हैं, लेकिन उनके पास रोजगार का अभाव है। पहाड़ में जवानी, पानी है, लेकिन उसके यूज नहीं है। जिसके कारण लोग मैदानी इलाकों खासकर देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, श्रीनगर, हल्द्वानी, यूएसनगर, काशीपुर, रूद्रपुर जैसे इलाकों में पलायन को मजूबर हैं। नतीजतन, पहाड़ के गांव गैर आबाद हो रहे हैं।
गैर आबाद गांवों की संख्या जिले------------जनगणना ख्0क्क् उत्तरकाशी-------क्फ् चमोली-----7म् टिहरी------88 देहरादून-----क्8 पौड़ी------फ्फ्ख् रुद्रप्रयाग----फ्भ् पिथौरागढ़----क्0फ् अल्मोड़ा----क्0भ् नैनीताल----भ्ख् बागेश्वर-----7फ् चंपावत-----भ्भ् हरिद्वार------9ब् उधमसिंहनगर--क्भ् ------------------------- कुल गैर आबाद गांवों की संख्या--क्0भ्9 ------------------------- (नोट:-ये आंकड़े अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय से प्राप्त हैं.)