DEHRADUN : दून यूनिवर्सिटी उत्तराखंड के तेजी से बदल रहे क्लाइमेट और ग्लेशियर मेल्टिंग की प्रॉब्लम पर रिसर्च करेगी. इसके ऊपर एक डाटा भी तैयार किया जाएगा. क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च करने के लिए दून यूनिवर्सिटी के साथ तीन अलग यूनिवर्सिटी भी शामिल होंगी. जेएनयू के साथ ज्वॉइंट रिसर्च में दून यूनिवर्सिटी के अलावा शारदा यूनिवर्सिटी और कश्मीर यूनिवर्सिटी भी शामिल है. यह यूनिवर्सिटीज डिफरेंट टॉपिक्स पर बेसिक डाटा कलेक्ट करेंगी. सब्जेक्ट केसिनेरियो सोर्सेज और इफेक्ट का पता लगाएगी. मार्च तक डीएसटी की हेल्प से फुलफ्लैश काम स्टार्ट कर दिया जाएगा.


नॉर्दर्न रीजन की है जिम्मेदारीयूजीसी के सजेशन के बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी ने पहल करते हुए इंटर डिसिप्लीनरी रिसर्च की फील्ड में कदम बढ़ाया है, जिसमें देश की कई यूनिवर्सिटी इस दिशा में जेएनयू के साथ मिलकर काम करेंगी। यह यूनिवर्सिटीज डिजास्टर मैनेजमेंट, नेचुरल रिसोर्सेज और अर्बन प्लानिंग के क्षेत्र में काम करेंगी। नॉर्दर्न रीजन के लिए दून यूनिवर्सिटी, जेएनयू, शारदा और कश्मीर यूनिवर्सिटी मिलकर रिसर्च करेंगी। यूके को कवर करेगी दून यूनिवर्सिटी


हिमालयन बेल्ट में दून यूनिवर्सिटी और कश्मीर यूनिवर्सिटी रिसर्च के लिए डाटा कलेक्ट करेंगी। यह ग्लेशियर मेल्टिंग के कारणों का पता लगाने के अलावा रेनफॉल, फ्लड जैसे नेचुरल डिजास्टर पर लॉन्ग टर्म डाटा कलेक्ट करेंगे। डाटा के आधार पर सोर्सेज का पता लगाने का काम किया जाएगा। दून यूनिवर्सिटी के रिसर्च हेड डा। विजय श्रीधर के मुताबिक दून यूनिवर्सिटी पूरे उत्तराखंड को कवर करेगी, जहां वह ब्लैक कार्बन पर रिसर्च कर ग्लेश्यिर मेल्टिंग में इसके भूमिका का पता लगाने का काम करेगी। इसके बाद कलेक्टेड डाटा के आधार पर सोर्सेज के जरिए रिमूवल फैक्टर्स पर काम शुरू होगा। स्टार्ट हुआ डाटा कलेक्शन

दून यूनिवर्सिटी ने देहरादून और मसूरी से डाटा कलेक्शन काम स्टार्ट कर दिया है। इसके लिए यूजीसी की ग्रांट द्वारा डाटा कलेक्शन में खासतौर पर यूज होने वाली मशीन भी लाई जा चुकी है। यह मशीन एयर में ब्लैक कार्बन पार्टिकल्स का पता लगाने का काम करेगी। इसके अलावा कई दूसरी मशीनें भी यूज के लिए लाई जा रही हैं। गढ़वाल और कुमाऊं रीजन में भी यूनिवर्सिटी काम शुरू करेंगी। डाटा जेनरेशन पूरा होने के बाद ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल्स में भी यह रिसर्च डाटा यूज किया जाएगा। क्यों पड़ी रिसर्च की जरूरतएशियन कंट्रीज की बात करें तो इंडिया और चाइना दोनों ही अपनी कंट्रीज के क्लाइमेट चेंजिंग के लिए इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर एक्चुअल डाटा मुहैया कराने में फेल हो जाते हैं.  एक्स्पट्र्स की माने तो इंडिया में हो रहे क्लाइमेट चेंज पर कोई लॉन्ग टर्म डाटा उपलब्ध नहीं है। क्लाइमेट चेंज कंवेशन जो कि यूएनओ का एक पार्ट है वहां देश लॉन्ग टर्म डाटा न होने के कारण अपनी रियल सिचुएशंस को क्लियर ही नहीं कर पाता है। एक्स्पट्र्स का कहना है कि अभी तक इंटनेशनल प्लेटफॉर्म पर अपने क्लामेट चेंज में हो रहे बदलावों के कारणों को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। डीएसटी ने बनाया ग्रुप

डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने लॉन्ग टर्म डाटा की अहमियत समझते हुए क्लाइमेट और एंवॉयरमेंट पर रिसर्च कर रही यूनिवर्सिटीज को जोड़कर एक ग्रुप बनाने का प्रयास किया है, जिसमें जेएनयू इन्हें लीड करेगा। दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज अपने लेवल पर इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, लेकिन इंडिया में इस तरह का प्रयोग पहली बार हुआ है। इस प्रोजेक्ट के लिए डीएसटी को प्रपोजल जा चुका है। ग्रांट मिलते ही चारों यूनिवर्सिटी फुल फ्लैश काम स्टार्ट कर देंगी। इन एरियाज में होगी रिसर्चजवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी - दिल्ली एरियाशारदा यूनिवर्सिटी - नोएडा एरिया कश्मीर यूनिवर्सिटी - जम्मू कश्मीर एरियादून यूनिवर्सिटी - उत्तराखंड एरियायूएनओ की इंटरनेशनल सेमिनार्स में अक्सर हम क्लाइमेट चेंज पर लॉन्ग टर्म डाटा न होने के कारण डिफेंसिव हो जाते हैं। इस पहल से हम इस कमी को पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं। रिसर्च में ग्लेशियर मेल्टिंग और हिमालयन बेल्ट में तेजी से आ रहे क्लाइमेट चेंज के बारे में पता लगाया जाएगा। - डा। विजय श्रीधर, साइंटिस्ट एंड रिसर्च हेड, दून यूनिवर्सिटीयह पहल डिजास्टर मैनेजमेंट, नेचुरल रिसोर्स और अर्बन प्लॉनिंग में मदद मिलने के लिए एक प्रयास है। चार यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर्स ने इस रिसर्च को लेकर साइन भी कर दिए हैं। हम भी इनमें से एक हैं। डीएसटी से ग्रांट के बाद काम शुरू होगा। - प्रो। वीके जैन, वाइस चांसलर, दून यूनिवर्सिटी

Posted By: Inextlive