- उत्तराखंड में कई शिक्षकों ने पेश की प्रतिभा की मिसाल

- कई शिक्षकों ने शारीरिक कमजोरी को दरकिनार कर बनाई खास पहचान

- कुछ अच्छे शिक्षक के साथ अच्छे इंसान भी बनकर बच्चों के लिए बने आदर्श

देहरादून,

समाज में शिक्षक की भूमिका सबसे अहम होती है, वह न केवल बच्चों का भविष्य निर्माता होता है बल्कि समाज का पथ प्रदर्शन भी करता है। ऐसा ही उदाहरण पेश किया है कुछ शिक्षकों ने, पहले उन्होंने चुनौतियों से जूझते हुए खुद को तपाया और फिर शिक्षक क्या है ये समाज को बताया। पेश है ऐसे ही कुछ शिक्षकों की कहानी।

म्यूजिक के सहारे ंिजंदगी जीना सिखा रही डॉ। संगीता

देहरादून के जीजीआईसी राजपुर रोड में म्यूजिक टीचर डॉ। संगीता शर्मा ऐसे लोगों के लिए मिसाल हैं, जो शारीरिक कमजोरी की वजह से समाज के साथ कदम मिलाने से डरते हैं। लेकिन, संगीता ने बचपन से ही पोलियोग्रस्त होने के बाद भी बिना किसी सहारे के म्यूजिक से पोस्ट ग्रेजुएशन की, इसके बाद पीएचडी भी की। टीचर के रूप में सिलेक्शन होने पर उन्हें चमोली के रिमोट एरिया में पोस्टिंग मिली, हालांकि शारीरिक परेशानी के चलते उन्हें जीजीआईसी देहरादून में ट्रांसफर कर दिया गया। खास बात ये है कि डॉ। संगीता ने जॉब पाने के लिए दिव्यांग सर्टिफिकेट तक नहीं बनवाया। डॉ। संगीता उत्तराखंड में शुरुआत से ही स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और सचिवालय में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में खास प्रस्तुति देती आ रही हैं। इतना ही नहीं 2005 में हरिद्वार में आयोजित इंटरनेशनल इवेंट स्काउट जंबूरी में गढ़वाली देशभक्ति गीत परफॉर्म कर चुकी हैं। जिसके लिए उनके पूरे उत्तराखंड में अकेले चयन हुआ था। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ। अब्दुल कलाम के सामने परफॉर्मेस दी थी। आकाशवाणी के जरिए भी वे अपनी आवाज लोगों तक पहुंचा चुकी है।

शशिबाला ने शारीरिक कमजोरी को बनाया हथियार

दून की 52 वर्षीय शशिबाला ओम में बचपन से ही शारीरिक कमजोरी थी। उनका एक पांव छोटा है, जिससे चलने में दिक्कत होती है। बावजूद इसके शशिबाला ने 14 वर्षाें तक चमोली के नारायणबगड़ स्थित एक स्कूल में बतौर एलटी शिक्षक के तौर पर कार्य किया। ढाई किमी की रोजाना स्कूल की चढ़ाई और आम जिंदगी जीने में उन्हें कठिनाई तो होती थी, लेकिन वे कभी हारी नहीं। वर्तमान में शशिबाला देहरादून के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज बह्मपुरी में राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता हैं। वह कहती है कि शारीरिक कमजोरी को कमजोरी नहीं समझना चाहिए, इसे अपना हथियार बनाकर जिंदगी जिएं। हालांकि वे मानती हैं कि इसके लिए परिवार का साथ जरूर चाहिए।

शिक्षक ही नहीं गांव का बेटा भी बना आशीष

उत्तरकाशी की दुर्गम केलसु घाटी स्थित इंटर कॉलेज भंकोली में तैनात रहे 27 वर्षीय टीचर आशीष डंगवाल की स्कूल से विदाई पर पूरा गांव रो पड़ा था। इसकी वीडियो और तस्वारें सोशल मीडिया पर जबदस्त वायरल हुई थी। भंकोली में एलटी टीचर के रूप में तैनात आशीष का लेक्चरर में सिलेक्शन हुआ था, गांव वालों ने उसे शानदार विदाई दी। लेकिन, सबकी आंखों में आंसू उतर आए। सिर्फ 3 वर्ष की तैनाती में ही आशीष ने इलाके के हर शख्स का दिल जीत लिया था। वे हर घर का बेटा बन गया था। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खुद आशीष को अपने आवास पर बुलाकर सम्मानित किया था।

पर्यावरण संरक्षण में जी-जान से जुटे हैं रमेश

रमेश प्रसाद बडोनी सहसपुर ब्लॉक के अति दुर्गम ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज मिसरास पट्टी में तैनात हैं। स्कूल तक पहुंचने के लिए साढ़े 4 किलोमीटर पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। आरपी बडोनी को इस वर्ष राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने जा रहा है। इस वर्ष उत्तराखंड से वे एकमात्र टीचर हैं, जिन्हें ये अवार्ड मिलेगा। वे इन्फॉर्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी में भी नेशनल अवॉर्डी हैं। बडोनी ने स्कूल के पास बांज(ओक) का इको पार्क डेवलेप किया है, जिससे वे वाटर रिचार्ज करने के प्लान पर काम कर रहे हैं। बडोनी ने 'से नो टू हंगर' कैंपेन भी शुरू किया है, जिसके जरिए वे 35 फैमिलीज के बच्चों हेल्प कर रहे हैं।

प्रिंसिपल दिवाकर की विदाई पर फूट-फुटकर रोए बच्चे

ऋषिकेश के सबसे पुराने स्कूल श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल दिवाकर भानु प्रताप सिंह रावत की विदाई समारोह भी यादगार बन गई। प्रिंसिपल के रिटायर होने पर स्कूल से विदाई के दौरान बच्चे उनसे चिपट फूट-फूट कर रोते दिखाई दिए। इतना ही नहीं बच्चों के रोने पर प्रिंिसपल भी रो पड़े। 38 वर्ष पूर्व वे भरत मंदिर इंटर कॉलेज में व्यायाम शिक्षक के रूप में ज्वाइन किया था। इसके बाद वे अपनी मेहनत, व्यवहार और लगन से स्कूल प्रिंसिपल बने। 2018 में उनके कुशल संचालन में स्कूल का डायमंड जुबली धूमधाम से सेलिब्रेट की गई।

सुनील ने जान पर खेल बचाईं दो छात्राओं की जान

पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल ब्लॉक स्थित प्राइमरी स्कूल मुंडियान में बतौर सहायक अध्यापक तैनात सुनील तोमर ने हाल ही में अपनी जान पर खेलकर बरसाती नाले में बह रही दो छात्राओं की जान बचाकर मिसाल पेश की। बीते 21 अगस्त को बारिश के कारण इलाके में मंदाल नदी पर बना पुल क्षतिग्रस्त हो गया, ऐसे में स्कूल जाने के लिए नदी पार करने के दौरान दो छात्राएं कामिनी और अमिषा बहने लगीं। सुनील तोमर तुरंत मौके पर पहुंचे और नदी में छलांग लगाकर दोनों को बचा लिया।

Posted By: Inextlive