खत्म हो चुकी है दून की सड़कों की क्षमता, नई प्लानिंग की जरूरत
दून के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में व्यापक सुधार की जरूरत
-मेट्रो रेल और मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट जैसे उपाय जरूरी
पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर नजर
-करीब 170 सिटी बस
-30 इलेक्ट्रिक बस
-500 टाटा मैजिक
-800 विक्रम
-2500 ऑटो
-4500 ई-रिक्शा
मेट्रो नियो ही अहम समाधान
उत्तराखंड मेट्रो के डीजीएम (सिविल) अरुण कुमार भट्ट ने बताया कि 2019 में दून के लिए कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी)तैयार किया था, जो शहर की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में सुधार का रोडमैप है। दून की ज्यादातर प्रमुख सड़कें अपनी शत-प्रतिशत क्षमता का दोहन कर चुकी हैं। इसलिए हमें नए विकल्प पर काम करना ही होगा। दून में नियो मेट्रो इसका एक अहम समाधान होगा। यह प्रोजेक्ट अभी केंद्र सरकार के सामने विचाराधीन है। सेकेंड फेज में नियो मेट्रो फीडर के तौर पर पॉड टैक्सी का भी प्लान तैयार किया जा रहा है।
मेट्रो जैसी बड़ी रेल परियोजनाओं के अनुभव साझा करते हुए उत्तराखंड मेट्रो के पीआरओ गोपाल शर्मा ने बताया कि ये परियोजनाएं राजनीतिक इच्छाशक्ति पर भी निर्भर करती हैं। इसलिए जनप्रतिनिधियों की भूमिका अहम हो जाती है। दून में ज्यादातर सड़कें 12 मीटर तक ही चौड़ी हैं इसलिए हमें स्काई वॉक या अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करना होगा। शहर की 12 लाख की आबादी के अलावा यहां आने वाले पयर्टकों का भी आकलन करना होगा। मेट्रो महिला सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम है। ट्रांसपोर्ट डेवलप करने पर जोर
पर्यावरणविद डॉ। सौम्या प्रसाद ने दून में आम जनता के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी और महंगे किराए पर प्रकाश डाला। ऑटो, ई-रिक्शा की मनमानी पर अंकुश लगे, बस शेल्टर व भरोसेमंद पब्लिक ट्रांसपोर्ट विकसित करने पर जोर दिया। खासतौर पर सरकारी अस्पतालों के आसपास बस, ऑटो स्टॉप होने चाहिए।
बेहतर ट्रांसपोर्ट की मांग
दून रेजीडेंट्स वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और नगर निगम पार्षद देवेंद्र पाल सिंह मोंटी ने कहा कि बेहतर ट्रांसपोर्ट समय की मांग है। लेकिन, इसमें राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव व विभागों के बीच तालमेल का अभाव है। अधिकारियों की जिम्मेदारी तय नहीं है। वक्ताओं ने कहा कि ट्रांसपोर्ट के नाम पर शासन का सारा फोकस रोडवेज पर है। जबकि, शहरी ट्रांसपोर्ट की सुध नहीं है।
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