दून शहर में यदि थोड़ी-बहुत साफ-सफाई नजर आती है तो वह उन वेस्ट पिकर्स के कारण है जो मुंह अंधेरे सूखा कचरा बीनने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं। एक अनुमान के अनुसार दून में तीन हजार से ज्यादा लोग सुबह-सुबह सूखा कचरा उठाते हैं। गरीब बस्तियों में तंगहाली में गुजारा करने वाले इन वेस्ट पिकर्स के सफाई में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद इनकी तरफ ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी जाती।

देहरादून (ब्यूरो)।देहरादून सिटी में हर रोज करीब 350 मीट्रिक टन कचरा जेनरेट होता है। एक अनुमान के अनुसार इस कचरे का 20 परसेंट हिस्सा वेस्ट पिकर्स उठा लेते हैं। दून के सभी प्रमुख व्यावसायिक स्थलों पर वेस्ट पिकर्स सुबह 5 बजे ही पहुंच जाते हैं और सुबह करीब 9 बजे तक, जब तक सड़कों पर ट्रैफिक कम होता है, वे कचरा बीनते हैं। अनुमान है कि वे कुल 70 मीट्रिक टन कचरा रोज सुबह उठा लेते हैं। इस कचरे को बेचकर ये लोग अपने दिनभर का खाने का इंतजाम करते हैं। इसमें महिलाएं भी शामिल हैं, बच्चे भी और पुरुष भी।

नगर निगम मौन
सफाई में इस बड़े योगदान के बावजूद भी नगर निगम वेस्ट पिकर्स की तरफ से नजरें फेरे हुए हैं। कुछ वर्ष पहले वेस्ट पिकर्स को एक बार ग्लब्स और रिफ्लेक्ट वाली जैकेट दी गई थी, लेकिन कोविड के पहले लॉकडाउन के बाद से उन्हें किसी तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गई है। कई तरह की बीमारियों से जूझते ये हजारों वेस्ट पिकर्स शहर को साफ-सुथरा बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं।

स्किन और सांस की बीमारी के शिकार
वेस्ट पिकर्स पर काम करने वाली संस्था वेस्ट वॉरियर्स ने कुछ समय पहले वेस्ट पिकर्स के लिए एक मेडिकल कैंप का आयोजन किया था। इस कैंप में आई 90 महिलाओं में से 70 किसी न किसी स्किन डिजीज से पीडि़त थी। बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं और अन्य वेस्ट पिकर्स भी थे, जिन्हें सांस संबंधी कोई तकलीफ थी।
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इसमें संदेह नहीं कि दून से साफ करने के वेस्ट पिकर्स की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। हमारी संस्था समय-समय पर इन लोगों के लिए मेडिकल कैंप आदि आयोजित करती हैं। उन्हें कुछ मदद की जरूरत है।
नवीन सडाना, वेस्ट वॉरियर्स

एक तरफ तो हमारी सरकार कहती है कि सब लोग सफाई में सहयोग दो। दूसरी तरफ जो लोग मजबूरी में ही सही, सफाई में हाथ बंटा रहे हैं, उनकी अनदेखी की जा रही है। उन्हें भी न्यूनतम सुविधाएं देना सरकार का दायित्व है।
अखिलेश डिमरी

हम गांव में रहते हैं, लेकिन अक्सर देहरादून आना होता है। यहां गंदगी की हालत देखकर शर्म आती है कि यह हमारे राज्य की राजधानी है। एक बात जो मैंने नोट की हर बार जब यहां आता हूं तो पहले से ज्यादा गंदगी दिखती है।
कपूर रावत

देहरादून की सफाई जमीन पर नहीं नारों में होती है। इन्हें लगाता है कि स्वच्छ दून सुन्दर दून नारा जगह-जगह चस्पा कर देने भर से शहर साफ हो जाएगा। आज तक सॉलिड वेस्ट मैनेज करने तक की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई।
हिमांशु चौहान

Posted By: Inextlive