देहरादून

प्रदेश में कोरोना की दस्तक होते ही कई लोगों की मानो जिंदगी ही पलट गई। लॉकडाउन में काम धंधे बिल्कुल ही चौपट हो गए। मगर जिंदगी न तो थमती है न ही रुकती है। इसके साथ ही अगर इरादे चट्टान की तरह मजबूत हों तो सफलता मिलती ही है। इसी कहावत को चरितार्थ किया अवधेश सेमवाल ने। लॉकडाउन और उसके बाद के संघर्षो को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के साथ साझा किया।

रिजॉर्ट से थी आमदनी

मेरा नाम अवधेश सेमवाल है। मैंने वर्ष 2013 में ऋषिकेश में तपोवन में योगा क्लासेज शुरू की। काम कुछ आगे बढ़ा तो मैंने नीलकंठ रोड पर फूलचट्टी में रिजॉर्ट खोल दिया। सुबह से शाम पर मेहनत के बाद ठीक-ठाक काम चलने लगा।

लॉकडाउन में सब ठप

सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार योगा क्लास का काम 15 मार्च को ही बंद करना पड़ा। 24 मार्च को लॉकडाउन हुआ तो रिजॉर्ट में बंद हो गया। मेरे पास 8 लोग काम करते थे। लॉकडाउन और रिजॉर्ट खुलने की उम्मीद में जून आ गया, पर रिजॉर्ट खोलने की इजाजत नहीं मिली। जून तक मैं अपने साथ काम करने वाले सभी सभी 8 लोगों के परिवार के गुजारे लायक पैसा देता रहा। जून आते-आते पैसा खत्म हो गया। मैंने सभी को पास बनाकर खुद उनके गांव छोड़ा इनमें एक को पटियाला और बाकियों को गढ़वाल में अलग-अलग छोड़ा।

ऑनलाइन योगा

अक्टूबर तक असमंजस की स्थिति रही। अब रिजॉर्ट को फिर से शुरू करना भी नये सिरे से खोलने जैसा था। अक्टूबर में मैंने जूम से योगा की ऑनलाइन क्लास शुरू की। इसे भाग्य ही कहूंगा कि मुझे कनाडा के 17 ऐसे लोग मिल गये जो ऑनलाइन योगा की ट्रेनिंग लेकर पेमेंट करने का राजी हो गये।

हो रही चार लाख रुपये की इनकम

कनाडा बेस्ड 17 लोग मुझे पिछले दो महीने से 450 केनेडियन डॉलर पेमेंट कर रहे हैं। मुझे फीस आदि काट कर पर केनेडियन डॉलर मिलता है। इस तरह से मुझे फिलहाल हर महीने 3 लाख 90 हजार के करीब इनकम हो रही है।

युवाओं से मैं कहना चाहता हूं कि किस्मत पता नहीं कहां हमारा इंतजार कर रही है। इसलिए चुपचाप बैठे रहने के बजाय हमें कोई न कोई काम शुरू कर देना चाहिए।

अवधेश सेमवाल

Posted By: Inextlive