भारत माता ने एक नहीं कई वीर सपूतों को जन्‍म दिया। जिन्‍होंने अपनी जान पर खेल कर देश की आन बान और शान को बड़ाया। ऐसे ही एक वीर सपूत था जिसे अब्‍दुल हमीद के नाम से जाना जाता है। अब्‍दुल हमीद ने अकेले ही दुश्‍मन के कई पैटन टैंकों को धूल चटा दी। अब्‍दुल हमीद का नाम भारतीय इतिहास के पन्‍नों पर सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है। आजाद भारत में सांस लेने वाले करोड़ो लोग अब्‍दुल हमीद के कारनामों से परिचित नहीं होंगे। कैसे अब्‍दुल ने अकेले ही पाकिस्‍तानी सैनिकों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया। अब्‍दुल हमीद को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया।


अपशगुन होने के बाद भी अब्दुल हमीद ने लड़ाई में लिया हिस्सा
1965 का युद्ध शुरू होने के आसार बन रहे थे। कंपनी क्वार्टर मास्टर अब्दुल हमीद गाजीपुर जिले में अपने गाँव धामूपुर आए हुए थे। अचानक उन्हें वापस ड्यूटी पर आने का आदेश मिला। पत्नी रसूलन बीबी ने उन्हें कुछ दिन और रोकने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने। अब्दुल हमीद के बेटे जुनैद आलम बताते हैं कि जब वो अपने बिस्तरबंद को बांधने की कोशिश कर रहे थे तभी उनकी रस्सी टूट गई। सारा सामान ज़मीन पर फैल गया। उसमें रसूलन बीबी का लाया हुआ मफलर भी था जो वो पति के लिए मेले से लाईं थीं। रसूलन ने कहा कि ये अपशगुन है। कम से कम उस दिन यात्रा न करें लेकिन हमीद ने उनकी एक नहीं सुनी। इतना ही नहीं जब वो स्टेशन जा रहे थे तो उनकी साइकिल की चेन टूट गई और उनके साथ जा रहे उनके दोस्त ने भी उन्हें नहीं जाने की सलाह दी। हमीद ने उनकी एक न सुनी। जब वो स्टेशन पहुंचे उनकी ट्रेन भी छूट गई थी। उन्होंने अपने साथ गए सभी लोगों को वापस घर भेजा और देर रात जाने वाली ट्रेन से पंजाब के लिए रवाना हुए। अपने परिवार और दोस्तों के बीच उनकी आखिरी मुलाकात थी। अब्दुल हमीद ने अकेले पाकिस्तानी टैंकों को चटाई धूल8 सितंबर 1965 सुबह 9 बजे चीमा गाँव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों के बीच अब्दुल हमीद जीप में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे हुए थे। अचानक उन्हें दूर आते टैंकों की आवाज सुनाई दी। कुछ देर में उन्हें वो टैंक दिखाई देने लगे। उन्होंने टैकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार किया। गन्ने की फसल का कवर लेकर उन्होंने टैंकों के आरसीएल की रेंज में आते ही फायर कर दिया। पैटन टैंक धू-धू कर जलने लगा और उसमें सवार पाकिस्तानी सैनिक उसे छोड़कर पीछे की ओर भागे। अब्दुल हमीद के पौत्र जमील आलम बताते हैं मैं अपनी दादी के साथ सीमा पर उस जगह गया जहाँ मेरे दादा की मजार है। उनकी रेजिमेंट वहाँ हर साल उनके शहादत दिवस पर समारोह का आयोजन करती है। वहाँ उनकी एक ऐसे सैनिक से मुलाक़ात हुई थी जिसका लड़ाई में हाथ कट गया था। उसने उन्हें बताया था कि अब्दुल हमीद ने उस दिन एक के बाद एक चार पैटन टैंक धराशाई किए थे।पाकिस्तानियों के दुगने टैंकों का भारत ने किया था सफाया


1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में पाकिस्तान के कई पैटन टैंक नष्ट करने के लिए परमवीर चक्र मिला था। अब्दुल हमीद के परमवीर चक्र के आधिकारिक साइटेशन में बताया गया था कि उन्होंने चार पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट किया था। हरबख्श सिंह ने अपनी किताब वॉर डिस्पेचेज में लिखा हैं कि हमीद ने चार टैंकों को अपना निशाना बनाया था लेकिन मेजर जनरल इयान कारडोजो ने अपनी किताब में लिखा है कि हमीद को परमवीर चक्र देने की सिफारशि भेजे जाने के बाद अगले दिन उन्होंने तीन और पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए। जब वो एक और टैंक को अपना निशाना बना रहे थे तभी एक पाकिस्तानी टैंक की नजर में आ गए। दोनों ने एक-दूसरे पर एक साथ फायर किया। पाकिस्तानी टैंक नष्ट हुआ पर अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए। इस लड़ाई में पाकिस्तान की ओर से 300 पैटन और चेफीज टैंकों ने भाग लिया था जबकि भारत की और से 140 सेंचूरियन और शर्मन टैंक मैदान में थे।

Posted By: Prabha Punj Mishra