जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को जन्म दिया तब उन्होंने आंवले के वृक्ष की भी उत्पत्ति की। भगवान विष्णु की कृपा से आंवले को आदि वृक्ष की मान्यता प्राप्त है।

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी का अर्थ होता है आंवला। इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को जन्म दिया तब उन्होंने आंवले के वृक्ष की भी उत्पत्ति की। भगवान विष्णु की कृपा से आंवले को आदि वृक्ष की मान्यता प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि आंवले के वृक्ष के हर हिस्से में ईश्वर का वास होता है।

इस व्रत को करने से व्रती के सभी पाप और कष्ट खत्म हो जाते हैं। इस व्रत का फल 1000 गायों के दान के मिले पुण्यों के बराबर होता है।

व्रत एवं पूजा विधि

फाल्गुन मास की दशमी को रात्रि में भगवान विष्णु का स्मरण करके सोएं। फिर अगले दिन एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान श्री हरि विष्णु के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें, मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो, इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।

इसके बाद भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करें और फिर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। इसके लिए आप सबसे पहले आंवले के वृक्ष के पास की जगह को साफ करें। उसके बाद पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापना करें। फिर कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें और दीप प्रज्जवलित करें।

फिर आप कलश पर श्रीखंड और चंदन का लेप लगाएं और उसके चारो ओर वस्त्र लपेट दें। इसके बाद आप कलश के ऊपर भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से उनकी पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।

अगले दिन सुबह द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद दक्षिणा दें और परशुराम जी की मूर्ति और कलश उन्हें दे दें। इसके बाद आप भी भोजन करके अपना व्रत पूरा करें। 

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Posted By: Kartikeya Tiwari