Vrishabha Sankranti 2020: भगवान सूर्य देव 14 मई को मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं इसे हम वृषभ संक्रांति के नाम से जानते हैं। वह इस राशि में 15 जून तक रहेंगे। आइए इसके बारे में अधिक जानते हैं।

कानपुर। Vrishabha Sankranti 2020: सूर्य देव साल के बारह महीनों में एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है। वहीं, जब सूर्य देव मेष राशि से निकल कर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं। तब सूर्य के इस राशि परिवर्तन को वृषभ संक्रांति कहा जाता है। इस बार सूर्य का वृषभ राशि में प्रवेश 14 मई को हो रहा है इसलिए वृषभ संक्रांति 14 मई को पड़ रही है। वृषभ राशि में सूर्य 15 जून तक रहेंगे। इसके बाद वह मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। इस बदलाव से ग्रह-नक्षत्र, राशि और मौसम में आंशिक और व्यापक बदलाव देखने को मिलते हैं।

वृषभ संक्रांति का क्या है महत्व

इस संक्रांति को भी मकर संक्रांति की ही तरह महत्वपूर्ण माना गया है। अतः वृषभ संक्रांति के दिन पूजा, जप, तप और दान जरूर करना चाहिए। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, संक्रांति के दिन नदियों और सरोवरों में नहाने से तीर्थस्थलों के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन पानी में तिल डालकर नहाने से बीमारियां दूर होती हैं और लंबी उम्र मिलती है। हालांकि, लॉकडाउन के चलते लोग इस साल नदियों और सरोवरों में स्नान-ध्यान नहीं कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में लोग नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान कर सकते हैं। इस महीने में सूर्य देव वृषभ राशि के साथ-साथ नौ दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में आते हैं, जिसके चलते नौ दिनों तक प्रचंड गर्मी पड़ती है। ऐसा कहा जाता है कि ज्येष्ठ माह की दोपहर में साल की सबसे अधिक गर्मी पड़ती है। इन नौ दिनों के सूर्य परिक्रमा को 'नवतपा' कहा जाता है. ऐसे में इस महीने में जल का विशेष महत्व है। इस महीने में प्यासे को पानी पिलाने अथवा घर के बाहर प्याऊ लगाने से व्यक्ति को यज्ञ कराने के समतुल्य पुण्यफल मिलता है। इस दिन गौ दान को बहुत ही खास माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर गौ दान किया जाए तो जीवन में कोई अभाव नहीं रहता है। इस दिन 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए।

वृषभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त

पुण्यकाल: सुबह 10.19 बजे से शाम 5.33 बजे तक पुण्यकाल की कुल अवधि: 07 घण्टे 14 मिनट
महा पुण्यकाल: 3.17 बजे से शाम 5.33 बजे तक महा पुण्यकाल की कुल अवधि: 02 घण्टे 16 मिनट

वृषभ संक्रांति का व्रत और पूजा विधि

वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य उदय से पहले जागकर नित्य क्रियाओं से निवृत होने के बाद किसी पवित्र नदी में स्नान करें या अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर भी स्नान कर सकते हैं। इसके बाद तांबे के पात्र में जल, सिंदूर, लाल फूल और तिल मिलाकर उगते सूर्य को जलार्पण करें। अब व्रत करने का संकल्प लें और इसके बाद सूर्य देव और भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप की पूजा करें। भगवान को प्रसाद के रूप में खीर का भोग लगाएं। इसके बाद याथानुसार दान करें। इस दिन गौ दान करना बहुत ही लाभकारी होता है। बिना दान के वृषभ संक्रांति की पूजा अधूरी होती है। गौ दान के अलावा इस दिन अगर किसी ब्राह्मण को पानी से भरा घड़ा दान किया जाए तो इससे विशेष लाभ मिलता है। भगवान शिव के वाहक नंदी भी एक बैल हैं जो भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त है इसलिए इस दिन पर भगवान शिव की अराधना करने से शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को रात्रि में जमीन पर सोना होता है। संक्रांति मुहूर्त के पहले आने वाली 16 घड़ियों को बहुत शुभ माना जाता है। इस समय में दान, मंत्रोच्चारण, पितृ तर्पण और शांति पूजा करवाना भी बहुत शुभ माना जाता है।

Posted By: Inextlive Desk