-शहर की कई निजी संस्थाओं व भवन स्वामियों ने किया है वर्षा जल संचयन का इंतजाम

-इंद्रपाल सिंह ने किया कमाल, हर साल बचाते हैं 20 हजार लीटर पानी

-डीएलडब्ल्यू कैंपस में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने पर, दो मीटर बढ़ा वाटर लेवल

वर्षा जल संचयन को लेकर भले ही सरकारी विभाग उदासीन हैं लेकिन निजी संस्थाओं के साथ ही शहर के लोगों ने जागरुकता दिखाई है। बनारस में ऐसे कई भवन हैं जहां जल संकट को महसूस करते हुए जिनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को स्थापित किया गया है। जिसका उन्हें भरपूर लाभ भी मिल रहा है। वहां का भू-जल स्तर बरकरार है। इतना ही नहीं डीएलडब्ल्यू व केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय के समीप भू-जल स्तर बढ़ गया है।

20 हजार लीटर जल हर साल

लक्सा के श्रीनगर कालोनी निवासी सरदार इंद्रपाल सिंह जो पेशे से कैटरर्स हैं, उन्होंने 15 साल पहले ही जल संचयन की ओर कदम बढ़ाया। मकान में बनाए गए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से वर्तमान में हर साल 20 हजार लीटर वर्षा जल संचित करते हैं। उन्होंने बताया कि किताबों का अध्ययन कर उन्होंने घर में ही रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम को विकसित किया। जमीन में 80 फीट की बोरिंग कराई और उसका कनेक्शन छत से निकल रही छह इंच की पाइप से जोड़ा। अब बारिश का पानी छत की बागवानी को सींचते हुए जमीन में समा जाता है। शुद्धता के लिए जमीन पर फिल्टर युक्त चैंबर बना है। बताते हैं कि वह मीठे पानी का एक बूंद भी बर्बाद नहीं होने देते हैं। घर की छत पर लगी टंकी से ओवरफ्लो होता है तो वह पानी भी बागवानी को सींचते हुए जमीन में समा जाता है।

डीएलडब्ल्यू ने किया इंतजाम

डीएलडब्ल्यू ने जल संचयन की दिशा में बेहद उम्दा प्रदर्शन किया है। कई एकड़ में फैले परिसर को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ दिया है। जिससे बारिश का एक बूंद पानी भी बर्बाद नहीं होता है। जल प्रेमी बताते हैं कि जल संचयन की ऐसी व्यवस्था कहीं नहीं है। परिसर के बरसाती पानी को एक स्थान पर एकत्रित करने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर पार्क के मध्य तालाब बनाया गया है। इसके अलावा परिसर में जितने भी मैदान हैं उसमें जगह-जगह बोरिंग की गई है। जिससे जल को बर्बाद होने से रोका जा सके।

तिब्बती संस्थान संजो रहा जल

सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती अध्ययन संस्थान में भी वृहद रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। संस्थान में 2010 में सबसे पहले प्रशासनिक भवन के साथ मुख्य भवन को रेन वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ा गया। इसके बाद 2013 में सभी संकायों को फिर 2014 में हॉस्टल व आवासीय भवनों को रेन वाटर सिस्टम से जोड़ा गया। वर्तमान में पूरा परिसर सिस्टम से जुड़ चुका है।

अग्रसेन कन्या में भी सिस्टम

परमानंदपुर स्थित अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज में भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर बेहतरीन काम हुआ है। यहां के एडमिनिस्ट्रेशन इमारत, होम साइंस फैकल्टी व आ‌र्ट्स फैकल्टी में वाटर हार्वेस्टिंग का प्लांट लगाया गया है। यही नहीं अभी भी परिसर के कई डिपार्टमेंट में सिस्टम लगाने का काम चल रहा है।

ये बचा रहे जल

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, यूपी कॉलेज आदि में भी जल संचयन की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा पांडेयपुर निवासी जल प्रहरी सजल श्रीवास्तव, लक्सा निवासी इंद्रपाल सिंह समेत दर्जनों लोगों ने भी घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित किया है।

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15 साल पहले ही जल संकट को भाप लिया था। घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का मकसद अपने बच्चों व समाज को जल संकट से निपटने की प्रेरणा देना है। अगर हर कोई इसे समझ ले तो भविष्य में कभी पानी की परेशानी नहीं होगी।

इंद्रपाल सिंह, जल व पशु प्रेमी

जल संकट को देखते हुए डीएलडब्ल्यू ने संचयन की दिशा में नजीर पेश की है। यही वजह है कि आज यहां का वाटर लेवल दो मीटर से ज्यादा ऊपर उठ चुका है। जल को सहेजने में सभी को योगदान देना चाहिए।

नितिन मेहरोत्रा, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, डीएलडब्ल्यू

यूनिवर्सिटी में जल संचयन की शुरुआत करना टास्क था। कुछ लोगों को तो यकीन भी नहीं था कि परिसर को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ा जा सकता है लेकिन चैलेंज को पूरा कर लिया गया।

देवराज सिंह, रजिस्ट्रार, केंद्रीय तिब्बती अध्ययन संस्थान

Posted By: Inextlive