-चेस्ट स्पेशलिस्ट की पढ़ाई एकमात्र बिहार में पीएमसीएच में, उसपर भी मंडराए संकट के बादल

PATNA : वर्ष 2025 तक टीबी की बीमारी को देश से खत्म करने का राष्ट्रीय संकल्प है। इसे लेकर 'टीबी हारेगा, देश जीतेगा' का नारा दिया जा रहा है। लेकिन प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित और एकमात्र सरकारी हॉस्पिटल पीएमसीएच में इसकी पढ़ाई बंद होने के कगार पर है। शिक्षकों की कमी, बार-बार स्वास्थ्य विभाग से मांग करने पर भी अनदेखी, अन्य किसी भी कॉलेज में चेस्ट की पढ़ाई नहीं होना, बीते 30 साल से शिक्षकों की नियमित भर्ती बंद होना आदि इस समस्या प्रमुख कारण हैं। यह सवाल इन दिनों इसलिए भी लाजिमी हो गया है क्योंकि ठंड के दिनों में चेस्ट और टीबी के पेशेंट भी तेजी से बढ़े हैं। यहां इलाज क्या होगा, अब तो चंद बचे डॉक्टर ही किसी प्रकार से विभाग चला रहे हैं।

21 लाख से ज्यादा की मौत

वर्ष 2018 में भारत में करीब 21.5 लाख लोगों की मौत टीबी से हो चुकी है। यह आंकड़ा प्रतिवर्ष 17 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस प्रकार, पूरी दुनिया में टीबी की बीमारी से पीडि़तों का एक-तिहाई हिस्सा भारत में निवास करता है। इसमें भी बिहार, उत्तर प्रदेश, वेस्ट बंगाल आदि जैसे गरीब राज्यों से बड़ी संख्या में पेशेंट शामिल है।

खुलने से पहले ही बंद हो गया आईसीयू

पीएमसीएच में टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के पूर्व हेड डॉ अशोक शंकर सिंह के अथक प्रयासों से यहां बिहार में पहला टीबी एंड चेस्ट की बीमारियों के लिए आईसीयू खोला गया। लेकिन डॉ अशोक शंकर सिंह के डिपार्टमेंट में रहते हुए यह चालू नहीं हो सका और यहां ताला लटका रहता है। वे सितंबर में रिटायर भी हो गये। उन्होंने बताया कि यह दस बेड का आईसीयू है, जिसमें टीबी एवं चेस्ट की बीमारियों से पीडि़तों का इलाज किया जाना था। इस प्रकार, यह खुलने से पहले ही बंद हो गया।

30 साल से रेग्यूलर वैकेंसी बंद

टीबी एवं चेस्ट की बीमारियों के इलाज के लिए सरकारी स्तर पर पीएमसीएच एकमात्र कॉलेज एवं हॉस्पिटल है। लेकिन आज यहां की पढ़ाई राम- भरोसे है। डॉ अशोक शंकर सिंह ने बताया कि बीते 30 साल से डॉक्टरों की रेग्युलर वैकेंसी बंद है। यहां चेस्ट एंड टीबी विभाग में वर्तमान में दो प्रोफेसर सहित 27 पद रिक्त पडे़ हैं। पूर्व हेड डॉ अशोक शंकर सिंह के रिटायर होने के बाद अब यहां दो प्रोफेसर का पद भी रिक्त हो गया है। असिस्टेंट, एसोसिएट प्रोफेसर मिलाकर अब मात्र छह डॉक्टर ही कार्यरत हैं। सीनियर डॉक्टरों की कमी के कारण ही यहां की आईसीयू को बंद करना पड़ा।

मुफ्त दवा लेकिन किस काम की ?

यह सवाल खुद विभाग के पूर्व हेड डॉ अशोक शंकर सिंह ने उठाया है। जानकारी हो कि केन्द्र राज्यों को टीबी के उन्मूलन के लिए आर्थिक व तकनीकी सहयोग करती है। लेकिन पटना में यह लक्ष्य पाने के लिए कोई सुगबुगाहट नहीं है। साल-दर साल टीबी से होने से वाली मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। 47 प्रतिशत अचीवमेंट के साथ यह लक्ष्य सालों से यहीं रुक गया है। सीनियर टीचरों की कमी के कारण दवा वितरण और मानिटरिंग भी प्रभावित हो रहा है।

70 प्रतिशत पद रिक्त

यदि मात्र चेस्ट स्पेशलिस्ट की बात करें तो बिहार में 70 प्रतिशत से अधिक पद रिक्त हैं। इसमें असिस्टेंट प्रोफेसर से लेकर प्रोफेसर तक के पद शामिल हैं। राज्य भर में दस मेडिकल कॉलेज है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी भयावह है।

एकेयू ने रोक लगा दी

पीएमसीएच में पीजी की पढ़ाई नहीं हो सकती है। इसे आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी (एकेयू) ने बंद करने को कहा है। एकेयू का कहना है कि यहां स्टैटिसियन का पद पहले भरा जाए। इसके बाद पीएचडी के लिए रिसर्च की अनुमति भी मिलेगी।

एमडी पर भी संकट

चेस्ट एंड टीवी डिपार्टमेंट के अनुसार एमसीआई टीचर्स के स्ट्रेंथ की जानकारी मांग रहा है ताकि जो डिप्लोमा कोर्स है, उसे आगे एमडी कोर्स में कनवर्ट कर दिया जाए। लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण डिप्लोमा की पढ़ाई पर भी संकट है।

सरकार से कई बार टीबी डिपाटमेंट में शिक्षकों की नियुक्ति को लकेर मांग की गई है। ताकि यहां एमडी की पढ़ाई शुरु हो। लेकिन अब तक इसमें कोई सफलता नहीं मिली है।

-डॉ अशोक शंकर सिंह,

पूर्व हेड टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट

स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की घोर कमी है। टीबी के मामले में भी यही बात है। इसलिए टीबी का मर्ज दूर करने के लिए यह लक्ष्य हासिल करना अब सपना ही बनकर रह गया है।

-डॉ रंजीत कुमार, महासचिव भासा

Posted By: Inextlive