What others have to say about you?
अक्सर हम खुद के बारे में दूसरों की राय लेना चाहते हैं. हो सकता है इससे हम ये जानना चाहते हों कि वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि हम कई बार खुद को ही लेकर कन्फ्यूज रहते हैं और लोगों की राय हमें इस कन्फ्यूजन से निकालने में मदद करती है.साइकियाट्रिस्ट अलीम सिद्दीकी कहते हैं, ‘अक्सर हम चीजों को लेकर बायस्ड होते हैं, हम पॉजिटिव होते हैं तो कई बार निगेटिव भी. जब बात खुद को जानने की आती है तो यह जरूरी नहीं कि हर बार हम खुद को सही जज ही कर पाएं.’ यानी रियली आप हैं
टाटा कंसल्टेंसी, दिल्ली में सॉफ्टवेयर इंजीनियर दिलीप पांडेय कहते हैं, ‘एक बार मल्टीनेशनल कम्पनी के साथ होने वाली मीटिंग को मुझे हेड करने को कहा गया. मुझे लगा कि मैं नहीं कर पाऊंगा. मेरे कुछ कलीग ने ही समझाया कि मैं अच्छा स्पीकर हूं. मुझे मीटिंग के बाद पता चला कि मैं रियली अपने इस टैलेंट से बेखबर था.’
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च कि मानें तो हमारी क्रिएटिविटी, इंटेलीजेंस या रूडनेस का अंदाजा हमसे ज्यादा हमारे दोस्तों को होता है. एक रिसर्च के मुताबिक हमें तब बहुत ज्यादा ताज्जुब नहीं होता जब हमारे दोस्त हमें हमसे बेहतर जानते हैं लेकिन आपको ताज्जुब होता है कि कोई अनजाना आपके कपड़ों, आपके पसंदीदा म्यूजिक या फेसबुक पोस्ट को देखकर आपके बारे में काफी कुछ बता देता है.
हां, अगर आपको लेकर कोई एक ऑब्जर्वेशन थोड़ा ज्यादा आ रहा है तो शायद आपको उसे लेकर सोचने की जरूरत है. जैसे, अगर ज्यादातर लोग आपके बातचीत के तरीके के खिलाफ बोलते या उससे हर्ट होते हैं तो आपके लिए ये सेल्फ एनालिसिस का सिग्नल है. इस फैक्ट के बावजूद, एक हकीकत ये भी है कि आपको अपनी स्ट्रेंथ और दूसरी कैपेसिटीज के मामले में सबसे पहले अपने मन की सुननी चाहिए.Make a balance वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर और रिसर्चर सीमाइन वजायर सजेस्ट करती हैं, ‘हमें खुद को जानने में दूसरों के परसेप्शपन के साथ अपने परसेप्शन का बैलेंस बनाना होगा.’ कहने का मतलब ये है कि दूसरों के थॉट्स और इवैलुएशन को पूरी तरह खारिज कर देना भी ठीक नहीं है. आखिर सेल्फ डेवलपमेंट एक प्रोसेस है, और ये तभी सही दिशा में बढ़ेगा जब आप अपनी कमियों को बराबर इम्प्रूव करते जाएंगे.