-भारी उमस से तरबतर हो जा रहे लोग

-न दिन को सुकूं न रात को मिल रहा चैन

ALLAHABAD: भीषण गर्मी झेल चुके लोगों को हमेशा झमाझम बारिश का इंतजार रहता है। मगर, अबकी बरस सावन में सूखा रहा तो भादो भी प्यासा ही बीत रहा है। इससे आमजन तो चिंतित हैं ही, खेती किसानी से जुड़े लोग भी हैरान परेशान हैं। फिलहाल तो आने वाले समय में भी लोगों को कोई राहत मिलना मुमकिन नहीं लग रहा। वेदर एक्सप‌र्ट्स का तो कुछ ऐसा ही मानना है।

चालीस प्रतिशत से ज्यादा जगहों पर सूखा

करेंट इयर में मानसून की शुरुआत से पहले ही भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मौसमी सीजन पर मेजर अल नीनों इफेक्ट के चलते पूरे देश में सूखे की भविष्यवाणी कर दी थी। जुलाई बीतने के बाद मौसम विभाग का अनुमान सही भी साबित हुआ और देश में चालीस से पचास प्रतिशत भूभाग पर सूखे की मार पड़ी। इसमें उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा खासतौर से इफेक्टेड हुआ है। हालांकि, समय बीतने के साथ बीच बीच में हुई बरसात ने हाहाकारी माहौल को थामने की कोशिश की। बावजूद इसके औसत बारिश के भी लाले पड़ गए।

याद आई मई-जून की गम‌र्ी्र

उधर, सावन बीतने के बाद लोगों को आस थी कि भादो में जरुर राहत मिलेगी। क्योंकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जुलाई अगस्त और सितम्बर कामहिना अच्छी बरसात का माना जाता है। लेकिन पूरा अगस्त बीत चुका है और बारिश के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। हाल यह है कि इन दिनों आश्चर्यजनक रुप से गजब की उमस देखने को मिल रही है। पसीने से तरबतर हो रहे लोगों के दिन का चैन और रात का सुकून नदारद है। घर हो या बाहर कहीं भी थोड़े समय के लिए रुकना मुश्किल साबित हो रहा है। ऐसे में पंखे और कूलर की हवा भी बेमानी हो चली है। इसने एक बार फिर मई जून में पड़ी गर्मी की यादें ताजा कर दी हैं।

चटकने लगे खेत

इस बाबत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्थित आटोमेटिक वेदर सेंटर के डॉ। सुनीत द्विवेदी का कहना है धूप में बहुत तेजी नहीं है। लेकिन जुलाई के बाद वातावरण में घुली अत्यधिक आद्रता के चलते भारी उमस का एहसास हो रहा है। डॉ। द्विवेदी का कहना है कि बारिश न होने से ग्रामीण इलाकों में खेती की जमीनें चिटकना शुरू हो गई हैं और यदि आगे भी यही हालात रहे तो सूखे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सावन के बाद भादों ही वह समय है जिसमें अत्यधिक बरसात होती है। इसके बाद क्वार में ज्यादा संभावना नहीं बचती।

सबसे ज्यादा नुकसान

बारिश न होने के साइड इफेक्ट पर वेदर एक्सप‌र्ट्स प्रोफेसर बीएन मिश्रा का कहना है कि इससे सबसे ज्यादा धान की फसल को नुकसान पहुंचेगा। क्योंकि, धान की फसल को कई दिनों तक लगातार पानी की जरूरत होती है। इसके अलावा दलहन, चना, ज्वार, बाजरा, अरहर, मक्का, उड़द, मूंग तिली जैसी फसलें भी बर्बाद हो जाएंगी। सब्जियों और फल को भी इससे काफी नुकसान पहुंचेगा। अच्छी पैदावार न होने से मार्केट में इनके दाम भी आसमान छूना शुरू कर देंगे। कहते हैं कि लोगों के लिए राहत की बात यही कही जा सकती है टेम्परेचर स्थिर तरीके से ही आगे बढ़ रहा है। इन दिनों मैक्सिमम टेम्परेचर पैंतीस से ऊपर और मिनिमम टेम्परेचर तीस के अंदर चल रहा है।

लास्ट इयर भी ऐसे ही थे हालात

मौसमी उलटफेर की बावत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के डॉ। एआर सिद्दीकी कहते हैं कि लास्ट इयर भी अल नीनो इफेक्ट के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में बेहद कम बारिश हुई थी। उस समय देश के अधिकांश भूभाग में पड़ी सूखे की मार पर केन्द्र सरकार की ओर से संसद में भारी भरकम राहत पैकेज की भी घोषणा की गई थी, लेकिन इस बार तो हालात और भी ज्यादा खराब है। डॉ। सिद्दीकी ने कहा कि पिछले दो तीन वर्षो से बारिश के जुदा हालात वाकई में चिंता का सबब हैं। सबसे ज्यादा चिंता का विषय किसानों को लेकर है।

Posted By: Inextlive