तीन दर्जन से अधिक मामलों में वांछित अपराधी शहाबुद्दीन को छात्र राजनीति के दौरान एक थप्‍पड़ ने बाहुबली बना दिया। सीवान ही नहीं प्रदेश और देश की राजनीति में शहाबुद्दीन एक राजनेता के साथ ही बाहुबली बनकर उभरा। उसे एक मामले में कोर्ट ने अपराधी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जिसके बाद से वो जेल में है।

दिलचस्प है शहाबुद्दीन के बाहुबली बनने का सफर
एक बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। बिहार में कभी अपराध का बड़ा नाम रहे शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था। सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे शहाबुद्दीन ने कॉलेज के दौरान अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था। 1980 में डीएवी कॉलेज से राजनीति में कदम रखने वाले इस नेता ने माकपा व भाकपा के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भाकपा माले के साथ उनका तीखा टकराव रहा। सीवान में दो ही राजनीतिक धुरिया थीं। एक शहाबुद्दीन व दूसरी भाकपा। 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे। इनकी हत्या सीवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी।
सीवान में चलता था जंगलराज
एक समय राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन अपने समर्थकों व विरोधियों के बीच रॉबिनहुड के रूप में जाने जाते थे। तब सीवान में कानून का राज नहीं बल्कि शहाबुद्दीन का शासन चलता था। 15 मार्च 2001 में पुलिस जब राजद के एक नेता के खिलाफ एक वारंट पर गिरफ्तारी करने दूसरे दिन दारोगा राय कॉलेज में पहुंची तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया। उनके सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी। इसके बाद बिहार पुलिस शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की कोशिश में उनके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की लेकिन अंजाम बेहद ही दुखद रहा था।
जब पुलस से भिड़ा था शहाबुद्दीन
शहाबुद्दीन समर्थक व पुलिस के बीच करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में आठ ग्रामीण मारे गए थे। इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था। तभी से शहाबुद्दीन की गिनती सीवान की नहीं बल्कि प्रदेश व देश स्तर पर भी एक राजनेता से इतर बाहुबली के रूप में होने लगी। हालांकि इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था। यह अलग बात है कि तत्कालीन डीएम सीके अनिल व एसपी रत्न संजय ने 2005 के अप्रैल में शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के शिकंजे में कस दिया था।
1986 में दर्ज हुआ पहला केस
सीवान के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन पर 1986 में हुसैनगंज थाने में पहला आपराधिक केस दर्ज हुआ। फिर तो इसके बाद उनके खिलाफ लगातार मामले दर्ज होते चले गए। इस वजह से देश की क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटरों की लिस्ट में वे शामिल हो गए। 1990 में निर्दलीय विधायक बनने के बाद शहाबुद्दीन लालू प्रसाद के नजदीक चले गए। फिर विधायक और सांसद भी बने। 1996 में लोकसभा चुनाव के दिन ही एक बूथ पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार करने निकले तत्कालीन एसपी एसके सिंघल पर गोलियां चलाई गई। आरोप था कि खुद शहाबुद्दीन ने गोलियां दागी और सिंघल को जान बचाकर भागना पड़ा। इस कांड में शहाबुद्दीन को दस वर्ष की सजा हो चुकी है।
लालू प्रसाद यादव ने शहाबुद्दीन को बताया था छोटा भाई
लालू ने शहाबुद्दीन से मनमुटाव को दूर करने के लिए सीवान पहुंचने पर सिर्फ इतना ही कहा था कि सीवान का सांसद मेरा छोटा भाई है मिलने आया था। सरकार बदलने के बाद भी लालू शहाबुद्दीन से मिलने जेल के अंदर गए थे। 16 मार्च 2001 को प्रतापपुर कांड के दौरान भी शहाबुद्दीन लालू से नाराज हो गए थे। उस दौरान इस घटना के बाद भाजपा शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी में मिलाने के लिए आतुर थी। तभी भाजपा के एक बड़े नेता ने बयान दिया था कि सांसद के घर पर हमला नहीं बल्कि लोकतंत्र पर हमला है। उसके बाद लालू सात दिन के बाद शहाबुद्दीन के गांव पहुंचे और सभी मामलों को सीआईडी कंट्रोल के हवाले कर दिया और तत्काल प्रभाव से सीवान के एसपी बच्चू सिंह मीणा व डीएम रसीद अहमद खां का तबादला कर दिया। तब जाकर मामला शांत हुआ था।
शहाबुद्दीन को सुनाई गई उम्र कैद की सजा
इससे पहले 11 दिसम्बर 15 को राजीव रौशन के दो भाइयों की हत्या में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में शहाबुद्दीन की ओर से हाईकोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की गई थी। इसपर सुनवाई के बाद बुधवार को कोर्ट से बहुत बड़ी राहत मिल गई है। यह घटना 2004 की है। तेजाबकांड के चश्मदीद गवाह राजीव रौशन की डीएवी कॉलेज मोड़ पर 16 जून, 14 को साढ़े आठ बजे रात में अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। राजीव रौशन के पिता चंदाबाबू ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इसमें जेल में बंद मो. शहाबुद्दीन पर साजिश रचने व उनके पुत्र ओसामा पर गोली मारने का आरोप लगाया गया था।
शहाबुद्दीन पर 37 मामलों में चल रही है जांच
पुलिस ने शहाबुद्दीन को इस मामले में रिमांड कर दिया और उनके पुत्र के बिन्दु पर जांच करने लगी। इस मामले में सीवान कोर्ट से जमानत नहीं मिलने पर हाई कोर्ट में अपील की गई थी,  लेकिन जमानत नहीं मिली। पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन 12 साल से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं। तीन दर्जन से अधिक मामले उनपर दर्ज हैं। ट्रायल कोर्ट के गठन के बाद 12 मामलों का फैसला आ चुका है जिसमें आठ मामलों में एक साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो चुकी है। चार मामलों में बरी भी हो चुके हैं। अब राजीव रौशन हत्या मामले को छोड़कर सभी मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत मिल चुकी है। यदि 11 मामलों को छोड़ दें तो जेल के अंदर बने ट्रायल कोर्ट में अभी भी 37 मामले लंबित पड़े हैं।
इन मामलों में हुई है सजा
चर्चित तेजाबकांड में दो भाईयों की हत्या में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई। छोटेलाल अपहरण कांड में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। एसपी सिंघल पर गोली चलाने के मामले में 10 वर्ष सजा सुनाई गई। आर्म्स एक्ट के मामले में 10 वर्ष सजा सुनाई गई। जीरादेई थानेदार को धमकाने के मामले में 1 वर्ष सजा सुनाई गई। चोरी की मोटरसाइकिल बरामद में 3 वर्ष सजा सुनाई गई। माले कार्यालय पर गोली चलाने के मामले में 2 वर्ष सजा सुनाई गई। राजनारायण के मामले में 2 वर्ष सजा सुनाई गई। किसमें हुए बरी सजा सुनाई गई। दरोगा संदेश बैठा के साथ मारपीट के मामले सजा सुनाई गई। डीएवी कॉलेज में बमबारी सजा सुनाई गई।
सूता फैक्ट्री के मामले सजा सुनाई गई।
तेजाब से नहलाकर दो भाइयों की हत्या में शहाबुद्दीन को मिली थी उम्रकैद
तेजाब से नहलाकर दो सहोदर भाईयों की हत्या करने के आरोप में स्पेशल जज अजय कुमार श्रीवास्तव ने 11 दिसम्बर को राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साथ ही अन्य आरोपित शेख असलम, राजकुमार साह व मो. आरिफ को भी सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए सभी पर जुर्माना लगाया था। शहाबुद्दीन पर 302 में 20 हजार व 364 ए में 10 हजार व अन्य आरोपितों पर भी 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। जुर्माना की राशि जमा नहीं करने पर सजा की अवधि बढ़ सकती है। यदि शहाबुद्दीन जुर्माना की राशि नहीं देते हैं तो पांच साल व तीन साल की सजा की अवधि बढ़ जाएगी। सभी दफा भी साथ-साथ चलेगी।

 

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Posted By: Prabha Punj Mishra